देवताओं के वाहन पशु ही क्यों होते हैं?

236
चैत्र नवरात्र:  कूष्माण्डा माता की पूजा-अर्चना से साधक को आध्यात्मिक बल के साथ शारीरिक बल भी प्राप्त होता है
यहाँ क्लिक कर पोस्ट सुनें

देवताओं के वाहन पशु ही क्यों होते हैं? कुछ न कुछ कारण तो होगा ही।

एक विश्लेषण, कुछ सकारात्मक तर्कों के साथ

किसी भी मंदिर में जाइए, किसी भी देवता को देखिए, उनके साथ एक चीज़ जो सामान्य रूप से जुड़ी हुई है, वह हैं उनके वाहन।

[su_highlight background=”#880e09″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @आचार्य हर्षमणि बहुगुणा[/su_highlight]

लगभग सभी देवताओं के वाहन पशुओं को ही रखा गया है। शिव के नन्दी से लेकर दुर्गा के शेर तक और विष्णु के गरूड़ से लेकर इंद्र के ऐरावत तक लगभग सारे देवी-देवता पशुओं पर ही सवार हैं।
आखिर क्यों? सर्वशक्तिमान देवताओं को पशुओं की सवारी की आवश्यकता पड़ी, जब की वे तो अपनी दिव्यशक्तियों से पलभर में कहीं भी आ-जा सकते हैं? क्यों हर देवी-देवता के साथ कोई पशु जुड़ा हुआ है? अत्यधिक विचारणीय है।
देवताओं के साथ जानवरों को जोडऩे के पीछे कई सारे कारण हैं :-
इसमें अध्यात्मिक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक कारणों से भारतीय मनीषियों ने देवताओं के वाहनों के रूप में पशु-पक्षियों को जोड़ा है। वास्तव में देवताओं के साथ पशुओं को उनके व्यवहार के अनुरूप जोड़ा गया है।

दूसरा सबसे बड़ा कारण है प्रकृति की रक्षा:-
अगर पशुओं को भगवान के साथ नहीं जोड़ा जाता तो शायद पशु के प्रति हिंसा का व्यवहार और ज्यादा होता।

हर देवता के साथ एक पशु को जोड़ कर भारतीय मनीषियों ने प्रकृति और उसमें रहने वाले जीवों की रक्षा का एक संदेश दिया है। हर पशु किसी न किसी देवता का प्रतिनिधि है, अथवा उनका वाहन है, इसलिए इनकी हिंसा नहीं करनी चाहिए। मूलत: इसके पीछे एक यही संदेश सबसे बड़ा है।

आपको क्या लगता है? गणेश जी ने चूहों को यूं ही चुन लिया? या नन्दी शिव की सवारी यूं ही बन गए?
देवताओं ने अपनी सवारी बहुत ही विशेष रूप से चुनी। यहां तक कि उनके वाहन उनकी चारित्रिक विशेषताओं को भी बताते हैं।

भगवान गणेश और मूषक:-
गणेश जी का वाहन है मूषक। मूषक शब्द संस्कृत के मूष से बना है जिसका अर्थ है लूटना या चुराना। सांकेतिक रूप से मनुष्य का दिमाग मूषक, चुराने वाला अर्थात् चूहे जैसा ही होता है। यह स्वार्थ भाव से घिरा होता है। गणेश जी का चूहे पर बैठना इस बात का संकेत है कि उन्होंने स्वार्थ पर विजय पाई है और जनकल्याण के भाव को अपने भीतर जागृत किया है।

शिव और नंदी:-
जैसे शिव भोलेभाले, सीधे चलने वाले लेकिन कभी-कभी भयंकर क्रोध करने वाले देवता भी हैं तो उनका वाहन हैं नन्दी बैल। संकेतों की भाषा में बैल शक्ति, आस्था व भरोसे का प्रतीक होता है। इसके अतिरिक्त शिव का चरित्र ‘मोह माया और भौतिक इच्छाओं से’ परे रहने वाला बताया गया है। सांकेतिक भाषा में बैल यानी नन्दी इन विशेषताओं को पूरी तरह चरितार्थ करते हैं। इसलिए शिव का वाहन नन्दी हैं।

कार्तिकेय और मयूर:-
कार्तिकेय का वाहन है मयूर। एक कथा के अनुसार यह वाहन उनको भगवान विष्णु ने भेंट में दिया था। भगवान विष्णु ने कार्तिकेय की साधक क्षमताओं को पहचान कर ही उन्हें यह वाहन दिया था, जिसका सांकेतिक अर्थ था कि अपने चंचल मन रूपी मयूर को कार्तिकेय ने साध लिया है। वहीं एक अन्य कथा में इसे दंभ के नाशक के तौरपर कार्तिकेय के साथ बताया गया है।

मां दुर्गा और उनका वाहन शेर :-
दुर्गा तेज, शक्ति और सामर्थ्य की प्रतीक है तो उनके साथ सिंह है। शेर प्रतीक है क्रूरता, आक्रामकता और शौर्य का। यह तीनों विशेषताएं मां दुर्गा के आचरण में भी देखने को मिलती है। यह भी रोचक है कि शेर की दहाड़ को मां दुर्गा की ध्वनि ही माना जाता है, जिसके आगे संसार की बाकी सभी आवाजें कमजोर लगती हैं।

मां सरस्वती और हंस:-
हंस संकेतों की भाषा में पवित्रता, न्याय और जिज्ञासा का प्रतीक है जो कि ज्ञान की देवी मां सरस्वती के लिए सबसे उत्कृष्ट वाहन है। मां सरस्वती का हंस पर विराजमान होना यह बताता है कि ज्ञान से ही जिज्ञासा को शांत किया जा सकता है और पवित्रता को जस का तस रखा जा सकता है। न्याय तभी हो सकता है।

भगवान विष्णु और गरुड़ :-
गरुड़ प्रतीक हैं दिव्य शक्तियों और अधिकार का। भगवद् गीता में कहा गया है कि भगवान विष्णु में ही सारा संसार समाया है। सुनहरे रंग का बड़े आकार का यह पक्षी भी इसी ओर संकेत करता है। भगवान विष्णु की दिव्यता और अधिकार क्षमता के लिए यह सबसे सही प्रतीक है।

मां लक्ष्मी और उल्लू:-
मां लक्ष्मी के वाहन उल्लू को सबसे अजीब चयन माना जाता है। कहा जाता है कि उल्लू ठीक से देख नहीं पाता, लेकिन ऐसा सिर्फ दिन के समय होता है। उल्लू शुभता और धन-संपत्ति का प्रतीक होता है।
ऐसे ही अन्य देवताओं के साथ भी पशुओं को उनके व्यवहार और स्वभाव के आधार पर जोड़ा गया है। स्वयं चिन्तन किया जा सकता है।