चुनाव संपन्न करवाना नहीं है किसी चुनौती से कम

    play icon Listen to this article

    शांतिपूर्ण, निष्पक्ष और सुव्यवस्थित ढंग से चुनाव करवाने में चुनाव आयोग के साथ प्रशासन, पुलिस और शिक्षक- कर्मचारियों की अहम भूमिका होती है। चुनाव संपन्न करवाना किसी चुनौती से कम नहीं है।

                  [su_highlight background=”#880e09″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी@कवि:सोमवारी लाल सकलानी, निशांत [/su_highlight]

         सेवाकाल के दौरान का अनुभव है, कभी-कभी विषम परिस्थितियों में भी चुनाव संपन्न कराना किसी चुनौती से कम नहीं है। उत्तराखंड आंदोलन के दौरान जब अधिकांश क्षेत्रों में चुनाव का बहिष्कार हो गया था तो मैं पीठासीन अधिकारी के रूप में प्रताप नगर क्षेत्र के मिश्रवाण गांव (माजफ) मे संसदीय चुनाव करवाने हेतु नियुक्त था। श्री देवाशीष पांड्या डी.एम थे।

    क्षेत्र के सभी पोलिंग बूथों पर शून्य मतदान होने के कारण खाली वैलेट बाक्स आए थे। लेकिन मेरे बूथ पर 15% मतदान हुआ था। उत्तराखंड आंदोलन अपने चरम पर था। उस समय भी राजनीतिक लोगों की महत्वाकांक्षा कम नहीं थी। महाराजा मानवेंद्र शाह के अलावा 23 अन्य कैंडिडेट चुनाव मैदान में थे। जिनमें शूरवीर सिंह सजवाण का नाम भी प्रमुख है। 1177  मतदाता थे।

    🚀 यह भी पढ़ें :  आत्मबोध कथा: भीतरघात पतन का कारक

    मिश्रवाण गांव बूथ पर  सबसे पहले मतदान करने वाले भारतीय जनता पार्टी के दयाल सिंह मिश्रवाण थे। श्री जोतसिंह मिश्रवाण ग्राम पंचायत के प्रधान थे। उत्तराखंड आंदोलनकारियों की चेतावनी के बाद भी उन्होंने मानवता के नाते चुनाव पार्टी की भोजन व्यवस्था करवायी। चोरी-छिपे हमारी मतपेटियों को माजफ पहुंचाने में खच्चरों की व्यवस्था की। यद्यपि वे भी चुनाव के खिलाफ थे और मतदान प्रक्रिया के बहिष्कार में सबसे आगे थे।

    अपने सेवाकाल में मैंने 16 बार पीठासीन अधिकारी के रूप में कार्य किया। 02 बार पीठासीन अधिकारी के रूप में रिजर्व में रहा। अनेकों बार अन्य चुनावी प्रक्रियाया का अंग रहा। उस समय बीएलओ की व्यवस्था नहीं थी। मैंने सबसे पहला अपना चुनाव 1993 में करवाया। उसके बाद 1996 में लगातार तीन चुनाव में संसद, विधानसभा और पंचायत चुनाव में पीठासीन अधिकारी के दायित्व का निर्वहन किया।
    एक बार पंचायत चुनाव में नियुक्त मेरे साथी  श्री शांति प्रसाद रयाल जी की तबीयत खराब हो गई। उन्हें डेंगू था। जब मुझे पता चला तो मैंने उनकी ड्यूटी कटवा कर स्वयं अपनी ड्यूटी उस स्थान पर लगवाई और माई की मंडी से 03 किलोमीटर पैदल खड़ी चढ़ाई चढ़कर चुनाव संपन्न करवाया।

    🚀 यह भी पढ़ें :  जन्मदिन विशेष: (15 जनवरी)- स्वतन्त्रता सेनानी पत्रकार वीरेन्द्र वीर एवम् आदर्श ग्राम के निर्माता अन्ना हजारे

    उत्तरकाशी विधानसभा छोड़कर (अब धनोल्टी) छोड़कर तत्कालीन टिहरी विधानसभा के सबसे दूरस्थ क्षेत्र कुड़ी-अधूली (फुटगढ़), नरेन्द्र नगर विधानसभा  के दूरस्थ क्षेत्र कोडारना, और पौड़ी गढ़वाल थलीसैंण के बिडोली जैसे दूरस्थ क्षेत्रों में मेरी पीठासीन अधिकारी के रूप में काम किया। इसके अलावा धारमंडल के बंगद्वारा  प्रताप नगर के लंबगांव और जिवाला, नरेंद्र नगर के चौंपा, प्रतापनगर के कोटगा बंनाली, गोजमेर, जसपुर, ठेला-नैलचामी,गजा आदि स्थलों पर भी दायित्व का निर्वहन किया।

    🚀 यह भी पढ़ें :  जन्मदिवस/ पुण्यतिथि विशेष, 02 मार्च: सूर्य पंडित सूर्यनारायण व्यास, निर्धनों के वास्तुकार लारी बेकर, राष्ट्रवादी इतिहासकार पुरुषोत्तम नागेश ओक, गतिशील व्यक्तित्व केशवराव देशमुख

    चुनावी प्रक्रिया का अंग होना भी एक सौभाग्य की बात है यदि भी पीठासीन अधिकारी के रूप में कार्य करना सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का कार्य है लेकिन टीम वर्क से सब कार्य संपन्न हो जाते हैं आरंभ में यदि चुनाव टीम में कोई अनुभवी व्यक्ति नहीं है तो थोड़ा दिक्कत होती है लेकिन जब एक दो बार व्यक्ति चुनाव करा देता है तब ज्यादा कटना ही नहीं होती हां ज्यादा आत्मविश्वास भी कभी-कभी खतरे की घंटी बन जाता है और मानसिक पीड़ा पहुंचाता है, यह भी मेरा अनुभव रहा है 10 मार्च 2022 को विधानसभा का परिणाम उत्तराखंड में घोषित होगा तब तक आप लोगों के स्वस्थ चिंतन के लिए यथा समय अपने अनुभवों को शेयर करता रहूंगा।