त्वमेव माता च पिता त्वमेव, श्लोक के अर्थ की गम्भीरता समझें तो चौंकाने वाली है…!

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“त्वमेव माता च पिता त्वमेव” श्लोक के अर्थ की गम्भीरता समझें तो चौंकाने वाली है...!
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, श्लोक के अर्थ की गम्भीरता समझें तो चौंकाने वाली है
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त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।

त्वमेव विद्या  द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वम् मम देवदेवं।।

 “यह श्लोक तो सब को याद है, परन्तु अर्थ की गम्भीरता समझें तो चौंकाने वाली है।”

सरहद का साक्षी @आचार्य हर्षमणि बहुगुणा

त्वमेव माता च पिता त्वमेव….सरल-सा अर्थ है-

 ‘हे भगवान! तुम्हीं माता हो, तुम्हीं पिता, तुम्हीं बंधु, तुम्हीं सखा हो। तुम्हीं विद्या हो, तुम्हीं द्रव्य, तुम्हीं सब कुछ हो। तुम ही मेरे देवता हो।’ अतः भगवान से प्रार्थना है कि —

मूकं करोति वाचालं पंगुं  लंघयते गिरिम्। यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम्।।

बचपन से प्रायः यह प्रार्थना पढ़ी है। तो आइए इसके अर्थ की गम्भीरता को समझते हैं।

   मैंने ‘अपने रटे हुए’  इस श्लोक के विषयक अपने बहुत मित्रों से पूछा, ‘द्रविणं’ का  अर्थ क्या है? संयोग देखिए कि वे नहीं बता पाए,  अच्छे खासे पढ़े-लिखे भी,  एक ही शब्द ‘द्रविणं’ पर  सोच में पड़ गए।

द्रविणं पर चकराये और अर्थ जानकर चौंक पड़े। द्रविणं जिसका अर्थ है द्रव्य, धन-संपत्ति। द्रव्य जो तरल है, निरंतर प्रवाहमान। यानी वह जो कभी स्थिर नहीं रहता। आखिर ‘लक्ष्मी’ भी कहीं टिकती है!

जितनी सुंदर प्रार्थना है उतना ही प्रेरक उसका ‘वरीयता क्रम‘। ज़रा देखिए तो! सबसे पहले माता क्योंकि वह है तो फिर संसार में किसी की जरूरत ही नहीं। इसलिए हे प्रभु! तुम माता हो! फिर पिता, अतः हे ईश्वर! तुम पिता हो! दोनों नहीं हैं तो फिर भाई ही काम आएंगे। इसलिए तीसरे क्रम पर भगवान से भाई का रिश्ता जोड़ा है।

जिसकी न माता रही, न पिता, न भाई तब सखा काम आ सकते हैं, अतः सखा त्वमेव! वे भी नहीं तो आपकी विद्या ही काम आती है। यदि जीवन के संघर्ष में नियति ने हमको निपट अकेला छोड़ दिया है तब हमारा ज्ञान ही हमारा भगवान बन सकेगा। यही इसका संकेत है।

और सबसे अंत में ‘द्रविणं’ अर्थात धन। जब कोई पास न हो तब हे देवता तुम्हीं धन हो। रह-रहकर सोचता  हूं कि प्रार्थनाकार ने वरीयता क्रम में जिस धन-द्रविणं को सबसे पीछे रखा है, वहीं धन आजकल हमारे आचरण में सबसे ऊपर क्यों आ जाता है? इतना कि उसे ऊपर लाने के लिए माता से पिता तक, बंधु से सखा तक, सब नीचे चले जाते हैं, और पीछे छूट जाते हैं।

वह कीमती है, पर उससे ज्यादा कीमती माता,पिता, भाई, मित्र, विद्या हैं। उससे बहुत ऊँचे हैं हमारे अपने। बार-बार विचार आता है, द्रविणं सबसे पीछे बाकी रिश्ते ऊपर। सभी लगातार ऊपर से ऊपर, और ….धन क्रमश: नीचे से नीचे! हमें याद रखना होगा कि दुनियाँ में झगड़ा रोटी का नहीं थाली का है! वरना वह रोटी तो सबको देता ही है!

चांदी की थाली यदि कभी हमारे वरीयता क्रम का उलंघन करने लगे तो हमें इस प्रार्थना को जरूर याद करना चाहिये।