[su_highlight background=”#880930″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @कवि: सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।[/su_highlight]
मौत के मुंह से बाहर आ जाएं,
तो वह समय कितना अच्छा है !
दुर्घटना में यदि हम बच जाएं,
तो वह समय कितना अच्छा है !
मां की कोख से जब बाहर आएं,
तो वह समय भी कितना अच्छा है !
पढ़ लिख कर रोजगार पा जाएं,
तो वह समय कितना अच्छा है !
दु:ख- सुख को सम भाव से देखें,
तो वह समय कितना अच्छा है!
कर्म कौशल में निमग्न रहें निरंतर,
तो वह समय कितना अच्छा है !
वक्त पर किसी के काम आ जाएं,
तो वह समय कितना अच्छा है !
थोड़ा सा भी सेवा भाव हो जाए,
वह तो वह समय कितना अच्छा है !
स्वस्थ्य सामाजिक यदि बन जाएं
तो वह समय कितना अच्छा है !
मुसीबत में किसी के काम आ जाएं,
तो वह समय कितना अच्छा है !
कर्तव्य करते हुए यदि हम मर जाएं,
तो वह समय कितना अच्छा है !
पीढ़ी के लिए यदि हम कुछ कर जाएं,
तो वह समय कितना अच्छा है !
अहसानों का बोझ हल्का कर जाएं,
तो वह समय कितना अच्छा है !
मातृभूमि पर हम कुर्बान हो जावें,
तो वह समय कितना अच्छा है