वैश्विक साहित्यकार टी. एस. इलियट को उनके जन्मदिवस पर स्मरण

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वैश्विक साहित्यकार : टी. एस. इलियट को उनके जन्मदिवस पर स्मरण।”मानव आत्मा अपने अंतर भावों को कविता में ही व्यक्त करना चाहती है” टी. एस. इलियट।

कवि: सोमवारी लाल सकलानी ‘निशांत’

आज एक महान कवि का जन्म दिवस है। 26 सितंबर सन 1888 को एक ऐसे महान कवि ने जन्म लिया जिसने प्रशांत महासागर के दोनों ओर अपने ज्ञान के द्वारा संपूर्ण भूमंडल को आलोकित किया। जिनका नाम है- टी. एस. इलियट।

टी. एस. इलियट प्रखर बुद्धि के लेखक और कवि थे। सन 1947 को साहित्य के क्षेत्र में उन्हें विश्व के सबसे बड़े ‘नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

टी. एस. इलियट बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनके प्रतिभा का सम्मान आज भी किया जाता है। अमेरिका के सेंट लुइस स्कूल से आरंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद आपने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। उसके बाद इलियट ने फिलोसोफी का भी अध्ययन किया और कालांतर में वे फिलोसोफी के प्राध्यापक बने। अनेक क्षेत्रों में टी एस इलियट ने अपनी सेवाएं दी लेकिन उनका सबसे बड़ा योगदान साहित्य के क्षेत्र में रहा। गद्य और पद्य दोनों पर उनकी पकड़ थी।आलोचना के क्षेत्र में भी उन्हें जाना जाता है।

उनकी अनेक पुस्तकें उनकी प्रकाशित हुई है और आज भी पाठ्यक्रम में सम्मिलित हैं। ट्रेडीशन एंड इंडिविजुअल टैलेंट,द फंक्शन ऑफ क्रिटिसिज्म, एजुकेशन एंड क्लासिक्स, रिलीजन एंड लिटरेचर, द म्यूजिक ऑफ पोएट्री आदि अनेक पुस्तकों की उन्होंने रचना की।

सन् 1983 में जब मैं एम.ए. अंग्रेजी का छात्र था तो टी.एस. इलियट की अनेकों किताबों को पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। सबसे अधिक प्रभावित मुझे उनकी पुस्तक “द वेस्ट लैंड” ने प्रभावित किया। आज भी अनेकों पंक्तियां मेरे मस्तिष्क में चिरस्थाई भाव से संकलित हैं।

” A heap of broken images where the sun beats. Dead tree gives no shelter, no cricket relief. And dry stone no sound of water”

इस प्रकार की उद्दात रचनाएं कोई एक महान कवि ही कर सकता है। उनकी ‘द वेस्ट लैंड’ बीसवीं शताब्दी के ‘वेस्ट’ सांसारिक जीवन के बारे में है। व्यवस्था के बारे में है। मनुष्य की विद्रूपताओं के बारे में है और तत्कालीन स्थिति और परिस्थितियों के बारे में है। जिसे इस महान कवि ने अपनी सुंदर काव्य रचनाओं मैं उद्धृत किया है।

टी. एस. इलियट एक महान कवि और साहित्यकार होते हुए भी वह सामान्य व्यक्ति को भी उतनी ही तवज्जो देते थे जितनी कि एक पढ़े- लिखे व्यक्ति को। उनके अनुसार जो कवि मौलिक रचनाएं रचता है, उसी के भाव प्रबल होते हैं। परंपरा अंधविश्वास नहीं है बल्कि अतीत से जुड़े रहने का माध्यम है। ऐतिहासिक तथ्य मनुष्य को लिखने पर बाध्य करता है। कवि अपने संपूर्ण तत्वों में अकेला नहीं रहता। कवि के लिए अतीत का ज्ञान होना भी परम आवश्यक है। मस्तिष्क जितना परिपक्व होगा, उतने ही भाव, विचारों को संजोए रखेंगे जो उसके लिए सामग्री है। कवि एक सुधारक होता है। भावना कवि की कला का तत्व हैं।

टी. एस. इलियट के अनुसार, “कवि की प्रगति आत्म बलिदान की लगातार प्रक्रिया है। जिसमें उनका व्यक्तित्व तिल तिल कर घुल जाता है। काव्य भावनाओं का बिखराव या भटकाव नहीं है, भावनाओं से बचाव है। मनुष्य के अपने उद्गार कविता में ही अधिक सरलता और सफलता से व्यक्त होते हैं। भावना और लय आपस में जुड़े होते हैं। मानव आत्मा अपने अंतर भावों को कविता के माध्यम से व्यक्त करती है। आज उनकी जयंती के अवसर पर मैं उस महान आत्मा को शत-शत नमन करता हूं।

(कवि कुटीर)
सुमन कॉलोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल।

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