भद्रा में क्या करें? क्या न करें?
श्रावणी उपाकर्म पर्व भद्रा में नहीं मनाना चाहिए!
रवि, मंगल, बुध की भद्रा भद्रिका कहलाती है। कर्क, कुंभ, वृष व मिथुन के चन्द्रमा में भद्रा मृत्यु लोक की होती है। जो सब कार्यों का नाश करती है। आयु की वृद्धि चाहने वालों को भद्रा में कार्य नहीं करना चाहिए। श्रावणी भद्रा में नहीं मनानी चाहिए।
स्वर्गे भद्रा शुभं कार्यै प्याले च धनागमम्।
मृत्यु लोके यदा भद्रा सर्व कार्यविनाशिनी।
कर्के कुम्भे वृषे स्यान्मिथुन हिमकरे वर्तते मर्त्यलोके।
पूर्णिमा के दिन तीसरे प्रहर की तीन घटी अर्थात् 48 मिनट का समय भद्रा का पुच्छ काल होता है। लल्लाचार्य के अनुसार पृथ्वी में जितने भी शुभ अशुभ काम हैं वे सभी भद्रा के पुच्छ भाग में सिद्ध होते हैं।
पृथिव्यां यानि कार्याणि शुभानित्वशुभानि तु।
तानि सर्वाणि सिद्यन्ति विष्टिपुच्छे न संशयः।
दैवज्ञ गणित का विचार- भद्रा के पुच्छ भाग में केवल युद्ध में विजय मिलती है अन्य काम शुभ नहीं होते।
विष्टिपुच्छे जयो युद्धं कार्यमन्यन्न शोभनम्। करण प्रकरण।
शुक्ल पक्ष की भद्रावृश्चिकी कही गई है। वृश्चिकी के पुच्छ भाग में ही मंगल कार्य का निषेध कहा गया है।
भद्रा में निषिद्ध कार्य-
न कुर्यान्मंगलं विष्ट्या जीवितार्थी कदाचन।
कुर्वन्नज्ञस्तदा क्षिप्रं तत्सर्वं नाशतां व्रजेत्।।
भद्रायां द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा।
श्रावणी नृपतिं हन्ति ग्रामं दहति फाल्गुनी।
भद्रायां दीपिता होली राष्ट्रभंगं करोति वै।
नगरस्य च नैवेस्टा तस्मात्तां परिवर्जयेत्।
अपने अपने विचार हैं, तभी रक्षाबंधन को लेकर तो यह भी लिखा था जब चाहें तब रक्षाबंधन मनायें। यदि महिलाओं की इज्जत बचा सकें, बहिनों को सुरक्षित रख सकें तो रक्षाबंधन सब तरह से सार्थक है अन्यथा सब स्वतन्त्र हैं।
*ज्योतिषविद्ः आचार्य हर्षमणि बहुगुणा