गांधी जी का चश्मा: एक सृजनात्मकता के साथ संदेश

    यहाँ क्लिक कर पोस्ट सुनें

    गांधी जी का चश्मा भारत की स्वच्छता का प्रतीक है। जो  वैश्विक स्तर पर भारत की स्वच्छता की पहचान है। इस पर दाग-धब्बे न पढ़ने देना।

    [su_highlight background=”#880e09″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @कवि:सोमवारी लाल सकलानी,निशांत[/su_highlight]

    फुर्सत के क्षणों में भी कार्य करता हूं। जिससे सुकून मिलता है और तन-मन स्वस्थ रहता है। कई दिनों के उपरांत आज के स्वच्छता जन -जागरूकता के लिए कुछ कैलेंडर से बनाएं और अपने घर, पास पड़ोस में बच्चों के माध्यम से उन्हें बांटा है।
    ‘खाली दिमाग शैतान का घर’ इसलिए खाली समय में कुछ ना कुछ करना चाहिए जिससे कि सृजनात्मकता में अभिवृद्धि के साथ-साथ प्रेरणा भी मिलती है।

    स्वच्छता के बारे में प्रतिदिन राष्ट्रीय स्तर पर कार्य होते जा रहे हैं। कुछ धरातल पर दिखते हैं तो कुछ कागजों पर। दोनों का अपना महत्व है। जब कोई भी योजना ऑन पेपर बनती है तभी उसका इंप्लीमेंटेशन ऑन ग्राउंड होता है और सिद्धांत भी क्रियात्मकता में बदल जाते हैं।
    राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने जो सपना स्वच्छता के बारे में देखा था, वह यशस्वी प्रधानमंत्री आदरणीय मोदी जी के प्रयासों से आगे बढ़ रहा है।
    हमारे नगर क्षेत्र चंबा मे भी स्वच्छता के प्रति जन जागरूकता में काफी प्रगति हुई है। यदि छोटी- मोटी बातों को छोड़ दिया जाए तो कूड़ा निस्तारण, सैग्रीगेशन, प्लास्टिक और पॉलिथीन प्रोडक्ट का कम से कम इस्तेमाल, आज दिखाई दे रहा है।
    जब कोई अच्छी पहल किसी युगपुरुष के द्वारा की जाती है तो कालांतर में पीढ़ियों को उसके लाभ मिलते हैं। गांधी जी का वही सपना साकार होता दिखाई दे रहा है। जिस स्वच्छता की पहल उन्होंने चंपारण से की थी, आज वह भारत के कोने- कोने में दिखाई दे रही है।
    मैंने भारतवर्ष के अनेक गांवों और शहरों का भ्रमण किया है और पाया कि जो स्थिति 40 वर्ष पहले थी उसमें आमूलचूल परिवर्तन हुआ है। अब खुले में शौच जाना शायद ही किसी की मजबूरी हो अन्यथा सभी लोग शौचालयों का प्रयोग करते हैं।
    स्वच्छता के प्रति महिलाओं की भूमिका भी सराहनीय है। दसकों पहले महिलाएं और बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित रहे हैं। अनेक सामाजिक और मिथकीय  मान्यताएं उन पर थोप दी गई थी और यहां तक कि नहाने- धोने का भी निश्चित समय निर्धारित कर दिया गया था।
    कभी अमावस्या का बहाना तो कभी मंगल कभी शनिश्चर तो कभी कुछ और माध्यमों के द्वारा। कभी-कभी तो हफ्तों में उनका नहाना- धोना होता था।
    शिक्षा में सुधार होने के कारण समाज में जन जागरूकता बढ़ी है और आज लोग व्यक्तिक, सामूहिक, सार्वजनिक और सामुदायिक स्वच्छता पर विशेष ध्यान देते हैं।
    कुछ नासमझ लोग भी समाज में हैं जो कि गंदगी के प्रति संवेदनशील नहीं रहते। कूड़ा- कर्कट इधर-उधर बिखेरते हैं। केवल दूसरों की कमियां निकालने में ही अपनी शक्ति और सामर्थ्य का दुरुपयोग करते हैं लेकिन यदि उनसे सुझाव लिए जाएं तो कन्नी काट जाते हैं।
    मैं विश्व के अनेक देशों की स्वच्छता के बारे में पढ़ता हूं। और पाता हूं कि स्वच्छता के कारण ही वे लोग निरोग और लंबी उम्र जीते हैं। इसके साथ ही जिंदगी को एक पर्व के रूप में मनाते हैं न कि एक भार के रूप में जिंदगी ढोते हैं।
    मैं अपने महान देश के प्रत्येक नागरिक को चाहे वह किसी धर्म जाति संप्रदाय और पंथ का क्यों ना हो, से गुजारिश करता हूं कि वह सफाई जैसे मुद्दे पर संवेदनशील रहे। घरेलू और शारीरिक स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें। इस कार्य को आगे बढ़ाने में हमारे बच्चे अच्छी भूमिका अदा कर सकते हैं और कर भी रहे हैं।
    गांधी जी का चश्मा एक प्रतीक है जो कि भारत की स्वच्छता का प्रतीक है और भारत की स्वच्छता का विश्व स्तर पर प्रतिनिधित्व करता है।
    कोरोना महाकाल में स्वच्छता का अपना महत्वपूर्ण स्थान रहा है और इसी के कारण संक्रमण में भी कमी आई है। आज विश्व की शक्तियों में वर्चस्व के लिए युद्ध का वातावरण गतिमान है। जिससे वहां के लोग नारकीय जीवन जीने के लिए विवश हैं और वह देश चाहे विजेता हों या विजित, कम से कम 50 साल पीछे चले गए हैं। उन फलते फूलते शहरों को पूर्व पति स्थिति में लाने के लिए दशकों तक इंतजार करना पड़ेगा। जिसका खामियाजा संपूर्ण मानव जाति को भुगतना होगा।
    अहंकार और उन्माद में अंधे शासक आज विश्व को कब्र बनाने में लगे हुए हैं। लेकिन किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि सभी का मही हश्र होता है और मनुष्य का अंतिम पड़ाव की कब्र या घाट होता है।
    इसलिए जीवन के महत्व को समझते हुए स्वच्छता, सुंदरता, अहिंसा, शांति, सद्भावना, प्रेम और प्रसन्नता पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है। चाहे वह  व्यक्तिगत हो, पारिवारिक हो, सामाजिक और राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय ही क्यों ना हो।
    आज के युग में हम एक दूसरे पर आश्रित हैं और इसके लिए सद्भावना और भाईचारे की भी आवश्यकता होती है। विश्व बंधुत्व की भावना का भारत जनक रहा है। इसलिए विश्व की खुशहाली के लिए भारत समय-समय पर प्रयास करता रहा है। चाहे वह गांधी जी के द्वारा हुआ हो या मोदी जी के द्वारा हो रहे हों।
    अत: आइए और सुंदरता से युक्त एक संसार की परिकल्पना करें। जहां स्वच्छता हो, सफाई हो, अहिंसा हो, प्रेम हो, प्रकृति का संरक्षण हो, माननीय जाति का उद्धार हो और हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए एक स्वच्छ और स्वस्थ प्रकृति और संस्कृति विकसित करें।