प्रोफ़ेसर का घर!

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प्रोफ़ेसर का घर! आधुनिक निर्माण शैली में बना हुआ
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प्रोफ़ेसर का घर! आधुनिक निर्माण शैली में बना हुआ

प्रोफ़ेसर का घर! जी हां! यह प्रोफ़ेसर साहब का घर है। आधुनिक निर्माण शैली में बना हुआ है। शून्य से शिखर पर पहुंचे एक व्यक्ति के त्याग और तपस्या का प्रतिफल है।आचार्य नागदेव जी की तपस्थली, कीर्तिधर जी द्वारा जंघेश्वर सदाशिव जी द्वारा लिंगस्थापना, पुजार गांव (सकलाना) जो कि सकलानियों का उत्तराखंड में मूल गांव है, कुछ वर्ष पहले प्रोफ़ेसर दिनेश सकलानी ने अपने पुराने मकान का पुनर्निर्माण किया।

ईष्ट देवता सदाशिव जी के मंदिर में दर्शनार्थ जाते हुए अनेक बिंब मन-मस्तिष्क में उतर आते हैं। कभी पुजार गांव में जहां पर मुआफीदारन कोर्ट थी, जिसे बचपन में देखता ही रह जाता था, प्राचीन वास्तु शैली का बना हुआ वह भव्य भवन आज मिट्टी में मिल चुका है। मुआफीदारी तो राजशाही के साथ ही समाप्त हो गई थी लेकिन वह भवन 21 वी शताब्दी के प्रथम चरण तक कायम रहा, भले ही खंडहर के रूप में रहा हो।

80 के दशक में सकलाना मुआफीदारन कोर्ट के उस भवन पर राजकीय अस्पताल संचालित रहा। बचपन में सर्वप्रथम क्रोकरी के प्याले और उसके नीचे प्लेट रखकर डॉक्टर चौरसिया जी की मिसेज ने मुझे चाय उस भव्य भवन में पिलाई थी। उस समय मेरी उम्र 10 साल की थी और डाक्टर का बैग लेने आया था। इसी गांव में हमारी पित्रकुड़ी अवस्थित है।अंतिम संस्कार के बाद देश- विदेश से हमारे बंधु- बांधव लिंग वास करवाने के लिए आते हैं।

जंघेश्वर महादेव जी का मंदिर, पित्र कुड़ी, पुरानी मुआफीदारन कोर्ट और वर्तमान में प्रोफ़ेसर का घर, प्रत्यास्मरण कर और मूर्त रूप में देखकर अत्यंत सुकून मिलता है।

प्रोफ़ेसर दिनेश सकलानी जो कि वर्तमान में एनसीईआरटी के निदेशक हैं, क्षेत्र में एक जाना पहचाना नाम है। मुझसे उम्र में छोटे हैं। रिश्ते में चाचा लगते हैं। छात्र जीवन में एक दर्जा पीछे थे, लेकिन बुद्धि लब्धि में जन्मजात कई दर्जा आगे थे। प्रोफ़ेसर दिनेश सकलानी की धर्म पत्नी डा. सरला सकलानी भी प्रोफेसर हैं। सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा का वरदहस्त उनके सर के ऊपर है और यह कोई विरासत के रूप में नहीं मिला बल्कि प्रोफ़ेसर दिनेश सकलानी की तपस्या का प्रतिफल है।

प्रोफ़ेसर दिनेश सकलानी ने कुछ वर्षों पूर्व क ईस घर का निर्माण कराया जोकि पुजार गांव में आज अपने ढंग का सुंदर मकान है। कई अरमान उनके मन में रहे होंगे। माता- पिता जी ब्रह्मलीन हो गए हैं और आज भी प्रोफ़ेसर दिनेश सकलानी प्रतिवर्ष अपने घर -गांव में आकर गरीब छात्र-छात्राओं को अपनी माताजी के नाम पर छात्रवृत्ति प्रदान करते हैं।

पुराने नियम बदल जाते हैं और नया उनका स्थान ग्रहण कर देते हैं,ऐसा कभी पढा था। यही सदाशिव जी की कृपा है कि जिस पुजार गांव में कभी मुआफीदारन कोर्ट होती थी, सीनियर माफीदार स्व0 राजीव नयन सकलानी जी का भवन होता था, वहां अब यह भवन है, जिसे मैं “प्रोफ़ेसर का घर” कहता हूं। क्षेत्र के निवासियों, बुद्धिजीवियों के लिए प्रेरणा स्रोत है। साथ ही आने वाली पीढ़ी के लिए इस प्रकार के कार्य प्रेरक का काम करते हैं।

माटी का मोह क्या होता है? अपनी जड़ों से जुड़े रहने का उदाहरण क्या है? बड़ा आदमी होने पर भी कैसे अपनी जड़ों से जुड़ा रहना है, यह कोई प्रोफ़ेसर दिनेश सकलानी से सीखे। प्रोफेसर दिनेश सकलानी मेरे भले ही कभी मेरे सहपाठी नहीं रहे लेकिन उनकी काबिलियत, उनके परिश्रम, उनकी सोच और समग्रता का मैं सदैव प्रशंसक रहा हूं।

अब गांव सड़क संपर्क मार्ग से भी जुड़ चुका है। जंंघेश्वर सदाशिव का पुजार गांव स्थित मंदिर एक वैश्विक मंदिर बन चुका है। दूरदराज से लोग यहां मन्नत मांगते के लिए आते हैं। यह वह स्थल है जहां क्रांतिकारी नागेंद्र सकलानी, वृक्ष मानव विश्वेश्वर दत्त सकलानी पैदा हुए हैं और समय-समय पर जिन्होंने अनेक क्षेत्रों में अपने महान कर्मों के द्वारा वंश का नाम रोशन किया।

कवि:सोमवारी लाल सकलानी ‘निशांत’
(कवि कुटीर)

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