राज्य के पीएचडी धारी चयनित अभ्यर्थियों ने धामी सरकार से किया ये आग्रह

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राज्य के पीएचडी धारी चयनित अभ्यर्थियों ने धामी सरकार से किया ये आग्रह
राज्य के पीएचडी धारी चयनित अभ्यर्थियों ने धामी सरकार से किया ये आग्रह
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राज्य के पीएचडी धारी चयनित अभ्यर्थियों ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से आग्रह करते हुए कहा कि उत्तराखंड राज्य में लोक सेवा आयोग द्वारा विज्ञप्ति संख्या A1/DR/Degree/सेवा ०२/२०२१-२२ दिनांक 3 दिसंबर 2021 के अनुसार 455 असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर भर्ती प्रक्रिया गतिमान है। उक्त प्रक्रिया के अंतर्गत एपीआई (Academic Performance Indicator) स्कोर के आधार पर हम समस्त अभ्यर्थियों का चयन साक्षात्कार हेतु पूर्व में कर लिया गया है! साक्षात्कार हेतु समस्त अभ्यर्थियों का चयन यूजीसी के मानकों के अनुसार ही किया गया है।

यह कि वर्ष 2017 में उत्तराखंड राज्य में लोक सेवा आयोग के माध्यम से स्क्रीनिंग परीक्षा करवाकर असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर नियुक्ति की गई थी। किंतु उक्त प्रक्रिया के कारण उस भर्ती में उत्तराखंड राज्य के निवासियों से ज्यादा राज्य से बाहर के अभ्यर्थियों का चयन किया गया था। क्योंकि उस प्रक्रिया में केवल स्क्रीनिंग को आधार माना गया था जबकि एपीआई स्कोर को स्थान नहीं मिला था जिस कारण उत्तराखंड राज्य के पीएचडी उपाधि धारक अभ्यर्थी साक्षात्कार हेतु चयन से वंचित रह गए थे। जबकि वर्ष 2017 से पूर्व उत्तराखंड राज्य में असिस्टेंट प्रोफेसर पदों की भर्ती हेतु हर बार एपीआई स्कोर के आधार पर साक्षात्कार हेतु अभ्यर्थियों का चयन किया गया था जिसमें अधिकतम अभ्यर्थी उत्तराखंड राज्य के ही चयनित हुए थे।

वर्तमान में सोशल मीडिया के माध्यम से हमारे संज्ञान में आया है कि विभिन्न दलों/एपीआई आधार पर साक्षात्कार हेतु चयन से वंचित रह गए अभ्यर्थियों द्वारा शासन प्रशासन पर यह दबाव बनाया जा रहा है कि राज्य में असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती में राज्य सरकार द्वारा धांधली की जा रही है।

भाजपा प्रवक्ता रविंद्र जुगराण द्वारा बार-बार विभिन्न समाचार पत्रों में यह भ्रामक सूचना फैलाई जा रही है की एपीआई के आधार पर राज्य से बाहर के अभ्यर्थियों का चयन किया गया है जबकि यह सूचना बिल्कुल गलत है हम इसका खंडन करते हैं। एपीआई के आधार पर अधिकतम उत्तराखंड राज्य के निवासियों का चयन साक्षात्कार हेतु किया गया है, बल्कि ऐसे अभ्यर्थियों का चयन किया गया है जिन्होंने अपनी पीएचडी उपाधि कठिन परिश्रम से प्राप्त की है एवं अधिकतम अभ्यर्थी उत्तराखंड राज्य के निवासी हैं। रविंद्र जुगराण द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि उत्तराखंड राज्य में शोध करने को लेकर बेहतर माहौल नहीं है और छात्रों के लिए शोध संबंधी व्यवस्थाओं का अभाव है जबकि ऐसा नहीं है उत्तराखंड सरकार लगातार शोध क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए तथा शोधार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न प्रयास कर रही है एवं नई शिक्षा नीति २०२० में भी शोध कार्यों को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए गए हैं।

यह भी अनुचित मांग की जा रही है कि उक्त पदों पर चयन हेतु हेतु एपीआई स्कोर को आधार न मानकर स्क्रीनिंग परीक्षा करवाई जाए और स्क्रीनिंग परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों को ही साक्षात्कार हेतु आमंत्रित किया जाए। उक्त प्रक्रिया अपनाने से एक बार पुनः राज्य के पीएचडी उपाधि धारक अभ्यर्थी उक्त पदों पर चयन के अवसर को प्राप्त नहीं कर पाएंगे और अपने उद्देश्य पाने से वंचित रह जाएंगे।

यदि एपीआई के आधार पर असिस्टेंट प्रोफेसर पदों पर चयन नहीं किया जाता है तो इससे भविष्य में शोध के प्रति अभ्यर्थियों की रुचि पर भी प्रभाव पड़ेगा। जबकि भारत सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति २०२० के अनुसार बार-बार इस बात पर जोर दिया गया है कि देश के सर्वांगीण विकास हेतु छात्रों में शोध के प्रति रुचि बढ़ाने की आवश्यकता है। यदि इस प्रकार शोध उपाधि प्राप्त कर चुके अभ्यर्थियों की उपेक्षा की जायेगी तो ऐसा करना शोध कार्यों से जुड़े अभ्यर्थियों के मन में भी निराशा को जन्म देगी। क्योंकि शोध कार्य हेतु प्रत्येक अभ्यर्थी/शोधकर्ता एक मूल विषय से किसी विशिष्ट उप विषय का चयन कर अपने जीवन के बहुमूल्य 5 से 8 वर्षों तक जी तोड़ मेहनत करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की जाती है।

शोध कार्य में किसी अभ्यर्थी का इतना समय व्यतीत हो जाता है कि उसे किसी अन्य परीक्षा की तैयारी करने का समय ही नहीं मिल पाता और वह अभ्यर्थी किसी भी प्रकार की स्क्रीनिंग परीक्षा देने की स्थिति में नहीं रहता है। शोध कार्य किसी भी अभ्यर्थी द्वारा अपने भविष्य को बेहतर बनाने के लिए और उच्च शिक्षा सेवा में चयन की कामना को लेकर ही किया जाता है। अतः ऐसी दशा में एपीआई स्कोर को हटा कर लिखित परीक्षा के माध्यम से असिस्टेंट प्रोफेसर पदों पर नियुक्ति किया जाना कतई उचित नहीं है।

दिनांक 27 जुलाई 2022 को माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल उत्तराखंड द्वारा उक्त विज्ञप्ति को दिव्यांग जनों हेतु आरक्षण निर्धारित न किए जाने के कारण अग्रिम आदेशों तक निरस्त करने का आदेश जारी किया गया था, जिसे दिनांक ३० अगस्त 2022 को पुनर्विचार कर वापस लिया गया। साथ ही दिव्यांग जनों हेतु 4% क्षैतिज आरक्षण देने हेतु आदेश जारी कर भर्ती प्रक्रिया शीघ्र शुरू करने हेतु आदेश जारी किया गया। उक्त प्रक्रिया में लगभग 2 माह का समय व्यतीत हो गया जिस कारण भर्ती प्रक्रिया में पहले ही काफी विलंब हो चुका है।

कतिपय साक्षात्कार हेतु एपीआई स्कोर आधार पर चयन प्रक्रिया से वंचित रह गए अभ्यर्थियों द्वारा भ्रामक जानकारी उत्तराखंड लोक सेवा आयोग एवं शासन के खिलाफ यह बोलकर फैलाई जा रही है कि चयन में धांधली हुई है तथा चयनित अभ्यर्थी उत्तराखंड से बाहर के हैं, जबकि अधिकतम चयनित अभ्यर्थी उत्तराखंड राज्य के निवासी हैं।

उन्होंने आग्रह किया कि आयोग द्वारा विज्ञापित इस इस भर्ती प्रक्रिया को जो कि अब अपने अंतिम स्तर पर पहुंच चुकी है, संसाधन एवं समय दोनों की उपयोगिता को देखते हुए इस भर्ती को शीघ्र अतिशीघ्र पूर्ण करवाने की कार्यवाही की जाय। यह आग्रह चयनित अभ्यर्थियों द्वारा सीएम हेल्पलाईन पर प्रेषित किया गया है।

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