होली पर कविता: बसन्ती रंग

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बसन्त आ गया, प्रकृति में बहार छा गई।

नीले, पीले, हरे रंग में, मानो सब खो गए।।

[su_highlight background=”#880e09″ color=”#ffffff”]@Dr. Dalip Singh Bisht[/su_highlight]

बसन्ती रंगों में, सब रंग गये।
रंग-बिरंगे फूलों जैसे, चेहरे महक गये।।
फाल्गुनी रंग की छटा, चहु ओर बिखर गई।
रंगों में सब चेहरे, एक से हो गए।।
कौन, कौन है, यह पहचान गुम हो गई।
सब एक समान, रंगों में तर हो गये।।
बसन्ती रंग का नशा, सब पर छाने लगा।
रंगों के त्योहार होली का, रंग सब पर चढ़ने लगा।।
आओ सब मिलकर, होली मनायें।
मनमिटाव भूल कर, सब गुलाल लगायें।।
बसन्त की बहार, रंगों का त्योहार।
होली के रंगों की, आ गई बहार।।
आओ सब मिलकर, रंगों का त्योहार मनायें।
खुशियों का मिलकर, सबको एहसास करायें।।
बसन्त की बहार, प्रकृति में छा गई।
फाल्गुनी रंगों में, सब रंग गए।।

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