विश्व हिंदी दिवस: राष्ट्रभाषा हिंदी का उद्भव, विकास और स्वरूप

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    पलायन पर कविता
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    विश्व हिंदी दिवस: राष्ट्रभाषा हिंदी का उद्भव, विकास और स्वरूप 

    विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर प्रात:काल से ही सोशल मीडिया में हिंदी के शुभकामना संदेश देख रहा हूं। चित्रात्मक और कलात्मक इन संदेशों में हिंदी के विकास का परिदृश्य झलकता है। इसलिए हिंदी दिवस पर कुछ लिखना समीचीन है। हिंदी भारत की प्राचीनतम संस्कृत भाषा का रूप है। संस्कृत कालीन बोलचाल की भाषा विकसित होने के साथ ही 500 ईसवी पूर्व के बाद काफी बदल गई। इसका बदला हुआ स्वरूप, बाद में पाली, प्राकृत तथा अपभ्रंश के रूप में सामने आया। अपभ्रंश से ही अनेक भारतीय भाषाएं और उप भाषाओं का जन्म हुआ।

    मूलतः जिस खड़ी बोली को हम हिंदी भाषा का दर्जा देते हैं, उसके दो रूप हैं, एक तो साहित्यिक हिंदी और दूसरी मेरठ और दिल्ली के आसपास बोले जाने वाली लोक बोली, जिसका की प्रचार और प्रसार अन्य भाषाओं के संपर्क में आने के कारण संपूर्ण उत्तर भारत में हुआ। अपभ्रंश से अनेक क्षेत्रीय रूप भाषा के रूप में परिलक्षित हुए। शौरसेनी, पैशाची, मगधी, अर्धमगधी, पहाड़ी, बिहारी, राजस्थानी, ब्रजभाषा, हरियाणवी, बुंदेली, कन्नौजी, अवधी, छत्तीसगढ़ी, राजस्थानी, मैथिली, भोजपुरी आदि अनेक रूपों में या विकसित हुई। हिंदी के भाषाई महासागर में समा गई।

    हिंदी शब्द का संबंध संस्कृत शब्द सिंधु से माना जाता है। ‘सिंधु’ सिंध नदी को कहते थे और उसी आधार पर उसके आसपास की भूमि को सिंधु कहने लगे। सिंधु शब्द ईरानी में जाकर ईक प्रत्यय लगने से हिंदीक बना। जिसका अर्थ है हिन्द का। यूनानी शब्द इंदिका या अंग्रेजी शब्द इंडिका आदि आदि इस हिंदीक के ही विकसित रूप है। हिंदी भी हिंदीक का ही परिवर्तित रूप है और इसका मूल अर्थ है- हिन्द का।

    आदिकाल से आधुनिक युग तक आते -आते ब्रज, अवधी, भोजपुरी, मैथिली आदि कई बोलियों का व्याकरणिक अस्तित्व इतना स्वतंत्र हो गया कि इन्हें बड़ी सरलता में भाषा की संज्ञा दी गई। हिंदी प्रायः पूर्णता एक वियोगात्मक भाषा हो गई। प्रेस, रेडियो, शिक्षा तथा व्याकरणिक विश्लेषण आदि के प्रभाव से हिंदी व्याकरण का रूप काफी स्तर हो गया। कुछ अपवादों को छोड़कर हिंदी व्याकरण का मानक रूप सुनिश्चित हो गया है। ध्वनि व्यवस्था, रूप रचना, वाक्य गठन तथा शब्द भंडार की दृष्टि से भी हिंदी पूर्ण है। संविधान के 351 अनुच्छेद के अनुसार, संपर्क भाषा के रूप में भी हिंदी का विकास होता जा रहा है। इस प्रकार राष्ट्रभाषा के रूप में इसका स्वरूप एक प्रकार से सार्वदेशिक हो गया है।

    हिंदी भाषा देश के दो- तिहाई भूभाग में सैकड़ों वर्षो से संपर्क भाषा के रूप में विद्यमान है। अपने जन्म काल से हिंदी जन -भाषा और राष्ट्रभाषा दोनों होने का इसे गौरव प्राप्त है। हिंदी भारतीय जन जीवन एवं संस्कृति की माध्यम भाषा रही। वह धर्म- संस्कृति की ही नहीं, व्यवसाय की भाषा भी रही है। उसी के आधार पर उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम में प्राय धर्म प्रचार और वाणिज्य व्यापार चलता था। कश्मीर से लेकर सुदूर दक्षिण और कच्छ से लेकर असम तक फैली हुई देव गृहों की श्रंखला इसका जीवंत प्रमाण रहा है।

    रामचरितमानस अथवा उसके कुछ अंशों का अनुवाद भारत की कम से कम आठ – दस भाषाओं में हुआ है । भाषाओं की व्यापकता के साथ-साथ हिंदी का स्वरूप हमेशा ही सर्वाधिक व्यापक है । हिंदी का अत्यंत सरल वांग्मय है। इसमें शक्ति और माधुर्यता अपने कलेवर में समेटकर हिंदी की क्षमता का अभूतपूर्व विकास करती है।

    इसका शब्द भंडार, रचना प्रवृत्ति, भाषाई प्रयोग, वैविध्य, अपूर्व है। आज भारत की विभिन्न भाषाओं के संपर्क से इसकी क्षमता और भी अधिक विकसित हो गई है। प्राचीन और अर्वाचीन बांगमय को मिलाकर देखें तो गुण और परिणाम दोनों की दृष्टि से हिंदी कविता सर्वाधिक संपन्न है। कालजई कृतियों का इतना बड़ा संग्रह और उच्च कोटि की काव्य कारों का समारोह अन्यत्र दुर्लभ है।
    राष्ट्रभाषा हिंदी में हमेशा राष्ट्रीयता की भावना भरी हुई रही है।

    अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में जहां प्रादेशिकता अधिक रही है। जैसे-बंगाल में सोनार बंगाल, मराठी में हिंदू राष्ट्रीयता, पंजाब में सिख भावना, उर्दू में मुस्लिम भावना, तमिल में दक्षिणत्त्य संस्कृति, वहीं हिंदी साहित्य में हमेशा राष्ट्रीयता का भाव समाहित रहा है। हिंदी में जहां एक ओर हिमालय का स्तवन हुआ, वही हिंद महासागर का भी उदाहरण प्रस्तुत है।

    राजपूत योद्धाओं की प्रशस्ति से लेकर सिख वीरों, अशोक, चंद्रगुप्त और अकबर के कीर्ति गाथा हिंदी साहित्य का अंग रही है। हिंदी साहित्य कभी तिलक गांधी और जवाहरलाल में भेद उत्पन्न नहीं करता।

    गांधी दर्शन की जितनी शुद्ध और प्रमाणिक अभिव्यक्ति सियाराम शरण गुप्त के काव्य में मिलती है उतनी किसी गुजराती काव्य में नहीं मिलती। अंग्रेजी के रूमानी कविता का प्रभाव जब हिंदी भाषा पर पड़ा तो हिंदी भाषा का छायावाद का रूप विकसित हुआ। रम्य और अद्भुत का जो सुंदर संयोग प्राप्त हुआ उसे स्वच्छतावाद का उदय हुआ। हिंदी में गद्य का विकास ही कुछ देर में हुआ। बांग्ला और मराठी के लेखक क्षेत्र में काफी आगे बढ़ चुके थे, फिर भी सामाजिक मूल्यों के आधार पर हिंदी एक सशक्त भाषा रही है।

    गांधी युगीन भारत के सामाजिक, राजनीतिक जीवन का सबसे सशक्त और प्रमाणिक साहित्य दस्तावेज प्रस्तुत करने का श्रेय भी हिंदी लेखक प्रेमचंद को जाता है। आलोचना, आलोचना शास्त्र तथा शोध हिंदी साहित्य के अत्यंत पुष्ट अंग है। ज्ञान के क्षेत्र में भी हिंदी की अपेक्षा कुछ अन्य भाषाएं अग्रणी रही है लेकिन यहां भी उनसे बड़ी जल्दी (हिंदी ने) अपने को उबार दिया।

    विश्व के विभिन्न देश और उसकी भाषाएं बहुत काफी निकट आ गई हैं । हिंदी को आज न केवल भारतीय की बल्कि अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में अपनी शक्ति और सीमा का आकलन करने का अवसर प्राप्त है। यह हिंदी के लिए अत्यंत शुभ है।
    विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर मैं समस्त हिंदी प्रेमियों, साहित्यकारों, तथा राष्ट्रभाषा हिंदी के विकास में योगदान देने वाले, जाने-अनजाने अनेक मनीषियों को नमन।

    @कवि सोमवारी लाल सकलानी, निशांत
    सुमन कॉलोनी, चंबा, टिहरी गढ़वाल।

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