राजनीतिज्ञ के साथ-साथ सोशल इंजीनियरिंग के विशेषज्ञ भी थे हिमालय पुत्र हेमवती नंदन बहुगुणा

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    हिमालय पुत्र स्वर्गीय हेमवती नंदन बहुगुणा, भारत के महान नेताओं में से एक रहे हैं। वे एक कुशल राजनीतिज्ञ होते के साथ -साथ सामाजिक, आर्थिक और सार्थक सांस्कृतिक मूल्यों के भी नियामक रहे हैं।

    सरहद का साक्षी @कवि:सोमवारी लाल सकलानी, निशांत

    स्वर्गीय श्री बहुगुणा जी का हमारे क्षेत्र सकलाना से विशेष महत्व रहा है। लगाव रहा है। अनेकों बार उन्होंने हमारी पट्टी- सकलाना के सत्यों (पुजार गांव) में उपस्थित होकर अपनी महानता का परिचय दिया। इसका श्रेय  वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार आदरणीय सोमवारी लाल उनियाल ‘प्रदीप’ स्व.ठाकुर वीर सिंह कंडारी और स्वर्गीय विशेश्वर दत्त सकलानी को जाता है उनकी निकटता के कारण बहुगुणा जी का क्षेत्र के विकास में उल्लेखनीय योगदान रहा है। कद्दूखाल कुमाल्डा मोटर मार्ग, राजकीय इंटर कॉलेज उन्हीं की देन है।

    स्वर्गीय एच.एन. बहुगुणा एक बार जब सत्यों में आए तो मैं उस समय की स्कूल स्टूडेंट था। मंच पर बहुगुणा जी के साथ कांग्रेस के बड़े नेता बैठे हुए थे। दूर पंडाल में साधारण कुर्ता-पायजामा पहने, झोला कंधे में लटकाये एक व्यक्ति बैठा था। नाम था- मतीराम जी। बहुगुणा जी की नजर भीड़ के बीच में उस व्यक्ति पर पड़ी, उन्होंने अपने साथियों के साथ कुछ कानाफूसी की और फिर थोड़ी देर बाद जोर से आवाज लगाते हुए बोले, “मात्या दा, मी बोलन छौं कि त्यारी सीट तख च” और मतीराम को मंच पर बुलाकर अपने बगल में बैठा दिया।

    संबंधित व्यक्ति कांग्रेस पार्टी का एक छोटा सा कार्यकर्ता था। अनुसूचित जाति का व्यक्ति होने के नाते इतना बड़ा आदर 80 के दशक में मिलना किसी व्यक्ति के लिए गौरव की बात थी। लोगों का भावनात्मक लगाव बहुगुणा जी के साथ बढ़ गया क्योंकि उस समय तत्कालीन लोकप्रिय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के प्रति मातृशक्ति और स्थानीय जनता का बड़ा लगाव था। और बहुगुणा जी का प्रधानमंत्री जी के साथ शीत युद्ध चल रहा था। यह उनकी राजनीतिक कौशल का प्रमाण है।

    बहुगुणा जी एक महान योजनाकार थे। गढ़वाल के निवासी होने के नाते यहां की भौगोलिक और क्षेत्रीय विषमताओं से और रू-ब-रू थे। ज्वलंत मुद्दों पर उनका गहरा ध्यान जाता था। वह कागजी सोच के नेता नहीं थे बल्कि क्षेत्रीय परिस्थितियों के अनुरूप विकास योजना बनाने की भी माहिर थे।

    पहाड़ी घास, जलाऊ लकड़ी के अलावा पहाड़ी जड़ी- बूटियों, पशुपालन आदि के प्रति भी उनका लगाव था। उन्होंने पृथक पर्वतीय परिषद बना करके उत्तराखंड राज्य की नीव अपने समय डाल दी थी। केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री के रहते हुए उन्होंने गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा के योगदान को भी स्थान दिया और राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दी। इसके साथ ही वे अपने अधीनस्थ अधिकारी और कर्मचारियों का भी ध्यान रखते थे और केंद्र के बराबर डी.ए. दिलवाना, उन्ही का ही योगदान है। इसके साथ ही पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य का जाल बिछाना,उनकी नीतियों में से एक था। जिनका सीधा लाभ जनता को मिल रहा है।

    उनकी सोच थी कि राष्ट्रीय संस्थाओं का “लाइव टू लैंड” नारे के साथ संस्थानों का तालमेल होना चाहिए, जो कि बुनियादी बात थी। स्वर्गीय बहुगुणा जी लघु उद्योग, घरेलू ग्राम उद्योग, कुटीर उद्योग, पर्यावरण, फाइनेंसिंग और मार्केटिंग का बंदोबस्त आदि के प्रति भी संवेदनशील थे। इसके साथ ही उनका यह मिशन रहता था कि कहीं बड़ी मछली छोटी मछली को न खा जाए ! इसके लिए उन्होंने उत्तराखंड में सर्वप्रथम शिक्षा व्यवस्था पर भी ध्यान दिया। उनका मानना था कि शिक्षार्थी अपने वायुमंडल से कटकर ऐसे सपनों में न चला जाए जिसका उसे जीवन में दर्शन ही ना हो पाए। इसलिए सामाजिक मानसिकता के आधार पर भी ध्यान देना परम आवश्यक है। उनका मानना था कि हिमालय को पुनर्जीवित करने  तथा पेयजल संबंधी समस्या का हल करने के लिए अनेक नवाचार किए। योजनाएं बनाई और लोगों को जागरूक किया। उनका मानना था कि कमर्शियल फारेस्ट्री के द्वारा हिमालय का अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है। इससे वह हर समय बीमार हिमालय के स्वच्छता,स्वास्थ्य का ध्यान रखते थे।

    वह प्राणी मित्र, धरती मित्र और जलवायु मित्र वृक्षों के  ऊंचाई के स्थानों पर विकसित करने के पक्षधर थे। और वन पंचायतों को सशक्त बनाने की भी हिमायती थे। मातृशक्ति के पीठ का भार कम करने के लिए वह हर समय तत्पर रहते थे और उन्होंने पहाड़ों में बिजली और सड़क योजनाएं बनवायी। लोगों को सस्ते दाम पर बिजली,मिट्टी का तेल आदि उपलब्ध करवाया ताकि लकड़ी और कोयले की छुट्टी हो जाए, पहाड़ में बनने वाली विद्युत परियोजनाओं के बारे में उनका मानना था कि कम से कम 10% बिजली लोगों को मुफ्त दी जाए। छोटी पन बिजली,पवन चक्की और गोबर गैस प्लांट की योजनाएं भी बनाने की उन्होंने योगदान रहा।

    एच.एन. बहुगुणा पहाड़ का मानना था कि भौगोलिक स्थितियों के अनुरूप प्रशासनिक इकाइयां छोटी होनी चाहिए और उत्पादित वस्तु का वजन कम और दाम ज्यादा हो। इसके लिए उन्होंने ट्रांसपोर्ट ने रोडवेज पर भी जोर देना शुरू किया।

    बहुगुणा जी का मानना था कि हर नागरिक को भोजन एक ही दाम पर उपलब्ध हो।पिछड़े क्षेत्रों में स्कूल खुलें। वहां लाइब्रेरी और लैब की व्यवस्था हो। पीने के लिए स्वच्छ पानी उपलब्ध कराया जाए तथा पर्यटन उद्योग को बढ़ाने के लिए भी योजनाएं बनाई जाएं। विश्वविद्यालयों में सैनिक शिक्षा के कोर्स चलाए जाएं। पर्वतीय क्षेत्रों में मुख्य व्यवसाय सैनिक भर्ती भी है।

    बहुगुणा जी का मानना था कि मूलत ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि एक ओर उत्तराखंड में स्थापित केंद्रीय प्रादेशिक शोध संस्थान और विश्वविद्यालयों का तालमेल हो, वहीं दूसरी ओर मूल प्रतिभाओं को जागृत कर विकास में सहभागी बनाया जाए क्योंकि उत्तराखंड का भविष्य यहां की खेती- बाड़ी, जड़ी-बूटी,लघु उद्योग, वनस्पति,शिल्प आदि में निहित है।

    उन्होंने पशुधन मे ‘डंगर से कामधेनु’ के रूप में मिशन चलाया। जितना हो सका पर्वतीय क्षेत्रों का विकास किया। वह लोग से लोकतंत्र का आधार मानते थे। उनका हर समय यह ध्यान रहता था कि पर्वतीय क्षेत्रों की मां -बहनों को घास, लकड़ी, पानी आदि की परेशानी से छुटकारा मिले। धुएं और धूल से  मुक्ति मिले, स्वच्छ वायु मंडल में वह सांस लें, इसके लिए उन्होंने नई- नई योजनाएं, पर्वतीय क्षेत्रों के अनुरूप बनाई। इसलिए गर्व के साथ हम कह सकते हैं कि स्वर्गीय श्री हेमवती नंदन बहुगुणा एक कुशल राजनीतिज्ञ के साथ-साथ सोशल इंजीनियरिंग के भी विशेषज्ञ थे।