संस्कारों से ही चरित्र बनता है
प्रस्तुति: हर्षमणि बहुगुणा एक कहावत है कि ‘यदि धन नष्ट होता है तो कुछ भी नष्ट नहीं हुआ, यदि स्वास्थ्य नष्ट होता है तो कुछ अवश्य नष्ट होता है, परन्तु यदि चरित्र नष्ट होता है तो समझो सब कुछ नष्ट हो जाता है’ । वास्तव में चरित्र ही जीवन की आधारशिला है, उसका मेरुदंड है। राष्ट्र की सम्पन्नता चरित्र वान लोगों की ही देन ह, जिस राष्ट्र के निवासी चारित्र्य से विभूषित होते हैं वही राष्ट्र प्रगति के पथ…