योग और आयुर्वेद का अन्योन्याश्रित संबंध है। वर्तमान में महामारी कोरोना के कारण जहां पूरा विश्व त्रस्त है, वहां योग और आयुर्वेद की प्रसंगिकता और अधिक बढ़ जाती है।
सरहद का साक्षी @कवि :सोमवारी लाल सकलानी, निशांत
25 वर्ष बाद सुरसिंगधार, टिहरी गढ़वाल में, वैद्य श्री दयानंद शर्मा (बेलवाल) जी के पास गया। 83 वर्ष के वयोवृद्ध वैद्य जी अभी भी बिना चश्मा पहने हुए गंभीर रोगियों का आयुर्वेद प्रणाली के द्वारा उपचार करने में निमग्न हैं। दवा के सिलसिले में उनसे मिला और इस बहाने कई बातें उनके साथ हुई। अपना व्यस्ततम समय देने के लिए मैं उनका धन्यवाद करता हूं। वैद्य श्री दयानंद शर्मा जी, सारजूला पट्टी (टिहरी गढ़वाल) के ग्राम नवागर (ज्ञानसू) के रहने वाले हैं और कई पीढ़ियों से आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के द्वारा रोगियों का इलाज करते आए हैं।
इंडियन मेडिकल बोर्ड ,लखनऊ से पारंपरिक चिकित्सक के रूप में आयुर्वेदिक विशारद की उपाधि प्राप्त, वैद्य जी की सुरसिंगधार, टिहरी में औषधिशाला है। वैद्य जी अपने विशद अनुभव तथा ज्ञान के द्वारा, विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियों को एकत्रित करके औषधि बनाते हैं, जो कि रोगियों के लिए रामबाण है।
अपने आयुर्वेदिक नुस्खे के द्वारा वह लगातार 65 -70 वर्षों से उपचार करते आए हैं ।कोरोना महामारी के कारण आजकल यद्यपि रोगियों की संख्या कम है। लेकिन फिर भी टिहरी गढ़वाल के दूर-दूर के क्षेत्रों से यहां पर दवा के लिए रोगी आए हुए थे ।
गठिया, जोड़ों का दर्द, महिलाओं की बीमारियां, जीर्ण रोग, वात पित्त और कफ संबंधी बीमारियों के लिए वैद्य जी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं।
वैद्य जी के पिताजी, दादा जी और परदादाजी भी खानदानी वैद्य रहे हैं। क्षेत्र में उनकी लोग बहुत इज्जत करते हैं। आर्थिक रूप भी सुदृढ़ स्थिति है। वैद्य दयानंद शर्मा जी बहुत ही सरल और मधुर स्वभाव के व्यक्ति हैं ।रोगी के उनके पास पहुंचने पर ही उनके व्यवहार और कार्यशैली से आधा रोग दूर हो जाता है ।मैं उनके शतायु होने की परमेश्वर से कामना करता हूं।
योग के प्रति भी उनका दृष्टिकोण बहुत ही अनूठा है ।उनकी दिनचर्या में ही योग समाया हुआ है। वृद्धावस्था में भी सतत प्रतिदिन सैकड़ों लोगों का इलाज करते हैं ।लेकिन उनके चेहरे की दिव्यता और कांति फीकी नहीं पड़ती है।
यूं तो हमारे सकलाना क्षेत्र तथा चंबा के इर्द-गिर्द अनेकों वैद्यराज हुए हैं। जिनमें श्री जयानंद उनियाल, वैद्य मनोहर लाल उनियाल, डॉ मोहन लाल उनियाल, वैद्य शिव शरण उनियाल, श्री जयदेव उनियाल, श्री लीलाधर उनियाल आदि। अनेकों लाइलाज रोगियों को भी अपने अनुभव, ज्ञान और परंपरागत चिकित्सा प्रणाली के द्वारा समय-समय पर स्वस्थ किए हैं।
चंबा में डॉक्टर मोहन लाल उनियाल जी सुप्रसिद्ध वैद्य थे। एक कुशल वैद्य और आयुर्वेदाचार्य थे। संस्कृत भाषा में उनकी पकड़ अनूठी थी। उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता का गढ़वाली में भी अनुवाद किया। मेरे पड़ोस में वैद्य जगदीश प्रसाद मैठाणी भी अपनी विद्या के द्वारा अनेकों असाध्य रोगियों का इलाज कर चुके हैं और स्वयं के शोध पर आधारित दवाइयों को ही रोगियों को देते हैं।चंबा में वैद्य इंद्रदत्त थपलियाल (चरक क्लीनिक) सुप्रसिद्ध वैद्य थे।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर मैं इन तमाम वैद्यराज का नमन करता हूं जिनके ज्ञान और अनुभव के द्वारा आज भी हजारों लोगों की जिंदगी बच रही है।