अभिलाषा: मुस्कुराता हुआ मरूं!

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पलायन पर कविता
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 ईश्वर ! जब मेरा देहावसान हो,

तो मेरी आंखों से एक भी आंसू न बहे।

मेरी इच्छा है – मैं मुस्कुराता हुआ मरूं।
मैं जीवन भर आंसुओं को पीता रहा,
कभी गम तो कभी खुशियों के आंसू को।

[su_highlight background=”#880e09″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @कवि:सोमवारी लाल सकलानी, निशांत[/su_highlight]

एक ही मन्नत है-अरदास है।
मन में एक ही अंतिम इच्छा है!
जब मृत्यु शैया पर लेटूं तो तृप्ति से मरूं,
जैसे मेरे पिता और माता तृप्ति से मरे।
मैं उनकी कसौटी पर शत-प्रतिशत खरा उतरा हूं।

उनका जीवन संघर्षों में गुजरा,
उन्हें मुझ पर विश्वास था।
और तूने उनकी इच्छाएं पूर्ण की।
हे प्रभु ! मेरी भी यही तमन्ना है।
मेरी मन्नत पूरी करना।

जब मैं मरूं-
तो आंखों से एक भी आंसू न बहे।
बस ! एक इच्छा है-
जब शाश्वत सत्य सम्मुख आये,
तो मैं मुस्कुराता हुआ मरूं।