विजय दिवस: 1971 के वीर शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि और पराक्रम को कोटि-कोटि सलाम

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    “विजय दिवस” के अवसर पर वीरगति को प्राप्त हुए जांबाजों, वीरांगनाओं और वीर नारियों को नमन करते हुए वर्ष सन् उन्नीस सौ इकहत्तर के वीर शहीद सैनिकों को श्रद्धांजलि और पराक्रम को कोटि कोटि सलाम।

    [su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @कवि : सोमवारी लाल सकलानी, निशांत[/su_highlight]

    दूसरे प्रदेश में होने के कारण शौर्य स्मारक पर सम्मान समारोह में सम्मिलित होने का आज सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ।

    वर्ष 1971 की लड़ाई में भारतीय सेना की शौर्य और पराक्रम की कथा सदैव स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगी। इस महायुद्ध में भारत की मुक्ति वाहिनी ने अपने अदम्य शौर्य का प्रदर्शन करके पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों का सरेंडर अरोड़ा और जनरल नियाजी को अपनी पिस्तौल लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा को सौंपनी पड़ी और पाकिस्तान ने हार स्वीकार कर ली थी।

    उन वीर सैनिकों, शहीदों और वीरांगनाओं के सम्मान के लिए आज के दिन विजय दिवस मनाया जाता है । भारत के रण कौशल को आज भी लोग याद करते हैं । जब जनराल जैकब और जनरल नियाजी ने हमारे घुटने टेक दिए थे।

    तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने देर रात भारत के जनरल साहब से विचार विमर्श किया । लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने पूर्वी पाकिस्तान को जीत लिया था।

    इस युद्ध में 3900 सैनिक भारत के शहीद हुए थे, 9851 सैनिक घायल हुए थे। जनरल मूसा भाग गया था । जनरल भुट्टो भी डर के मारे गया। विश्व प्रसिद्ध भारत की सेना जब पूर्वी पाकिस्तान में घुसी, जनरल मूसा ने भारत की शांति भंग करने के लिए लाखों उपाए किए लेकिन बाद में घुटनों के बल गिर जाना पड़ा । मोर्चे पर भारत के 3000 सैनिक ,दुश्मन के 26000 सैनिकों पर भारी पड़े और अपनी कुशल रणनीति के बल पर मलिक को इस्तीफा देना पड़ा था।

    जनरल जैकब को मानिक शाह जी ने युद्ध के लिए ललकारा और पराजित किया। जनरल नियाज़ी ने अपनी पिस्तौल थमा दी और इस प्रकार पाकिस्तान ने हार स्वीकार कर ली थी।

    पाकिस्तान की काली करतूतों पर एक बार फिर पानी फिर गया। भारत मां के रण बांकुरों का चारों ओर अभिनंदन होने लगा। दुश्मन की कायराना हरकतों का भारत ने एक बार फिर मुंह तोड़ जवाब दिया था।आज प्रत्येक भारतवासी आपने शहीद वीर सैनिकों, पूर्व सैनिकों, वीरांगनाओं और वीर माताओं को नमन करते हुए उनको सम्मानित करते हुए फक्र महसूस करता है।

    विश्व के इतिहास में इतनी बड़ी विजय किसी देश को इस तरह प्राप्त नहीं हुई थी। पाकिस्तान के सरेंडर करना पड़ा। बांग्लादेश नए राष्ट्र का जन्म हुआ और भारत के शौर्य और पराक्रम की गाथा स्वर्ण अक्षरों में अंकित हुई। उपलक्ष में विजय दिवस प्रतिवर्ष 16 दिसंबर को मनाया जाता है।