अपरिमित सुख की प्राप्ति के लिए करें यम द्वितीया या भाई दूज का व्रत

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यम द्वितीया या भैया दूज

“सूर्य की पत्नी संज्ञा से यम और यमुना दो संतानें हुई। संज्ञा सूर्य की प्रचण्ड किरणों को सहन न कर सकी अतः उत्तरी ध्रुव में छाया बनकर रहने लगी। उसी छाया से ताप्ती नदी और शनि देव का जन्म हुआ और फिर अश्विनी कुमारों का जन्म हुआ जो देवताओं के भिषज हैं।

छाया जो यम व यमुना की विमाता थी, शायद सौतिया डाह से विमाता की तरह रूखा व्यवहार रहने लगी इस कारण यमराज ने एक नई यमपुरी का निर्माण किया जहां पापियों को दण्ड देने का फैसला किया जाता है।

[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @आचार्य हर्षमणि बहुगुणा[/su_highlight]

यह देख यमुना भी गोलोक चली गई और कृष्णावतार के समय भी वहीं रही। काफी समय व्यतीत होने पर एक दिन यम को बहिन की याद आई स्वयं तथा दूतों के द्वारा खोज की पर यमुना नहीं मिली अतः यम स्वयं गोलोक आए व वहां विश्राम घाट पर यमुना जी से भेंट हुई।

भाई को देख कर यमुना बहुत प्रसन्न हुई और आत्म विभोर हो कर स्वागत, सत्कार किया तथा भोजन भी करवाया। इससे प्रसन्न होकर यम ने यमुना से वर मांगने के लिए कहा –

*इस पर यमुना ने यमराज से प्रार्थना की कि भैया मैं आपसे यह वर चाहती हूं कि ‘जो मेरे जल में स्नान करे उसे यम का भय न हो!’ यह वर बहुत कठिन था, यमराज असमंजस में पड़ गये, अतः यमुना ने कहा- भैया आप चिन्ता छोड़ मुझे यह वरदान दें कि “आज कार्तिक कृष्ण पक्ष द्वितीया तिथि को जो भी व्यक्ति अपनी बहिन के घर में भोजन करेगा व यमुना स्नान करेगा तथा इस मथुरा नगरी में विश्राम करेगा वह यमपुरी न जाय।”

यमराज ने इसे स्वीकार कर कहा कि आज के दिन जो भी व्यक्ति अपनी बहिन के घर भोजन नहीं करेगा उसे मैं बांधकर यमपुरी ले जाऊंगा और तुम्हारे जल में स्नान करने वालों को स्वर्ग की प्राप्ति होगी। तभी से यह यम द्वितीया का त्योहार मनाया जाता है।

भाई बहिन के प्रेम का प्रतीक यह त्योहार मनाया जाता है, इस दिन बहिन भाई की पूजा कर उसकी दीर्घायु की कामना करती है तथा अपने सौभाग्य की कामना करती हुई यमराज से यह प्रार्थना करती है कि भाई आज का दिन भैया दूज या यम द्वितीया के रूप में मनाया जाय तथा ऐसे भाइयों को विष्णु लोक की प्राप्ति हो!

अतः इस दिन श्रृद्धावनत भाई को अपनी बहिन के लिए मुद्रा, वस्त्र, स्वर्ण आदि देना चाहिए। साथ ही यमराज से यह प्रार्थना भी करनी चाहिए –

धर्मराज नमस्तुभ्यं नमस्ते यमुनाग्रज:। पाहि मां किङ्करै: सार्धं सूर्यपुत्र नमोऽस्तु ते।।

भारतीय संस्कृति अनुपम है, यहां बहिन को दया की मूर्ति माना जाता है अतः उसके हाथ का भोजन आयुवर्द्धक तथा आरोग्य कारक है। यमुना जी से यह प्रार्थना भी करनी चाहिए –

*यमस्वसर्नमस्तेऽस्तु यमुने लोक पूजिते ।
*वरदा भव मे नित्यं सूर्यपुत्रि नमोऽस्तु ते ।।

हर भारतीय अपनी अप मृत्यु को टालने के लिए प्रयासरत रहता है। अतः यमराज के निमित्त अर्घ्य भी प्रदान करना चाहिए। अतः अपरिमित सुख की प्राप्ति के लिए यह व्रत का यह सरल उपाय कर स्वर्ग की प्राप्ति के लिए किया जाय तो विष्णु लोक की प्राप्ति होती है। धन्य है यह भारत भूमि और धन्य हैं यहां के मनीषी ।