छोटी काशी: प्रयाग देवाचार्य के सुपुत्र श्री महाशर्मा जी ने पोखरी पौड़ी से सावली में आकर अपना गांव बसाया

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Chhoti Kashi: The son of Prayag Devacharya, Shri Mahasharma ji settled in Savli from Pokhari Pauri and settled his village

प्रस्तुति:  हर्षमणि बहुगुणा (सरहद का साक्षी)

अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते।
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।।

आज ऐसे विषय को छू रहा हूं , जिसके विषय में कुछ भी नहीं जानता , पौराणिक आस्था के प्रतीक जहां मनीषियों व विदुषियों की भरमार है वहां के विषय में कुछ कहना या लिखना अपनी अल्पज्ञता को ही प्रदर्शित करना है । परन्तु अधिकांश मित्रों के अनुरोध से स्वयं को रोक नहीं पाया, अतः विज्ञ लोगों से अधिक जानकारी की अपेक्षा के साथ एक प्रयास कर रहा हूं। क्योंकि-

उड़ जायेंगे एक दिन तस्वीर से रंगों की तरह।
हम वक्त की टहनी पर बैठे हैं, परिंदों की तरह।।

अतः मेरी अल्पज्ञता का उपहास न कर मार्ग दर्शन अवश्य करेंगे।
सम्बत १६२४/सन् १५६७ को श्री प्रयाग देवाचार्य के सुपुत्र श्री महाशर्मा जी ने पोखरी पौड़ी से सावली में आकर अपना गांव बसाया । अपने साथ भट्ट ब्राह्मण , पयाल यजमान व ओड मिस्त्रियों को भी लाए थे। पोखरी की पूर्व दिशा में स्थित मोल के पेड़ की डाल जो वहां पुण्यासिनी के मन्दिर में लगी थी साथ लाए व मां पुण्यासिनी की भक्ति हेतु स्थापना की। श्री महाशर्मा जी के पुत्र श्री हरिदत्त जी के दो पुत्र श्री धर्मदास व श्री दुर्गादास हुए । श्री धर्म दास के तीन पुत्र श्री चक्र मणि, श्री भगीरथ व श्री कुसवी हुए व श्री दुर्गा दास के एक पुत्र श्री यशोधर हुए, इन्हीं चार भाइयों के चार थोक या चार अलग-अलग परिवार आज इस गांव के वृहदाकार को इंगित करते हुए दृष्टि गत होते हैं। 

गांव की स्थापना के समय उस काल के महामानव ने वास्तुशास्त्र का सम्पूर्ण ध्यान रखा व तदनुसार गांव की मकान की (स्थापना) नींव रखी। पूर्व दिशा में मां पुण्यासिनी का सिद्धपीठ स्थापित किया तो पश्चिम में स्वयं भूत-भावन मृत्युंजय ( त्रयम्बकेश्वर ) का स्वयंभू शिवलिंग। आज अब दक्षिण में पुण्यासिनी का सिद्धपीठ व उत्तर में श्रीकूट पर्वत पर मां श्रीकण्ठा का शक्तिपीठ अवस्थित है। क्या अभूतपूर्व संयोग है – शक्तिपति की आराधना भी आवश्यक थी । क्योंकि –

*न पूजितो भूतपति: पुरा यै:*
*व्रतं न चीर्णं न च सत्यभुक्तम्* ।
*दारिद्य्र शोकामय दु:खदग्धा:*,
*प्रायोsनुशोचन्ति त एव मर्त्या:*।।

जल की आपूर्ति हेतु चारों तरफ जलस्त्रोत, पहले लगभग साठ जलस्त्रोत थे। भले ही आज पेयजल की आपूर्ति नलों से हो रही है। गांव के चारों ओर चारागाह, लगभग बीस वर्ग मील से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है यह गांव। गांव में भट्ट पुरोहित, पयाल यजमान। (बाजगी (औजी ) लोहार ,ओड मिस्त्री, चर्मकार , सभी सेवा भाव से समाज की सेवा करने वाले लोगों से गांव पटा हुआ था)। इनके अतिरिक्त बडोनी व पन्त ब्राह्मण भी बसाये। स्व. इष्ट देव भैरव की प्रतिष्ठा, नागराजा व नृसिंह देवता की उपासना करने के लिए उनकी स्थापना भी की।
गांव में अद्वितीय कर्मकाण्डी, ज्योतिषाचार्य, आयुर्वेद विशेषज्ञ, शिक्षक, कवि, लेखक, राजनीति में सम्मिलित स्वतंत्रता सेनानी, गोरख्याणी में छूटे गोरखा (खणका ) बन्धु , कृषि विशेषज्ञ, धीरे धीरे सीमा में तैनात सैनिक, धर्मगुरु, सभी प्रकार की सेवा करने में तत्पर प्रवुद्ध जन, IES, IPS,( ifs,) आई एफ एस , PCS आदि सेवाओं में योगदान देने वाले मनीषी, राज्य की उन्नति चाहने वाले देश भक्त, जयदेव से आशीर्वाद प्रदान करने वाले ब्राह्मण , विभिन्न राजकीय सेवा में भाग लेने वाले विद्वान, घर पर शिक्षा प्रदान करने वाले गुरुजी, स्वाभिमानी व्यक्तित्व के धनी महापुरुषों का गांव सावली अपनी विशेष छवि के कारण उत्तराखंड में छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता है। भले ही आज संस्कृत में वार्तालाप न करते हों क्योंकि वातावरण का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता ही है । वास्तव में यह ध्रुव सत्य है कि –
नसीहत वह सच्चाई है जिसे हम कभी गौर से नहीं सुनते और तारीफ वह धोखा है जिसे हम पूरे ध्यान से सुनते हैं।
*शायद यही कारण है कि आज जब यहां जो भी आदरणीय आगन्तुक आते हैं वे यहां के वास्तु को साष्टांग प्रणाम करते हैं व श्रृद्धावनत रहते हैं। यहां के महामानवों ने-

*अयं निज परोवेति गणना लघु चेतषाम्* ।
*उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम्* ।।

की भावना को ही ध्यान में रखकर अपना वर्चस्व कायम किया , आज के लिए इतना ही ।