शराब की दुकान पर झलकती है, देवभूमि की संमृद्धि, ‘सुर प्रदेश बन रहा है सुरा प्रदेश’

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शराब माफिया की गिरफ्त में क्रांति भूमि सकलाना
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ऋषिकेश रोड चंबा बैंक की तरफ जाते वक्त अचानक शराब की दुकान के सम्मुख लगे फ्लैक्स बोर्ड पर निगाह पड़ी। “शराब के दामों में भारी छूट”! लगभग 10 -12 शराबों के नाम लिखे हये थे।

[su_highlight background=”#880e09″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @कवि:सोमवारी लाल सकलानी, निशांत[/su_highlight]

      अरे वाह ! ब्लेंडर स्प्राइट, 1000 की बोतल के सम्मुख 450 ! आधे से भी कम दाम ! बस, ₹500 के दो नोट निकाले और विक्रेता को देते हुए कहा, “दो बोतल ब्लेंडर स्प्राइट की दे दो।” जवाब मिला, ” केवल एक ही बोतल इतने में आएगी।” “अरे भाई ! बोर्ड पर 1000 वाली बोतल के आगे 450 दाम लिखा है। दो बोतल के अलावा ₹100 तुम्हें मुझे वापस करने होंगे” मैने कहा। बिक्रेता कहे कि वह तो अद्धे की कीमत है।

भूख भात की नहीं, बात की है

चलो, जब दुकान पर आ ही  गया तो कुछ ना कुछ ‘संजीवनी सुरा’/आबकारी रस ले ही चलूं। उत्तराखण्ड प्रदेश जब ‘सुर’ प्रदेश नहीं बल्कि ‘सुरा’ प्रदेश बन ही गया है तो मैं भी बोतल ले चलूं। कभी प्रतिष्ठित मेहमान आ जाए , जिनके लिए अतिथि सत्कार के लिए कुछ ना कुछ तो व्यवस्था होनी चाहिए। कुछ वर्ष पूर्व जब दादा घर पर आए थे तो बोले, “नाती ! ज्यादा चक्कर में मत पड़ना। मुझे न मटर -पनीर चाहिए ना मुर्गा- मीट। पर हां ! एक क्वार्टर जरूर चाहिए,ले आ”।

पहली बार दादा घर पर आए हैं, शराब उनके लिए भोजन का अंग है। जीवन भर शराब पी। आज मेरे घर पर आए हैं तो कह भी नहीं सकता हूं कि दादा जी मै न  शराब पीता हूं ना पिलाता हूं। इसलिए आनन-फानन शराब की दुकान पर गया, रेट लिस्ट देखी और एक बोतल खरीदी। उस दिन भी वही हाल हुए। ₹10 वापिस न करने पर  मैं वहां पर अकड़ गया क्योंकि शराब विक्रेता ग्राहकों को वापस नहीं लौटाते और शराबी कभी जिरह भी नहीं करते। बोतल को अपनी नियति मानकर चुपचाप चले जाते हैं। शराब माफिया एक ही दिन में अवैध कमाई से हजारों रुपये कमा लेते हैं।

वही कहानी आज फिर दुहरा गई मैंने जब शराब की ₹700 वाली बोतल खरीदी तो विक्रेता ने मुझे मात्र ढाई सौ वापिस किए। “अरे भाई! जब तुम्हारा रेट लिस्ट पर ₹700 लिखा है तो ₹300 वापिस करो!” वह बहानाबाजी करने लगा और सब विक्रेताओं के कान खड़े हो गए। बस इसी पर तकरार हो गई। मैं  थोड़ा आगे गया लेकिन शराबियों की भीड़ के सामने सरेंडर करना पड़ा। एक सज्जन तो बोल भी पड़ा, “अजी बहस बाद में करना मुझे तो देर हो रही है। मुझे लेने दो।”

मनरेगा का मजदूर सुबह से शाम तक ₹204 की मजदूरी कर बच्चों के पेट पालता है। किसान सुबह से शाम तक गर्मी -सर्दी , बारिश में अपने कार्य में लगा रहता है। मजदूर  सुबह से शाम तक पत्थर को तोड़कर परिवार का गुजारा करते हैं, लेकिन वही जब शराबी बन जाते हैं तो ₹204 कमाने वाला मजदूर हजार रुपए की बोतल खरीदने के लिए शराब की दुकान पर लाइन पर खड़े देखता हूं और शराब खरीदते देखे। इससे बड़ा दुर्भाग्य हमारा और क्या हो सकता है !

शराब माफिया,भू माफिया नेता और अफसर धनी से धन्ना सेठ बनते जा रहे हैं और किसान, मजदूर, छोटे-मोटे कामगार, गरीब से भी गरीब और अधिक गरीब होते जा रहे हैं। इसका कारण शराब भी है।

दूध वाले से कोई भी सुबह-सुबह जिरह कर देता है।  स्कूल जाने वाले बच्चों को ठेकी पकड़ा कर ग्राहकों के दरवाजे दरवाजे पर पशुपालक दूध पहुंचाता है। उसके बाद भी चार बात सुननी पड़ती हैं। महीने के अंत में कभी-कभी तो  हफ्ते बाद पैसा दिया जाता है। लेकिन शराब की दुकान की भीड़ देखकर लगता है कि भारत एक समृद्ध साली देश है।

बात भात की नहीं है बल्कि बात की है। देवभूमि उत्तराखंड पर हमें गर्व है और इसी लिए हमने अपना यह पर्वतीय प्रदेश बनाया था। सोचा था कि यहां खुशहाली होगी। दूध और घी की नदियां बहेंगी। पहाड़ी और गढ़ भोज लोग करेंगे। छोटे-मोटे उद्योग लगेंगे। खेती विकसित होगी। लेकिन पहाड़ के भाग्य में उत्तराखंड राज्य बनने के बाद लिखा हुआ है – पलायन, नेतागिरी, ठेकेदारी, भू -कारोबार और शराब।

इसीलिए तो भाई मैं कहता हूं कि अब यह ‘सुर प्रदेश’ नहीं रहा बल्कि ‘सुरा प्रदेश’ बन गया है। लूट -खसूट का अड्डा बन गया है। यदि हम अभी भी नहीं जागे, अपने अधिकार और कर्तव्यों को नहीं पहचाने,तो हमारी इस मानसिक गुलामी का खामियाजा हमारी आने वाली पीढ़ी भी भुगतेगीं।