बिडम्बना: रानीचौरी परिसर की दुर्दशा; घर पर इतनी बड़ी संस्था और हम खाली हाथ…!

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[su_button background=”#881c0a” color=”#fffffe” size=”2″ radius=”5″ text_shadow=”0px 0px 0px #000000″]सरहद का साक्षी @हर्षमणि बहुगुणा,[/su_button]

“न जाने क्यों रानीचौरी परिसर की दुर्दशा देखी नहीं जा रही है, इस क्षेत्र के कास्तकारों ने अपनी जमीन, चारागाह, वन, जल सबको पन्तनगर विश्वविद्यालय के परिसर हेतु दिया था।  मार्च 1976 से विधिवत् पन्तनगर विश्व विद्यालय की शाखा चल ही नहीं दौड़ रही थी और सन् 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री नारायण दत्त तिवारी जी की सरकार ने विश्वविद्यालय भी बना दिया था पर क्षेत्र वासियों की निष्क्रियता से ही कहा जाय; सन्, 2011 के लगभग विश्व विद्यालय भरसार स्थानान्तरित हो गया, हम देखते ही रह गए और इस परिसर के हिस्से आया मात्र स्नातक स्तर पर वानकी महाविद्यालय व स्नात्तकोत्तर स्तर पर वानकी से सम्बन्धित चार विषय।

क्षेत्र के हितार्थ यहां कृषि विषय व औद्यानिकी विषय आवश्यक है। पद रिक्त हैं, उपनल के माध्यम से व कुछ संविदा के आधार पर कर्मचारी रखे हैं, इन कर्मचारियों को पद के सापेक्ष स्थाई नियुक्ति न होने तक संविदा पर रखने के लिए, विभागों को बढ़ाने के लिए व पूर्व वत परिसर की गतिविधियों को संचालित करने के निमित्त एक आम बैठक को आमंत्रित किया था।

इस बैठक में ज्ञात हुआ कि वर्ष 2016 में परिसर रानीचौरी बचाओ संघर्ष समिति का गठन किया गया था, समिति ने बहुत मेहनत की पर मुकाम तक नहीं पहुंच पाई। इस अपेक्षा को पूरा करने के लिए पुरानी समिति के सभी सदस्यों से अनुरोध है कि एक बार फिर 30 – 07-2021 को सरस्वती शिशु मंदिर रानीचौरी में सायं चार बजे एकत्रित होकर कुछ निष्कर्ष निकालने का प्रयास कर इन्हीं दो तीन महीनों में जो भी अच्छा होना होगा हो सकता है केवल हमारा सार्थक प्रयास कितना होता है उसी पर विचार करना है।

अतः इस सूचना को जो भी क्षेत्र का हितैषी है देख कर अवश्य भाग लेने का कष्ट करेगा व अपने विचारों से अवगत करवा कर हम क्या कर सकते हैं इस पर मन्थन करेंगे। यह कार्य केवल क्षेत्र हित में है, व्यक्तिगत स्वार्थ न देख कर अपने बहुमूल्य समय व विचारों को दान करने की कृपा करेंगे। मैं अनुरोध ही कर सकता हूं। पुरानी कार्यकारिणी के सदस्य व पदाधिकारी अपने प्रयास व कष्ट की अनुभूति को बता कर, भविष्य में तदनुरूप गलती से बचा जा सकता है। यह एक सामान्य विचार है व पीड़ा भी है कि घर पर इतनी बड़ी संस्था और हम खाली हाथ।