अंतर्द्वंद्व: पतंग की तरह डोलता हुआ मन; न शून्य में विलीन, न गिरता है जमीं पर

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    अंतर्द्वंद्व: पतंग की तरह डोलता हुआ मन; न शून्य में विलीन, न गिरता है जमीं पर
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    बचपन में कागज के टुकड़ों की हम छोटी-छोटी पतंगे बनाते थे। विभिन्न तरह की पतंग बनाकर हमारे लिए यह मनोरंजन का उपयुक्त साधन था। कक्षा 5 तक की पढ़ाई के समय नाना प्रकार की छोटी-छोटी पतंगों को बनाकर हम परस्पर खूब मनोविनोद करते थे। उम्र बढ़ती गई और पतंग का स्थान कपड़ें और कागज की गेंद, गुल्ली-डंडा, चर्खी आदि ने ले लिया। बाद के वर्षों में देखा-देखी और प्रतिस्पर्धा के कारण अनेक खेलों में प्रतिभाग किया। कबड्डी का खेल उनमें प्रमुख था। इसके अलावा कभी बालीवाल, बैडमिंटन आदि के खेल में भी हल्की-फुल्की मेहनत की लेकिन उसमें सफल नहीं हो पाया।

    हां! लंबी दौड़ में अक्सर कई बार प्रथम और द्वितीय स्थान प्राप्त किया और एथलेटिक्स मेरा पंसदीदा  खेल रहा। दौड़ लगाने से पूर्व अनेकों विचार मन में आते थे। कभी-कभी तो प्रतियोगिता में सम्मिलित होने से पूर्व ही बेचैनी का भाव मन के अंदर आता था। रक्तचाप बढ़ जाता था लेकिन जब मैदान में उतर जाओ तो इस प्रकार की भावना स्वत: ही समाप्त हो जाती थी। अंतिम ट्रैक पर जब प्रतिद्वंदी पछाड़ देता था तो उस समय जो पीड़ा मन को होती थी उसकी कोई थाह नहीं।

    उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए जब मैदानों की तरफ रुख किया तो सपाट धरती और छतों के ऊपर दोपहर के बाद कई बार बच्चों को पतंग उड़ाते हुए देखा। शहरों में नदियों के किनारे, दूरदराज के मैदानों में, खेत- खलियान में, पतंगबाजी का खेल देखने का अवसर नहीं मिला। लेकिन जब छतों के ऊपर से बच्चे पतंग उड़ाते थे, एक दूसरे की पतंग को काटने की कोशिश करते थे, तो बहुत मजा आता था। यद्यपि शायद ही कभी शहर में पतंग उड़ाई हो। छात्र जीवन से लेकर शिक्षक के रूप में जब सेवारत रहा तो पतंग से संबंधित अनेक कहानियां, कविताएं पढ़ी और बच्चों को पढ़ाने का मौका भी मिला। उन्हीं में प्रसिद्ध साहित्यकार रस्किन बॉन्ड की “काइट मेकर” कहानी भी है।

    मसूरी में रहने के कारण रस्किन बॉन्ड से मेरा भावनात्मक लगाव होना लाजमी है क्योंकि मेरे घर से मात्र 35 किलोमीटर दूर उनका निवास है और वर्तमान समय के कहानीकारों में रस्किन बॉन्ड मेरे पसंदीदा कहानीकार रहे हैं। अरनेस्ट हेमिंग्वे, थॉमस हार्डी, वर्जिनिया वूल्फ, आस्कर वाइल्ड जैसे अनेक कहानीकारों की कहानियां पढ़ी हैं और पढ़ाई हैं। भारतीय कहानीकारों में रविंद्र नाथ टैगोर, सुदर्शन, जयशंकर प्रसाद और रस्किन बॉन्ड की कहानियों ने मुझे सबसे ज्यादा उत्सुकता का भाव प्रदान किया।

    आज पहली बार जब अपने छोटे से पहाड़ी कस्बे चंबा में बच्चों को पतंग उड़ाते हुए देखा तो पुरातन लौट के आ गया। सड़क के किनारे बने पैराफिट के ऊपर बैठकर दो घंटे तक बच्चों के पतंग के खेल को देखकर आनंद आया।
    कोई रील को खींच रहा है तो कोई पतंग उड़ाने का प्रयास कर रहा है। कोई पतंग को उठा ही नहीं पा रहा है, कोई छीना -झपटी कर रहा है। कुछ आनंद से नाच रहे हैं। पूरे बचपन की तस्वीर आंखों के सम्मुख आ गई। बैठे-बैठे कब शाम के 4:00 बज गए। जब एक छोटी सी पतंग हवा के झोंकों के साथ आसमान में उड़ने लगी तो मेरा मन भी शून्य में विचरण करने लगा। यद्यपि यह पतंग असीम तक नहीं पहुंच पाई और न ही लुप्त हुई। न किसी दूसरी प्रतियोगी पतंग के द्वारा इसे काटा गया, बल्कि लंबे समय तक ही वातावरण में डोलती रही। इस पतंग की तुलना मै  अपने मन से करता हूं। जिसकी कहीं कोई थाह नहीं है। मन शून्य में विलीन होता है।यह न कटी हुई पतंग की तरह नीचे ही गरता है, बल्कि अस्तित्व की तलाश में वातावरण में ही मन मंडराता रहता है।

    जीवन में अनेकों सुखद क्षण है। बस, उनका हमें एहसास होना चाहिए। बच्चों के खेल, चिड़ियों की चहचहाहट, दाना चुंगती हुई चिड़िया, पानी के बर्तन में नहाता हुआ परिंदा, फूलों से सजे पेड़-पौधे, खेतों में दूर तक लहराती हुई फसल और हंसबालियां, किसी से छुपी नहीं। पहाड़, बर्फ से आच्छादित उत्तुंग हिमालय चोटियां, सर- सर आकर बहती हुई ठंडी हवा, हिलते- डुलते पेड़ों के पत्ते, और झड़ते हुए पात, न जाने कितने युगों की कल्पना का भाव मन में भर देते हैं और सबसे सुंदर याद आ जाता है पुराने साथियों के साथ बिताए गए छण। युवावस्था की दौड़-भाग, संघर्ष, उत्तरदायित्व को पूर्ण करने का भाव, मन में प्रतिपल आने वाली संभावनाएं और उनका द्वंद, आशा और निराशा के भाव, अभिलाषित  लक्ष्य को पाने की उत्कंठा, तरह-तरह के विचार, मन में भर जाते हैं।

    सब अचानक बच्चों की अदाओं के समूह नतमस्तक हो जाता है। जब बच्चों के मध्य अपने को पाता हूं तो फिर से बचपन याद ही नहीं आता बल्कि मैं भी बच्चा बन जाता हूं। अपनी प्रौढावस्था को भी भूल जाता हूं।  भूल जाता हूं कि अब धीरे-धीरे वृद्धावस्था की तरह कदम बढ़ रहे हैं। जीवन के लिए समय भी कम है लेकिन एक- एक पल इतना महत्वपूर्ण है, इतना अलभ्य है, जितना सौभाग्य से भरा हुआ है, कि इसका साथ छोड़ना बहुत ही मुश्किल है।

    कवि : सोमवारी लाल सकलानी ‘निशांत’
    (कवि कुटीर)
    सुमन कॉलोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल।