वाग्देवी सरस्वती के प्रादुर्भाव पर आप सबको हार्दिक बधाई एवं बहुत बहुत शुभकामनाएं।
माघ शुक्ल पञ्चमी को वसन्त पंचमी का पर्व मनाया जाता है, यह पर्व ऋतुराज वसन्त के आगमन का सूचक है, आज से ही होरी और धमार गीत गाए जाते हैं, भगवान को गेंहू और जौ की बालियां अर्पित की जाती हैं।
सरहद का साक्षी @आचार्य हर्षमणि बहुगुणा
आज के दिन भगवान विष्णु और सरस्वती का विशेष पूजन किया जाता है। वसन्त कामोद्दीपक होती है, अतः चरक संहिता में स्पष्ट उल्लेख है कि इस ऋतु में वनों का सेवन करना चाहिए, मुख्य रूप से रति और काम की पूजा अर्चना करनी चाहिए। वेदों में भी कहा गया है कि ‘वसन्ते ब्राह्मणमुपनयीत’ वेदाध्ययन का उपयुक्त समय आज से ही है।
मधु माधव शब्द मधु से बने हैं, मधु एक विशिष्ट प्रकार का रस है जो जड़ चेतन को उन्मत्त करता है और वसन्त ऋतु में ही इस रस की उत्पत्ति होती है । भगवान विष्णु ने सृष्टि की रचना हेतु ब्रह्मा जी से कहा परन्तु जब सृष्टि की संरचना नहीं हुई व सर्वत्र सुनसान ही दिखाई दिया , उदासी ही उदासी, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि किसी पर भी वाणी ही न हो।
अतः ब्रह्मा जी ने इस उदासी को दूर करने के लिए अपने कमण्डलु से जल निकाला व वृक्षों पर छिड़का, उन जल कणों से वृक्षों से एक शक्ति उत्पन्न हुई उसके दोनों हाथों में वीणा थी व वह उसे बजा रही थी और दो अन्य हाथों में एक पर पुस्तक व दूसरे पर माला पकड़ी हुई थी। ब्रह्मा जी ने उस देवी से संसार की मूकता को दूर करने की प्रार्थना की। तब उस देवी ने वीणा के मधुर संगीत से सब जीवों को वाणी प्रदान की, अतः उस देवी को सरस्वती का नाम दिया गया। वही सरस्वती विद्या, बुद्धि को देने वाली है।
अतः आज के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा अर्चना की जाती है। आज के दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी के विषयक जितना भी कहा जाय कम ही कम है। आज से ही विद्याध्ययन प्रारम्भ किया जाय। मां सरस्वती से प्रार्थना है कि हमारी जिह्वा में वास करें। तो आइए आज के पावन पर्व का आनन्द लिया जाए और अपनी वाणी को रस मय बनाया जाय।
आज के दिन पांच फरवरी को वसन्त पञ्चमी के दिन जीवन में एक से दो बनें थे, लगभग कई वर्षों बाद आज यह शुभ दिन उस दिन की याद ताजा कर रहा है, जब कुछ भी ज्ञात नहीं था। स्मरणीय ।* “