पुण्यतिथि विशेष: एक समग्र किताब थे -स्व. विश्वेशर दत्त सकलानी

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    “नाम विश्वेशर काम विश्वेशर क्रांतिवन संस्थापक हैं। करोड़ वृक्ष रोप बांज के, नाम वृक्ष मानव पाया है।।” वृक्ष मानव के नाम से विख्यात मशहूर पर्यावरण संरक्षक विश्वेश्वर दत्त सकलानी की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर श्रद्धांजलि। क्रांतिभूमि आधुनिक सकलाना तीन मनीषियों के कारण तीन विभिन्न क्षेत्रों मे अपनी विशिष्ट पहचान बनाए है।

    [su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @कवि : सोमवारी लाल सकलानी, निशांत[/su_highlight]

    ये नाम किसी परिचय के मोहताज नहीं,फिर भी समय समय पर उल्लेख करना जरुरी भी है – स्व .विश्वेशर दत्त सकलानी, स्व. ठाकुर वीर सिंह कंडारी और आदरणीय श्री सोमवारी लाल उनियाल,,प्रदीप हमारे नायक हैं। स्व . विश्वेशर दत्त सकलानी अमर शहीद नागेंद्र सकलानी के अनुज थे। स्वतंत्रता सेनानी होने के बाबजूद आपने एक ऐसा कार्य कर दिखाया, जो साधारण मानव की कल्पना से भी परे है।

    अपने बड़े भाई शहीद नागेंद्र सकलानी के नाम पर उन्होंने सत्यों सकलाना के सम्मुख लगभग एक करोड़ वृक्षों को लगाकर, संरक्षणकर , पाल पोशकर “स्मृति वन/क्रांति वन” की स्थापना की, जिस कारण उन्हें अंतराष्ट्रीय स्तर की पहचान मिली। नब्बे के दशक में उन्हें इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें वृक्ष मानव की उपाधि से भी सम्मानित किया गया। पर्यावरण के क्षेत्र में उनके द्वारा भारत का मन बढ़ा क्योंकि यह स्पष्ट दिखाई देने वाला क्रियात्मक शोध था।

    ” वृक्ष मेरे माता पिता/ वृक्ष मेरी संतान” उनका आदर्श वाक्य आज भी कानों में गूंजता रहता है। यूं तो मैंने स्व . विश्वेशर सकलानी पर अनेक कविताएं, आलेख लिखें हैं लेकिन सबसे बड़ी खुशी इस बात की है की दशकों तक उनसे निजी संपर्क भी रहा तथा कई बार पर्यावरण संरक्षण आंदोलनों में में भी उनका सानिध्य मिला। नवंबर सन 1979 के खुरेट पुजाल्डी वन बचाओ आंदोलन में कुछ समय साथ भी रहे।

    स्व . सकलानी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। स्वाधीनता आंदोलन मे उनकी भूमिका को केवल पढ़ा और सुना है लेकिन स्मृति वन को को उन्हें अपनी आंखों से पनपाते देखा है। इसके अलावा सन 1972 में शिक्षा के लिए उनके द्वारा 11दिवसीय आमरण अनशन का साक्षी हूं। जिसकी बदौलत आज सत्यों में शहीद नागेंद्र राजकीय इंटर कालेज प्रत्यक्ष है। स्व .विश्वेशर दत्त सकलानी एक समग्र पुस्तक के समान है। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को जहां से पढ़ना शुरू करो, वहीं से व्यावहारिक और उपयोगी है। उनके अंतिम संस्कार में सम्मिलित न हों पाने का मुझे सदैव अपराध बोध रहेगा। इस महामानव को उनकी जयंती पर एक बार पुन: नमन।