उत्तराखण्ड राज्य बने 22 बर्ष होने जा रहे हैं, इस पहाड़ी राज्य में अनेक क्षेत्रों में कुछ न कुछ नया हुआ है, महिलाओं को त्रिस्तरीय पंचायतों में 33% आरक्षण देकर प्रतिनिधित्व का मौका दिया है, लेकिन कुछ बिरले उदाहरणों को छोड़कर अभी भी इस पुरुष प्रधान समाज में ग्राम प्रधान से लेकर अध्यक्ष जिला पंचायत के महत्वपूर्ण निर्णय पिछले दरवाजे से प्रधानपतियों का हस्तक्षेप होता है, कभी गलत वित्तीय निर्णय लेकर महिला पदाधिकारियों को अपयश का भागीदार बना दिया जाता है। इसमें प्रशासनिक व सामाजिक स्तर पर सुधार की आवश्यकता हैं। महिलाओं को महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिये सदन से सहयोग मिले, लेकिन ये निर्णय जनहित के होने चाहिये। ठेकेदारी व गल्लेदारी करवाने नहीं।
[su_highlight background=”#880e09″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @शक्ति मोहन बिजल्वाण [/su_highlight]
इसके अलावा राज्य बनने के महिलाओं के सिर बोझ कम करने के दावे तो सभी सरकारों ने किये, लेकिन धरातल एक भी दावा सफल नहीं हो पाया। इसके लिये जरूरी है, वनाधिनियम कानून में सुधार कर सरकार ग्रामीणो को हक-हकूक का अधिकार प्रदान करना चाहिये। ग्राम स्तर गठित वन पंचायतों को अधिकार सम्पन्न बनाने की आवश्यकता है।
वन विभाग को वृक्षारोपण स्कीम में चारापत्ती, जंगली फल- फूलों, जडी-बूटी के पौधो का चयन कर गांव के आस -पास के जंगलों की खाली भूमि पर प्राथमिकता के आधार पर किया जाय। जिससे जंगली जानवर कृषि भूमि को नुकसान पहुंचा पायेगे और पालतु पशुओं-पक्षियों के लिये गांव के नजदीक चारे की व्यवस्था हो सकेगी। जल स्रोतों का संवर्धन होगा, पानी की कमी से भी निजात मिलेगी, इनसे गांव में छोटे-छोटे उद्योगो को बल मिलेगा। रोजगार नये संसाधन बढ़ेंगे और पलायन पर कुछ अंकुश लगेगा। सरकारें गावों से ही जनहित के प्रस्ताव मांगकर योजनायें बनाये, तभी महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज का सपना साकार हो पायेगा।