मकर संक्रान्ति का महत्व: इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं

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चाक्षुषी विद्या प्रयोग: नेत्ररोग होने पर भगवान सूर्यदेव की उपासना है रामबाण
चाक्षुषी विद्या प्रयोग: नेत्ररोग होने पर भगवान सूर्यदेव की उपासना है रामबाण
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भगवान सूर्य के धनु राशि से अपने पुत्र एवं मकर राशि के स्वामी शनि के घर पर संक्रमण के पर्व को मकर संक्रान्ति के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। इसी दिन से सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण होने लगते हैं शात्रों में  दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक और उत्तरायण को देवताओं का दिन यानि सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है।

अत: हिन्दू धर्म में इस पर्व का जितना धार्मिक महत्व है उतना ही इसका महत्व प्रकृति, ऋतु परिवर्तन और कृषि से भी है, क्योंकि मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य की स्थिति दक्षिणी गोलार्ध में होती है अर्थात् सूर्य भौगोलिक रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होते हैं । इसी कारण यहाँ सर्दी का मौसम तथा दिन छोटे एवं रातें बड़ी होती हैं । किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आने से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन के बड़े होने से प्रकाश अधिक और अन्धकार कम होता है जिसका सीधा प्रभाव ऋतु एवं कृषि पर पड़ता है।

[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @डा. प्रवीन जोशी[/su_highlight]

इस पर्व में सूर्य देव को प्रकृति के कारक के तौर पर पूजा जाता है, जिन्हें शास्त्रों में भी भौतिक एवं अभौतिक तत्वों की आत्मा कहा गया है। इन्हीं की स्थिति के अनुसार ऋतु परिवर्तन होता है और धरती अनाज उत्पन्न करती है, जिससे जीव समुदाय का भरण-पोषण होता है। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। इसीलिए सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है।

महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था तथा गंगाजी, मकर संक्रान्ति के दिन ही भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। अत: कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक माना जाता है। इसी कारण यह पर्व लीप वर्ष को छोड़कर प्रतिवर्ष 14 जनवरी को ही पड़ता है।

उत्तर भारत में यह मुख्य रूप से ‘दान का पर्’ माना जाता है। इलाहाबाद में गंगायमुना व सरस्वती के संगम पर तथा हरिद्वार, सहित उत्तराखंड के पंच प्रयागों एवं उत्तरकाशी आदि स्थलों स्नान एवं माघ मेला आयोजित किया जाता है| उत्तराखंड. उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बिहार, बंगाल आदि राज्यों में इसे खिचड़ी संक्रांति भी कहा जाता है |

तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल,असम में  माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू तथा नेपाल में मकर संक्रांति अलग अलग नामों व अनके रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति के दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिये भगवान को धन्यवाद देकर अपनी अनुकम्पा को सदैव लोगों पर बनाये रखने का आशीर्वाद माँगते हैं। इसलिए मकर संक्रान्ति के त्यौहार को फसलों एवं किसानों के त्यौहार के नाम से भी जाना जाता है।

विभाग प्रभारी इतिहास, राजकीय स्नातकोत्तर महाविधालय कोटद्वार