श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: जन्म जन्मान्तरों के पुण्य संचय से जुड़ा है ऐसा सुयोग

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[su_button background=”#881c0a” color=”#fffffe” size=”2″ radius=”5″ text_shadow=”0px 0px 0px #000000″]सरहद का साक्षी @ज्योतिषाचार्य हर्षमणि बहुगुणा,[/su_button]   सोमवार, 30 अगस्त 2021 को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत है। कलयुग की आयु का प्रमाण इस समय 5122 वर्ष पूर्ण कर 5123 वां प्रवेश हो रखा है। श्रीकृष्ण भगवान ने इस धरा धाम पर 125 वर्ष व्यतीत किए और उनके निर्वाण के समय ही द्वापर का समापन होकर कलियुग का प्रारम्भ हुआ था।

भगवान के प्रादुर्भाव के दिन भाद्रपद मास, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र रात्रि का समय ठीक बारह बजे अर्थात् अर्ध रात्रि को हुआ। स्वाभाविक है कि चन्द्रमा वृष राशि का और सूर्य सिंह राशि का होगा। इन छः योगों के समय भगवान का प्रकट होना अनुपम था, अद्भुत था। तब से या कलियुग के प्रारम्भ से भारतीय जनमानस प्रति वर्ष जन्माष्टमी मनाता आ रहा है। यह आवश्यक नहीं है कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन ये छः योग होंगे ही होंगे; पर अधिकांश ये योग मिलते हैं।

संयोग से इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी सोमवार, 30 अगस्त 2021 को एक ही दिन अर्थात् तीस अगस्त रात्रि दो बजे तक अष्टमी तिथि है, जो पहले दिन 29 अगस्त रात्रि ग्यारह बजे के बाद अर्थात् 11/24 बजे से प्रारंभ हो रही है। ऐसा संयोग प्राय: कम ही होता है। कभी अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र नहीं होता है तो कभी बुधवार या सोमवार नहीं होता है, कभी‌ सौर भाद्रपद नहीं होता है तो कभी अर्धरात्रि व्यापिनी तिथि नहीं होती है।

प्राय: दो दिन अष्टमी तिथि होने से ऊहापोह रहता है। इससे पहले यदि सम्यक् विचार किया जाय तो वर्ष 2013 को 28 अगस्त को सभी योग थे, बुधवार के दिन एक ही दिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी थी। इससे पहले भी वर्ष 2001 को 12 अगस्त को एक ही दिन श्रीकृष्ण जन्माष्टमी थी मगर श्रावणमास सौर, रविवार व कृतिका नक्षत्र था। ग्यारह सितम्बर 2010 को दो दिन अष्टमी तिथि थी लेकिन पहले दिन रोहिणी नक्षत्र, बुधवार व अर्द्धरात्रि व्यापिनी अष्टमी तिथि थी। ऐसा योग मिलना बहुत शुभ है, इस बार छः तत्वों में से पांच तत्व हैं, जो जन्म जन्मान्तरों के पुण्य संचय से प्राप्त हो रहा है; ऐसा मेरा ही नहीं अपितु अधिकांश विद्वत् समुदाय का मानना है। इन योगों का नामकरण भी किया गया है अर्थात् जब रोहिणी नक्षत्र से युक्त अष्टमी तिथि होती है तो वह  “जयन्ती” कहलाती है और जब रोहिणी नक्षत्र के बिना अष्टमी तिथि होती है तो उसे  “केवला” कहा जाता है। “रोहिणी गुण विशिष्टा जयन्ती ” अनेक फल देने वाली यह जन्माष्टमी मनुष्यों को अभीष्ट सन्तान  देने वाली भी है। अतः सन्तति के इच्छुक व्यक्तियों को सन्तान गोपाल मंत्र या हरिवंश पुराण का पाठ करना चाहिए।

कब करना चाहिए यह व्रत:

यदि दो दिन अष्टमी तिथि है और दोनों दिन अर्द्धरात्रि व्यापिनी नहीं है, तो इस पर व्रत निर्णायक धर्म ग्रन्थों, पुराणों में यह व्यवस्था की गई है कि स्मार्तों का व्रत सप्तमी विद्धा होगा व वैष्णवों का व्रत नवमी विद्धा होगा, इसकी पूर्ण जानकारी न होने के कारण हम संशय में रहते हैं। निश्चित तो यह है कि अष्टमी अर्द्धरात्रि व्यापिनी जब हो उसी दिन यह व्रत करना चाहिए, चाहे योग हों या न हों। विशेष रोहिणी नक्षत्र को देखा जाता है।

जन्माष्टमी व्रत का कर्म काल अर्द्धरात्रि ही है। अतः जन्माष्टमी व्रत के लिए अर्द्धरात्रि में अष्टमी तिथि का होना अनिवार्य है, इस बार यह संशय नहीं है। ‘संयोग से ऐसा हुआ है या हमारे पुण्यों के उदय से हुआ है। इस पर अधिकांश विद्वत समुदाय ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किए हैं। इसलिए अधिक पिष्ट पेषण करना लाभकारी नहीं है।

इतना अवश्य है कि भारतीय मनीषियों ने अपनी विद्वत्ता से यह सब कुछ खोजा है, जो हमारा मार्गदर्शन कर रहा है। ऐसे मनीषियों को एक बार नमन करते हुए आप सब को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित कर रहा हूं व भगवान श्री कृष्ण से विश्व कल्याण की प्रार्थना भी करता हूं।