ट्रैकिंग और माउंटेनियरिंग मिशन को समर्पित एक पूर्व सैनिक : सेना मैडल प्राप्त श्री बिजेंद्र सिंह नेगी

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ट्रैकिंग और माउंटेनियरिंग मिशन को समर्पित एक पूर्व सैनिक : सेना मैडल प्राप्त श्री बिजेंद्र सिंह नेगी
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[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी   @कवि :सोमवारी लाल सकलानी, निशांत[/su_highlight]

 

[su_dropcap size=”2″]टि[/su_dropcap]हरी गढ़वाल  के चंबा क्षेत्र को यूं ही “वीर भूमि” के नाम से नहीं जाना जाता है, इस क्षेत्र में अनेक वीर पैदा हुए। श्री बिजेन्द्र सिंह नेगी भी उन्हीं वीरों में एक हैं।  उत्तराखंड में अनेक वीर -बलयों ने समय-समय पर देश और प्रदेश का नाम रोशन किया है, लेकिन क्षेत्र विशेष चंबा का वीरता में बड़ा योगदान है। मंजूड़ ग्राम के विक्टोरिया क्रॉस गबर सिंह नेगी जिन्हें  मरणोपरांत ब्रिटिश कालीन सत्ता में सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया गया,उन्हीं के गांव के श्री विजेंद्र सिंह नेगी, सेना मैडल प्राप्त वीर सैनिक हैं।

आज नवरात्र के अवसर पर संयोग से मां सुरकंडा देवी दर्शन का मन बना और इसी यात्रा के दौरान पूर्व सैनिक संगठन के संरक्षक तथा पूर्व अध्यक्ष श्री इंद्र सिंह नेगी के आग्रह पर मैं भी माता के दर्शन के लिए चला गया। उन्हीं के साथ श्री विजेंद्र सिंह नेगी जी से विस्तृत परिचय हुआ तथा आत्म गौरव के अनुभूति हुई।

ट्रैकिंग और माउंटेनियरिंग मिशन को समर्पित एक पूर्व सैनिक : सेना मैडल प्राप्त श्री बिजेंद्र सिंह नेगी

श्री विजेंद्र सिंह नेगी यद्यपि दिल्ली में निवास करते हैं फिर भी अपने गांव और घर से उनका बड़ा लगाव है। मंजूड़ गांव ( चंबा) के निकट उनका पुश्तैनी घर है और समय-समय पर उनका घर आना- जाना लगा रहता है। सबसे बड़ी बात यह है कि श्री विजेंद्र नेगी एक पूर्व सैनिक होते हुए बहुत ही सरल और जीवट इंसान हैं। साहसिक कार्यों के प्रति उनका रुझान और क्षमता देखने के लायक है। श्री बृजेंद्र सिंह नेगी के पिता श्री किशन सिंह नेगी भी ब्रिटिश काउंसिल में सेवारत रहे हैं और उन्हीं के तीन बेटों में एक विजेंद्र सिंह नेगी हैं, जो 30 अप्रैल सन 1982 को इक्कीस वर्ष की उम्र में सेना में भर्ती हुए।

29 वर्षों तक सेना में सेवा की और उसके बाद 09 वर्ष नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग (निम) में सेवाएं दी। सेवा के दौरान 2001 में श्री विजेंद्र सिंह नेगी एवरेस्ट पर्वतारोहण अभियान का हिस्सा बने। उनकी टीम में कीर्ति चक्र और शौर्य चक्र विजेता कर्नल अजय कोठियाल जी भी थे जो कि उस समय मेजर पद पर कार्यरत थे।

20 सदस्य से अधिक सदस्य इस टीम में थे। 12 लोग सपोर्टर थे और टीम का नेतृत्व ब्रिगेडियर किशन कुमार, मद्रास रेजीमेंट कर रहे थे। उनकी टीम का यह एवरेस्ट अभियान सफल रहा और वे एवरेस्ट शिखर पर पर्वतारोहण करने वाले गिने-चुने शख्सियतों की श्रेणी में आ गए।
श्री विजेंद्र सिंह नेगी को प्रतिष्ठित सेना मेडल सम्मान मिला। इसके अलावा चार सेना प्रशस्ति पत्र भी सेना के द्वारा उनको दिए गए। 29 फरवरी 2011 को वह गढ़वाल स्काउट उत्तराखंड, जो कि गढ़वाल राइफल रेजीमेंट का एक भाग है, सेवानिवृत्त हुए।

श्री विजेंद्र सिंह नेगी के अंदर आज भी गजब की स्फूर्ति  और जीवठता है। इकसठ वर्षीय नेगी हमेशा कुछ न कुछ नया कार्य करने की सोच रखते हैं। प्रबल इच्छा शक्ति उनके अंदर है। जब भी  घर आते हैं तो मीलों अनेक क्षेत्रों की ट्रैकिंग पर चले जाते हैं। एक प्रकार से ट्रैकिंग और माउंटेनियरिंग उनके जीवन का  अंग बन चुका है। उनकी इच्छा है कि क्षेत्र में बच्चों के लिए एक ऐसा प्रशिक्षण केंद्र खोला जाए जिसमें बच्चे माउंटेनियरिंग और ट्रैकिंग के प्रति उचित प्रशिक्षण प्राप्त कर सकें। सेना और अन्य क्षेत्रों में अपनी सेवाएं दे सकें।

आज सुरकंडा यात्रा के दौरान अनेक बातों पर उनसे चर्चा हुई। सुरकंडा शिखर से हिमालय की उतुंग चोटियां दिखाई देती हैं, जिनका किताबी ज्ञान तो मुझे था लेकिन आज सबसे बड़ा सौभाग्य रहा कि अनेक चोंटियों की सही जानकारी आज मिली।  श्री विजेंद्र सिंह नेगी से हिमाद्रि की दूरस्थ चोंटियों के बारे में  सम्यक जानकारी प्राप्त हुई। बंदरपूंछ, काला नाग, नीलकंठा, गंगोत्री 1-2-3-4, चौखंबा आदि चोटियों को उन्होंने हमें दिखाया और उनकी विशेषताओं, स्थिति, परिस्थिति, महत्व और कठिनाइयों का भी पूरा ब्यौरा प्रस्तुत किया। अनेकों एक्सपीडिशन की कहानियां उनकी माउंटेनियरिंग और ट्रैकिंग में छुपी हुई हैं।

श्री विजेंद्र सिंह नेगी का एक पुत्र है जो मास कम्युनिकेशन फोटोग्राफी में शीर्ष संस्थान (दिल्ली) से प्रशिक्षण प्राप्त है।पत्नी ग्रहणी है जो  दिल्ली में ही उनके साथ रहती हैं। शौर्य ,वीरता, सेना और साहसिक खेलों के अनेकों रोचक किस्से और कहानियां श्री नेगी के द्वारा यात्रा के दौरान सुनाए गये। जिन्हें सुनकर लगा कि  श्री विजेंद्र सिंह नेगी प्रत्येक कार्य को बहुत ही संजीदगीपूर्ण करते हुए हमेशा अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तत्पर रहते हैं। अभी कुछ दिन पूर्व वह रानीचौरी-ल्वैथाल होते हुए पैदल गजा यात्रा पर गए थे। दूसरी बार उन्होंने नागणी क्षेत्र से नादेव पत्थल्ड होकर पैदल बुंरांशखंडा ट्रैकिंग की। डांडा घंडियाल भी गये।

उनका मानना है रियासत कालीन पुराने राजमार्गों को ट्रेकिंग के लिए उपयुक्त बनाया जाए। जिससे स्वरोजगार के साथ-साथ युवाओं में एक नया जुनून पैदा होगा। वे सेना, अर्धसैनिक बल, पुलिस और खेलों में अच्छे ढंग से प्रतिभाग कर सकते हैं। इसके लिए उचित प्रशिक्षण, खेल के मैदान और ढांचागत सुविधाओं का होना बहुत जरूरी है। जिसके लिए वह प्रयासरत हैं।

श्री विजेंद्र सिंह नेगी के बारे में पूर्व सैनिक संगठन के संरक्षक श्री इंदर सिंह नेगी जी के से काफी कुछ सुना था लेकिन आज पूरे दिन भर उनके साथ जब बातचीत का दौर चला। यात्रा संपन्न की तो एक अपनत्व का भाव भी जागा ,लगा कि अवश्य वीरभूमि चंबा का यह सेना मैडल प्राप्त सैनिक आज भी अदम्य जोश- खरोश के साथ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शौर्य और वीरता के लिए एक नई पीढ़ी को प्रेरित कर रहे हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के वीर सैनिक का पुत्र होने के कारण भी मैं श्री विजेंद्र सिंह नेगी की क्षमता, कार्यकुशलता और जीवठता को बारंबार सलाम करता हूं।