बहूनि सन्ति तीर्थानि दिविभूमौ रसासु च
बदरी सदृशं तीर्थ न भूतो न भविष्यति
इस धरती पर हर दिशा और हर स्थान में बहुत से तीर्थ हैं लेकिन उत्तराखंड के क्षेत्र हिमालय में इस धरा के स्वर्ग कहे जाने वाले बैकुण्ठ श्री बदरीनाथ धाम जैसा तीर्थ न तो पहले कभी था और न भविष्य में होगा।
प्रभाते बद्रिकारण्ये मध्यान्हे मणिकर्णिकाम्
भोजने तु जगन्नाथं शयने कृष्ण द्वारिकाम्
भगवान विष्णु अपने वाहन गरुड़ पर विराजमान होकर नित्य निम्न प्रकार परिक्रमा करते रहते हैं:-
भगवान प्रात: में श्री बद्रीनाथ धाम, भोजन के लिये श्री जगन्नाथपुरी धाम, मध्यान्ह में काशी के घाटों पर मुक्ति देने के लिये और शयन के लिये श्री द्वारिका धाम और पुन: प्रभात में श्री बदीनाथधाम में रहते है।
ऊँ सहस्त्रशीर्षा पुरुष: सहस्राक्ष: सहस्त्रपात्
स भूमि सर्वत स्पृत्वात्यतिष्ठद्दशांगुलम्
हमारे परमात्मा श्रीहरि अनन्त सिरों, अनन्त चक्षुओं (नेत्रों) और अनन्त चरणों वाले हैं। परमात्मा इस सम्पूर्ण विश्व की समस्त भूमि को सब ओर से व्याप्त कर दस अंगुल (अनन्त योजन) उपर स्थित हैं अर्थात हमारे परमात्मा ब्रह्माण्ड में व्यापक होते हुये भी उसके बाहर भी व्याप्त हैं।
कृते मुक्तिप्रदाप्रोक्ता, त्रेतायां योग सिद्धिदा
विशाला द्धापरे प्रोक्ता, कलौ बद्रिकाश्रम
स्कन्दपुराण में बद्री क्षेत्र को मुक्तिप्रदा के नाम से उल्लेखित किया गया है। त्रेतायुग में भगवान नारायण के इस क्षेत्र को योग सिद्घा, द्वापर में भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन होने के कारण इसे विशाला तीर्थ कहा गया है। कलियुग में इस धाम को बद्रिकाश्रम अथवा बद्रीनाथ के नाम से जाना जाता हेै।
ऐसे जगत नियंता भगवान श्री बद्रीविशाल आपके सभी मन मनोरथ पूर्ण कर आपको सदैव सुखी, स्वस्थ, समृद्ध और निरोगी रक्खें तथा हम सभी की भगवान के श्रीचरणों के प्रति श्रद्धा-विश्वास, प्रेम- सद्भाव व प्रीति कायम रहे और सभी मानव भक्ति के मार्ग पर अग्रसर हो।
आपका सदा मंगल हो और आप अपने-अपने क्षेत्र के उच्चतम शिखर को प्राप्त करें हम भगवान श्री बदरीविशाल जी के श्रीचरणों से प्रतिपल यही कामना व प्रार्थना करते है।
*ई०/पं०सुन्दर लाल उनियाल
*नैतिक शिक्षा व आध्यात्मिक प्रेरक
दिल्ली/इन्दिरापुरम,गा०बाद/देहरादून