लघु कथा: सन्यासी की दवा बनाम बाघ की मूंछ का बाल

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परोपकाराय पुण्यार्जनाय हेतु 'एक सीख'; अपनी कमी पर हंसते हुए दूसरे की कमी पर रोएं
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“प्रेम से बढ़कर कुछ नहीं, आइए एक सत्यता के साथ ‘सन्यासी की जड़ी बूटी’ को समझें !!

[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @आचार्य हर्षमणि बहुगुणा[/su_highlight]

“बहुत समय पहले की बात है, एक वृद्ध सन्यासी हिमालय की पहाड़ियों में कहीं रहते थे। वह बड़े ज्ञानी थे और उनकी बुद्धिमत्ता की ख्याति दूर -दूर तक फैली थी। एक दिन एक औरत उनके पास पहुंची और अपना दु:खड़ा रोने लगी, बाबा, मेरा पति मुझसे बहुत प्रेम करता था , लेकिन वह जब से युद्ध से लौटा है ठीक से बात तक नहीं करता। लोगों के साथ ऐसा ही करता है। सन्यासी बोला। –

लोग कहते हैं कि आपकी दी हुई जड़ी-बूटी (दवा) इंसान में फिर से प्रेम उत्पन्न कर सकती है, कृपया आप मुझे वो दवा (जड़ी-बूटी) दे दें। महिला ने विनती की! सन्यासी ने कुछ सोचा और फिर बोला” देवी मैं तुम्हें वह दवा (जड़ी-बूटी) जरूर दे देता लेकिन उसे बनाने के लिए एक ऐसी चीज चाहिए जो मेरे पास नहीं है।” आपको क्या चाहिए मुझे बताइए, मैं लेकर आउंगी। महिला बोली।
मुझे बाघ की मूंछ का एक बाल चाहिए! सन्यासी बोला !
अगले ही दिन महिला बाघ की तलाश में जंगल में निकल पड़ी, बहुत खोजने के बाद उसे नदी के किनारे एक बाघ दिखा, बाघ उसे देखते ही दहाड़ा, महिला सहम गयी और तेजी से वापस चली गयी। अगले कुछ दिनों तक यही हुआ, महिला हिम्मत कर के उस बाघ के पास पहुँचती और डर कर वापस चली जाती। महीना बीतते-बीतते बाघ को महिला की मौजूदगी की आदत पड़ गयी, और अब वह उसे देख कर सामान्य ही रहता।
अब तो महिला बाघ के लिए मांस भी लाने लगी , और बाघ बड़े चाव से उसे खाता। उनकी दोस्ती बढ़ने लगी और अब महिला बाघ को थपथपाने भी लगी। और देखते देखते एक दिन वो भी आ गया जब उसने हिम्मत दिखाते हुए बाघ की मूंछ का एक बाल भी निकाल लिया। फिर क्या था, वह बिना देरी किये सन्यासी के पास पहुंची, और बोली- मैं बाल ले आई बाबा। “बहुत अच्छे!” और ऐसा कहते हुए सन्यासी ने बाल को जलती हुई आग में फेंक दिया।

अरे ये क्या बाबा? आप नहीं जानते इस बाल को लाने के लिए मैंने कितने प्रयत्न किये और आपने इसे जला दिया। अब मेरी जड़ी-बूटी कैसे बनेगी? महिला घबराते हुए बोली-”अब तुम्हें किसी जड़ी-बूटी की जरुरत नहीं है।  सन्यासी बोला- जरा सोचो,– तुमने बाघ को किस तरह अपने वश में किया- …. जब एक हिंसक पशु को धैर्य और प्रेम से जीता जा सकता है तो क्या एक इंसान को नहीं ? जाओ! जिस तरह तुमने बाघ को अपना मित्र बना लिया उसी तरह अपने पति के अन्दर प्रेम भाव जागृत करो?” महिला सन्यासी की बात समझ गयी, अब उसे उसकी जड़ी-बूटी मिल चुकी थी।

प्रत्यक्ष में प्रिय और परोक्ष में हानि करने वाले व्यक्ति का परित्याग करना चाहिए

“संन्यासी ने कहा कि देवी कभी भी कपट व्यवहार न करें।वेद ने सावधान किया है कि प्रत्यक्ष में प्रिय बोलने वाले और परोक्ष में कार्य की हानि करने वाले व्यक्ति का परित्याग करना चाहिए, वह विष से भरे घड़े की तरह है जिसके मुख में दूध भरा हुआ दिखता है। कपटी कुमित्र का साथ नहीं करना चाहिए। ऋग्वेद में ऐसे व्यक्ति को ‘द्वयु: ‘ कहा गया है। “द्वयु: द्वाभ्यां प्रकाराभ्यां युक्तो भवति।” अर्थात् जो हमारे लिए ऐसा कपटपूर्ण व्यवहार करता है, वह शत्रु पाप का भागी बने।” सर्वत्र ईंट का जवाब पत्थर ही नहीं होता।

जो तोको कांटा बोवे, ताको बोवे तू फूल। तोको फूल के फूल हैं, वाको है त्रिशूल।

मां पृथ्वी पर यह व्यवहार मनन करने योग्य है।

शिक्षा: मधुर व्यवहार व प्यार से हर किसी को वश में किया जा सकता हैं। अतः हमें भी सभी के अंदर प्रेम भावना जागृत करने की सोचनी चाहिए। वह भी आन्तरिक हो, दिखावटी/ बनावटी नहीं।