श्रद्धा-भक्ति: औषधी और गुरू के प्रति जीव की जैसी श्रद्धा वैसा ही मिलेगा फल

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क्या करें जब ऐसे हों गुरुदेव बृहस्पति, विषम फल, कारण और निवारण
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मन्त्रे, तीर्थे, द्विजे, देवे, दैवज्ञे, भेषजे गुरौ।
यादृशी भावना यस्य, सिद्धिर्भवति तादृशी।।

मंत्र, पवित्र नदी का जल, ब्राह्मण, भगवान, ज्योतिषी, औषधी और गुरू इनके उपर जीव की जैसी श्रद्धा होगी उनको वैसा ही फल प्राप्त होगा।

श्रीरामचरित मानस में कहा गया है कि ईश्वर के प्रति जिनकी जैसी भावना रहेगी, ईश्वर का दर्शन भी उसी के अनुसार होगा, इसके साथ- साथ श्री दुर्गा सप्तशती के “कवच” मे स्पष्ट किया गया है कि जैसा आपका चिन्तन होगा उसी के अनुरूप फल की प्राप्ति होगी।

श्रद्धा मन का सामर्थ्य है और मन ही महान सुख-दुख का कारण है, इसी के निर्मल होने पर सब कुछ निर्मल हो जाता है बन्धन और मोक्ष का कारण भी न यह देह है और न जीवात्मा और न ही यह इन्द्रियाँ है अपितु मन ही मानव के बन्धन और मुक्ति का कारण है।

अत: मन को सदैव शान्त, निर्मल एवं शुद्ध रखते हुये प्रभु पर पूर्ण श्रद्धा तथा विश्वास भी रखने का निरंतर प्रयास करते रहें।

जैसे बिजली तारो में बहती है और सूर्य की किरणों मे अनन्त उर्जा है, लेकिन कुचालक तत्व लकड़ी और प्लास्टिक उसका अनुभव नही कर पाते जबकि सुचालक तत्व धातु और यंत्र उस विद्युत उर्जा को संग्रहीत कर उससे अनेको चमत्कारिक कार्य कर सकते हैं।

उसी प्रकार *श्रद्वा भक्ति का वह द्वार है जिसके अन्दर से अंनन्त उर्जा हमारे हृदय में प्रवेश कर हमें शिवतत्व का बोध कराती है।

श्रद्वा भक्ति से जीवन में नैतिकता का संचार होता है जो संतों और गुणी पुरुषों के,जो सदैव जन-जन के कल्याणस्वरूप परमात्म तत्व में स्थित रहते है के सम्पर्क में आने से उपलब्ध होता है, इसलिए जीवन में सदैव श्रद्धा और भक्ति का भाव बनाए रक्खें इससे आपका मंगल ही होगा।

आज के देव की असीम कृपा से आप सपरिवार सुखी, स्वस्थ, समृद्ध, निरोगी एवं दीर्घायु हों। श्रीचरणों से प्रतिपल यही कामना व प्रार्थना करते हैं।

ई०/पं०सुन्दर लाल उनियाल (मैथिल ब्राह्मण)
नैतिक शिक्षा व आध्यात्मिक प्रेरक