कविता: नवयुग नवल विकास क्रम में

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   @कवि:सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।
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स्वर्ग धरा का अंतर कितना !
जितना उम्र के बंधन में है।
एक तरफ़ वन प्रदेश है !
तरफ  दूसरी कंक्रीट महल।
कितना फ़र्क पड़ा धरती में,
एक भूमि वन महल खड़े !
एक कोख से जन्मे दोनों,
यह अंतर कैसे पड़े बड़े।

एक कुदरती,मानव निर्मित,
क्षण भंगुर  तो दोनों ही हैं।
वन को आग तूफान हरेगा,
या भूकम्प इमारत ढाएगा।
ज्वालामुखी, भूस्खलन- पानी ,
कहर कभी बरपाएगा।

संभल गया यदि  मानव तो,
धरती वह स्वर्ग बनाएगा।
वरना अपनी ही नादानी से,
पछतावे को समय न पाएगा।
समय चेतना के युग मानव,
सुनियोजित विकास जगाएगा।
नव युग नवल विकास क्रम मे,
धरती पुत्र बन मान बढ़ाएगा।

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