कविता: अगर नहीं बुझेगी यह आग भंयकर… !

    95
    कविता: अगर नहीं बुझेगी यह आग भंयकर... !
    यहाँ क्लिक कर पोस्ट सुनें

      जंगल में जब आग लगी थी,
    वन जलकर के खाक हुआ।
    जीव जन्तु तरु तृण कीट भी,
    बेकसूर बेवजह  स्वर्ग गया।

    अब पेट्रोल पर आग लगी है,
    डीजल जलकर खाक हुआ।
    गैस सिलेंडर जलकर दहका,
    आंच सरकार के दर पहुंचा।

    [su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी  @कवि: सोमवारी लाल सकलानी, निशांत[/su_highlight]

    अगर नहीं बुझेगी आग भंयकर,
    मंहगाई राक्षस बन सब खायेगी,
    तो बाईस चौबीस में निश्चित यह,
    सरकारों को तक जला डालेगी।

    समय अभी है नियंत्रण कर लो !
    वरना यह दावानल बन जाएगी।
    भाषण से पेट नहीं भर पाएगा,
    बेरोजगार कैसे  रोटी खायेगा ?

    तेल नहीं- तुम धार भी देखो जी,
    क्या तेल- तांडव यह गहराया है !
    निचले मध्यम वर्ग की खातिर तो,
    तेल मंहगाई- कयामत ले आया है।

    फिर दोष नहीं देना तुम कवि को,
    क्यों नहीं पहले  हमें चेताया था ?
    तेल कीमतों बढती मंहगाई कारण,
    जन लाचार दु:खी बहुत संताया है।