पितृ विसर्जन अमावस्या, पुण्यदायक गज छाया योग: देवकार्य से पूर्व पितरों को अवश्य तृप्त करना चाहिये।

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मौनी अमावस्या की हार्दिक शुभकामनाएं
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पितृ विसर्जन अमावस्या है और एक विशेष योग भी है, ‘गज छाया योग’ यह योग केवल आश्विन माह की अमावस्या को ही होता है जब सूर्य और चंद्रमा दोनों हस्त नक्षत्र में होते हैं। रात्रि एक बजकर सात मिनट से हस्त नक्षत्र प्रारम्भ हुआ व आज श्याम चार बजकर तैंतीस मिनट तक अमावस्या है, इस मध्य गज छाया योग है। जो पुण्य दायक है, अतः आज के पितृ तर्पण का विशेष महत्व है। यह उनके लिए महत्वपूर्ण है जो अपने धर्म के प्रति आस्थावान हैं और धर्म को सर्वोपरि मानते हैं । धर्म लोक दिखावा भी नहीं है। तभी तो भगवान श्री कृष्ण ने कहा था कि ‘स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह:।*

अपने देश व अपने धर्म के प्रति जागरूक रहने की आवश्यकता है, लोक दिखावा नहीं? अपने धर्म की मजाक भी नहीं करनी चाहिए, इस सन्देश से बहुत कुछ सीखा जा सकता है ।
” एक अमरिकी व्यक्ति हिंदुस्तान में घूमकर, जब वापस अमेरिका पहुचता है तो उसका एक हिंदुस्तानी मित्र उससे पूछता है:-
” *कैसा रहा हिंदुस्तान का भ्रमण ?” वह बोलता है:-
” *वास्तव में हिंदुस्तान एक अद्वितीय जगह है*।”
*मैंने वाराणसी के घाट देखें, अक्षरधाम मंदिर देखा, इंडिया गेट, लाल किला, गेटवे ऑफ इंडिया, अजंता – एलोरा की गुफाएं, पुरी का मंदिर, मथुरा जी, दिल्ली-मुंबई से लेकर भारत की हर वह छोटी बड़ी जगह देखी जो प्रसिद्ध हैं।” हिंदुस्तानी अपने देश की तारीफ सुनकर बहुत खुश हुआ। और पूछा:-
” *हमारे हिंदुस्तानी भाई कैसे लगे* ?”  अमेरिकी बोला:-
” *वहां तो मैंने कोई हिंदुस्तानी देखा ही नहीं*।”
हिंदुस्तानी उसका मुंह देखने लगा !! बहुत बड़ा आश्चर्य?
अमेरिकी बोलता रहा-
“मैं एअरपोर्ट पर उतरा तो सबसे पहले मेरी भेंट मराठियों से हुई,
आगे बढा तो पंजाबी,
हरियाणवी, गुजराती, राजस्थानी , बिहारी, तमिल और आसामी जैसे बहुत से लोग मिले।
छोटी जगहों पर गया तो बनारसी, जौनपुरी, सुल्तानपुरी, बरेलवी आदि मिले।
*नेताओं से मिला तो कांग्रेसी, भाजपाई, बसपाई, आप वाले। गाँव में गया तो ब्राह्मण, जाट, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र मिले। परन्तु हिंदुस्तानी तो कहीं मिले ही नहीं* ? “”‘

“” *इस सच्चाई को आज के पितृ विसर्जन अमावस्या के साथ भी जोड़ा जा सकता है। यह पितृपक्ष आज समाप्त हो रहा है, अर्थात् श्राद्ध आज समाप्त हो जाएंगे, पर ध्यान यह रखना होगा कि श्रद्धा कभी भी समाप्त न हो!

*हमारे देश में दिवंगत आत्माओं के लिए श्राद्ध जैसी अनूठी परम्परा है, तो जीवित बुजुर्गों के लिए वृद्धाश्रम की कल्पना हास्यास्पद व लज्जाजनक है। कौन भेजते हैं अपने बुजुर्गो को वृद्धाश्रम जो बाहर के लोगों से अपने माता-पिता के लिए तथा कथित छल का नाटक करते हैं, मैं अपने बुजुर्गो को बहुत प्यार से रखता हूं आदि आदि। अतः प्रयास यह किया जाय कि वर्ष के शेष दिनों अपने जीवित बुजुर्गों की सेवा की जाय। अन्यथा इन सोलह दिनों जो भी पुण्य किया व्यर्थ चला जायेगा, और यहां से अमरीका जाकर यही कहेंगे कि भारत में कोई भारतीय नहीं मिला। अपनी संस्कृति को बचाते हुए आचरण में भी उतारने का यत्न करेंगे। ”
सार सार को गही रहे थोथा देय उड़ाय।
‌बहुत कड़वा हैं किन्तु सत्य है।

*आचार्य हर्षमणि बहुगुणा

अ.प्रा. प्रधानाचार्य, साबली, रानीचौरी, टिहरी गढ़वाल।

पितृ विसृजन-अमावस्या

*अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्*
*नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्*

हमारे पूर्वज जो हम सबके द्वारा पूजित हैं जो अमूर्त अत्यन्त तेजस्वी ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि से सम्पन्न है।

शास्त्रों में निहित उपदेशों के अनुसार हम सबको अपने पूर्वजों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिये, यह आप सबके ऊपर पितृ ऋण है, जिसका चुकाना अति आवश्यक है।

श्राद्ध कभी भी छोड़ना नहीं चाहिये, *नैव श्राद्ध विवर्जयेत्* क्योंकि श्रद्वा से ही श्राद्ध शब्द की उत्पत्ति हुयी है।

हे मानव अमरत्व और मृत्यु दोनों इसी शरीर में ही निवास करते हैं, जिसमें मृत्यु लोभ के कारण आती है और अमरत्व सत्य के कारण आता है।

हे मानव जिस प्रकार पेड़ की जड़ में पानी देने पर फल जड़ पर उत्पन्न होने के बजाय पेड़ की ऊपरी शाखाओं पर प्राप्त होते हैं, उसी प्रकार आपके द्वारा यहाँ पर जो भी कर्म किये जाते हैं उसका फल परलोक में प्राप्त होता है।

इसलिये जिसको भी अपने पूर्वजों की गोलोक गमन की तिथि ज्ञात न हो वे सब पितृपक्ष की अमावस्या तिथि में श्रद्वा एवं सात्विक भाव सें अपने पूर्वजो का श्राद्ध कर सकते हैं।

श्राद्ध के अन्नादि-भोजन से उनकी तृप्ति होती है तथा श्राद्ध कर्म में दिये गये पदार्थ मंत्र की शक्ति से वहाँ उन तक पहुँच जाते हैं जहाँ पर लक्षित जीव अवस्थित रहते हैं।

वैसे भी शाष्त्रानुसार देवकार्य की अपेक्षा पितृकार्य की विशेषता अधिक मानी गयी है।

*देवकार्यादपि सदा पितृकार्य विशिष्यते*
*देवताभ्यो हि पूर्व पितृणामाप्यायनं वरम्*

अत: देवकार्य से पूर्व पितरों को अवश्य तृप्त करना चाहिये।

आज पितृ विसर्जन के अन्तिम दिन अमावस्या के अवसर पर सभी पितृ आत्माओं के श्रीचरणों में आप सबकी ओर से बार बार साष्टांग प्रणाम निवेदित करते हैँ।

हम सबके पितृ अपने अपने बच्चों पर विशेष कृपा बनाए रक्खें तथा सभी परिवार सदैव सुखी, स्वस्थ, समृद्ध और निरोगी रहे, पिर्तों के श्रीचरणों से प्रतिपल यही कामना व प्रार्थना करते हैं।

*ई०/पं०सुन्दर लाल उनियाल

नैतिक शिक्षा व आध्यात्मिक प्रेरक, दिल्ली/इन्दिरापुरम, गा०बाद/देहरादून।