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तीर्थाटन और पर्यटन का प्रत्येक युग में रहा है महत्व, चौदहवीं शताब्दी इंग्लैंड में सबसे बड़ी और शानदार Canterbury की यात्रा

केदार सिंह चौहान 'प्रवर' by केदार सिंह चौहान 'प्रवर'
नवम्बर 26, 2021
in Featured, पर्यटन/पर्यावरण
कविता: वाह रे पुतिन! कोरोना का डर भगा दिया
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पर्यटन और तीर्थाटन का आदिकाल से ही महत्व रहा है। तीर्थाटन जहां एक और धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत यात्रा होती है, वहीं दूसरी ओर व्यक्ति को स्थान  तौर-तरीकों, संस्कृति, प्रकृति और मानवीय प्रवृतियों  को जानने की पाठशाला भी है।

 सरहद का साक्षी @कवि: सोमवारी लाल सकलानी, निशांत 

छात्र जीवन में कोई भी पुस्तक परीक्षा पास करने के लिए या अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए पढ़ी थी। सार्वजनिक जीवन में आ जाने के बाद गहन अध्ययन करने का समय नहीं पाया लेकिन अवकाश प्राप्ति के बाद  पर्याप्त समय है। सोचा क्यों ना गंभीरता से किसी भी पुस्तक का अध्ययन किया जाए ।

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यह अध्ययन भले ही अब किसी प्रतियोगिता परीक्षा में काम नहीं आएगा न किसी विश्वविद्यालय में कोई प्राध्यापक का पद प्रदान करेगा,  फिर भी आत्म संतुष्टि अवश्य प्रदान करेगा। इसी अनुक्रम में कई दिनों से  Geoffrey Chaucer की पुस्तक The prologue to The Canterbury tales का पुनः अध्ययन कर रहा हूं। The prologue to The Canterbury tales ग्रेट ब्रिटेन के चौदहवीं शताब्दी का दर्पण है महान साहित्यकार ने तत्कालीन यात्रा में शामिल लोगों की  कथाओं तथा व्यक्तियों और उनके व्यक्तित्व को उजागर किया है।

चौदहवीं शताब्दी की इस महान लेखक ने इंग्लैंड के महान तीर्थ The Canterbury की यात्राओं से पूर्व यात्रा में सम्मिलित समस्त 30 व्यक्तियों के पदस्थिति, चरित्र, कार्य, व्यवहार आदि का वर्णन करते हुए तत्कालीन चर्च की स्थिति को भी उजागर किया है। तत्कालीन खान-पान, लोक व्यवहार, आमोद प्रमोद, रुचियां, तौर-तरीकों, वेशभूषा आदि का भी वर्णन किया गया है।

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The prologue to The Canterbury tales के अंतर्गत Chaucer ने Knight (सरदार) Squire (राजकुमार) Yeoman (नौकर) Prioress (नुन/नन) Monk (सन्यासी/मठाधीश) Friar (भीखारी) Marchant (व्यापारी) clerk (तर्क शास्त्री) Sergeant of Law (वकील) Franklin (वकील के मुंशी) नाई, धोबी, रसोइया, रंगसाज, नाविक, भौतिकशास्त्री आदि समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों को शामिल किया गया था जो  यात्रा के दौरान पड़ावों में अपने कहानियां कहेंगे। जिसे की यात्रा की थकान भी दूर होगी और यात्रा हंसी खुशी के माहौल में संपन्न भी होगी। साथ ही कुछ ना कुछ ज्ञान भी प्राप्त होगा।

कहानियों का प्रकरण चौसर की मुख्य किताब में सम्मिलित है। जिसको  अगली कड़ी में पाठकों के सामने प्रस्तुत किया जाएगा। फिलहाल आज प्रोलॉग में यात्रा में शामिल लोगों के चरित्र को चौसर के द्वारा बहुत ही व्यंग्य पूर्ण ,खुशनुमा माहौल में अभिव्यक्त किया गया है ।सरदार की क्या विशेषताएं थी। उसके द्वारा कहां कहां और क्या युद्ध लड़े गए और जीते गए। राजकुमार का चरित्र कैसा था। सेवक की वेशभूषा तथा लाइफस्टाइल किस प्रकार की थी।

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यात्रा में सम्मिलित समस्त लोगों के व्यवहार को भी लेखक के द्वारा इस पुस्तक में अभिव्यक्त किया गया है। धर्म, राजनीति  गिरजाघर आदि में कालांतर में जो विकार उत्पन्न हो जाते हैं, जो बुराइयां व्याप्त हो जाती है, उनका भी लेखक के द्वारा प्रोलॉग में  सटीक चित्रण किया गया है। कुल मिलाकर प्रोलॉग टू द कैंटरबरी टेल्स तत्कालीन यूरोप के चौदहवी शताब्दी का आईना है। जिसका चौसर के द्वारा सटीक उल्लेख किया गया है। (श्रोत- चौसर की किताब से)

            *कवि कुटीर, सुमन कॉलोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल।

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Tags: geoffrey chaucerthe prologue to the canterbury talesपर्यटन और तीर्थाटन
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