विश्व एड्स दिवस पर श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के ऋषिकेश परिसर में एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित

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विश्व एड्स दिवस पर श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के ऋषिकेश परिसर में एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित
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श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के पंडित ललित मोहन शर्मा कैंपस ऋषिकेश में राष्ट्रीय सेवा योजना इकाई एवं रेड रिबन क्लब द्वारा विश्व एड्स दिवस के अवसर पर एड्स की रोकथाम एवं जागरूकता में युवाओं का योगदान विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।

[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी, ऋषिकेश [/su_highlight]

कार्यशाला की अध्यक्षता प्राचार्य प्रोफेसर पंकज पंत द्वारा की गई। उन्होंने कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा की पिछले कई वर्षों से एड्स और एचआईवी को लेकर लोगों में जागरूकता पैदा करने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन फिर भी विड़म्बना ही है कि बहुत से लोग इसे आज भी छूआछूत से फैलने वाला संक्रामक रोग मानते हैं। एड्स तथा एचआईवी के संबंध में यह जान लेना बेहद जरूरी है कि इस संक्रमण के शिकार व्यक्ति के साथ हाथ मिलाने, उसके साथ भोजन करने, स्नान करने या उसके पसीने के सम्पर्क में आने से यह रोग नहीं फैलता। इसलिए एड्स के प्रति जागरूकता पैदा किए जाने की आवश्यकता तो है ही, समाज में ऐसे मरीजों के प्रति हमदर्दी और प्यार का भाव होना तथा ऐसे रोगियों का हौसला बढ़ाए जाने की भी जरूरत है। ऐसे बहुत से मामलों में आज भी जब यह देखा जाता है कि इस तरह के मरीज न केवल अपने आस-पड़ोस के लोगों के बल्कि अपने ही परिजनों के भेदभाव का भी शिकार होते हैं तो चिंता की स्थिति उत्पन्न होती है। इसलिए इस बीमारी का कारगर इलाज खोजे जाने के प्रयासों के साथ-साथ ऐसे मरीजों के प्रति समाज और परिजनों की सोच को बदलने के लिए अपेक्षित कदम उठाए जाने की भी सख्त जरूरत है।

कार्यशाला में उपस्थित मुख्य अतिथि प्रोफ़ेसर दिनेश चंद गोस्वामी कला संकाय अध्यक्ष ने संबोधित करते हुए कहा इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति का उपहास उड़ाने की कोशिश भी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह असुरक्षित यौन संबंधों के अलावा संक्रमित सुई, खून और अजन्मे बच्चे को उसके मां से भी हो सकता है। आज विश्व ए़ड्स दिवस है। हर साल विश्व भर में इसे मनाया जाता है। इस दौरान तरह-तरह की गतिविधियों और अन्य माध्यम से लोगों को जागरूक किया जाता है, जिससे वो इस बीमारी की चपेट में न आएं विषय विशेषज्ञ के रूप में उपस्थित वरिष्ठ प्राध्यापक वनस्पति विज्ञान प्रोफेसर विद्याधर पांडे ने अपने संबोधन में कहायह बीमारी कितनी भयावह है, यह इसी से समझा जा सकता है कि jएड्स की वजह से दुनियाभर में हर साल लाखों लोग काल का ग्रास बन जाते हैं। हालांकि विश्वभर में एड्स के खात्मे के लिए निरन्तर प्रयास किए जा रहे हैं किन्तु अभी तक किसी ऐसे इलाज की खोज नहीं हो सकी है, जिससे एड्स के पूर्ण रूप से सफल इलाज का दावा किया जा सके।यही कारण है कि एड्स तथा एचआईवी के बारे में हर व्यक्ति को पर्याप्त जानकारी होना अनिवार्य माना जाता है, क्योंकि अभी तक केवल जन जागरूकता के जरिये ही इस बीमारी से बचा और बचाया जा सकता है।

विषय विशेषज्ञ के रूप में उपस्थित जंतु विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर राकेश कुमार ने यूएसए में किए  एड्स विषय पर अपने शोध कार्य एवं पीपीटी के माध्यम से छात्रों को संबोधित करते हुए कहायूनीसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में एड्स पीडि़त सर्वाधिक संख्या किशोरों की है, जिनमें से दस लाख से भी अधिक किशोर दुनिया के छह देशों दक्षिण अफ्रीका, नाइजीरिया, केन्या, मोजांबिक, तंजानिया तथा भारत में हैं।अगर एड्स के कारणों पर नजर डालें तो मानव शरीर में एचआईवी का वायरस फैलने का मुख्य कारण हालांकि असुरक्षित सेक्स तथा अधिक पार्टनरों के साथ शारीरिक संबंध बनाना ही है लेकिन कई बार कुछ अन्य कारण भी एचआईवी संक्रमण के लिए जिम्मेदार होते हैं। शारीरिक संबंधों द्वारा 70-80 फीसदी, संक्रमित इंजेक्शन या सुईयों द्वारा 5-10 फीसदी, संक्रमित रक्त उत्पादों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया के जरिये 3-5 फीसदी तथा गर्भवती मां के जरिये बच्चे को 5-10 फीसदी तक एचआईवी संक्रमण की संभावना रहती है।

सुखद तथ्य यह है कि एंटी-रेट्रोवायरल उपचार पद्धति को अपनाए जाने के बाद एड्स से जुड़ी मौतों का आंकड़ा साल दर साल कम होने लगा है। इसलिए लोगों को इस दिशा में जागरूक किए जाने की भी जरूरत है कि एड्स भले ही अब तक एक लाइलाज बीमारी ही है लेकिन फिर भी एड्स पीड़ित व्यक्ति सामान्य जीवन जी सकता है और एचआईवी संक्रमित हो जाने का अर्थ बहुत जल्द मृत्यु कदापि नहीं है बल्कि उचित दवाओं और निरन्तर चिकित्सीय परामर्श से ऐसा मरीज काफी लंबा और स्वस्थ जीवन जी सकता है।

विश्व एड्स दिवस पर श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के ऋषिकेश परिसर में एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित

कार्यशाला में उपस्थित अंग्रेजी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर हेमंत शुक्ला ने एनएसएस के महत्व एवं एनएसएस द्वारा लोगों को एड्स के प्रति जागरूक करने को कहा संगोष्ठी के कन्वीनर एवं वरिष्ठ कार्यक्रम अधिकारी डॉ अशोक कुमार मेंदोला ने अध्यक्ष एवं सभी अतिथि एवं विषय विशेषज्ञों का आभार व्यक्त करते हुए कहाआज के समय जरूरत इस बात की है कि सरकारें इस दिशा में अपना नजरिया बदलें ताकि एड्स जैसी महामारी से मुकम्मल तरीके से मोर्चा लिया जा सके। ज्यादातर मामलों मे एचआईवी संक्रमण होने पर उन्हें घर छोड़ने को कह दिया जाता है। पत्नियों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने एचआईवी पॉजिटिव पति का साथ निभाएं, लेकिन पति कम ही मामलों में वफादार साबित होते हैं। इस तरह की समस्याओं के प्रति नजरिया बदलने की जरूरत है। क्योंकि यह सुखद संदेश है कि लोगों में जागरूकता और प्रयास से संक्रमित मामलों में कमी आ रही है।

विश्व एड्स दिवस पर श्री देव सुमन उत्तराखंड विश्वविद्यालय के ऋषिकेश परिसर में एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित

मंच का संचालन कार्यशाला की ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेट्री एवं कार्यक्रम अधिकारी डॉ प्रीति खंडूरी द्वारा किया गया उन्होंने अपने संबोधन में कहाएचआइवी के लक्षण बेहद सामान्य से हैं, जिन्हें लोग नजरअंदाज कर देते हैं। एड्स में लगातार तेज बुखार, हमेशा थकान व नींद आना, भूख में कमी, रात में सोते समय पसीना आना, दस्त लगना व वजन में कमी होना इसके प्रमुख लक्षण हो सकते हैं। इस संक्रमण की स्थिति में त्वचा पर चक्कते भी पड़ सकते हैं तथा ग्रंथियों में सूजन आ सकती है। किसी व्यक्ति को अगर खुद के एचआइवी संक्रमित होने का शक हो और ऐसे लक्षण भी दिखें तो उसे एचआइवी संक्रमण की जांच जरूर करा लेनी चाहिए। इस कार्यशाला में 184  स्वयंसेवीयोने प्रतिभाग किया।