शौर्य और वीरता में ही नहीं, संस्कार, सम्मान और सहृदयता में भी अग्रणी है : महावीर चक्र शहीद बाबा जसवंत का गांव -बाड़्यों 

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शौर्य और वीरता में ही नहीं, संस्कार, सम्मान और सहृदयता में भी अग्रणी है : महावीर चक्र शहीद बाबा जसवंत का गांव -बाड़्यों 
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लगभग दो माह पूर्व, पूर्व सैनिक संगठन के संरक्षक श्री इंद्र सिंह नेगी के आग्रह पर “हीरो ऑफ नेफा” महावीर चक्र विजेता अमर शहीद राइफलमैन जसवंत सिंह रावत के स्मरण दिवस (शौर्य दिवस) पर उनके गांव  बाड़्यों, पट्टी खाटली, विकासखंड- बीरोंखाल, जनपद – गढ़वाल जाने का अवसर मिला। यह एक संयोग था।

[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @कवि:सोमवारी लाल सकलानी, निशांत[/su_highlight]

गढ़वाल के अधिकांश विकास खंडों का भ्रमण मैंने किया किंतु बीरोंखाल का यह इलाका नहीं देखा था। सतपुली से आगे जाने का कभी संजोग नहीं मिला। चलो, जसवंत बाबा ने अपने गांव बुलाया होगा, इसलिए जाना हुआ।
17 नबम्वर 2021 शौर्य दिवस के अवसर पर  उनके गांव में भव्य मेले का आयोजन हुआ। यह राजकीय मेला था। क्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट को मेले में शिरकत करनी थी। सैनिक कल्याण मंत्री (उत्तराखंड सरकार) श्री गणेश जोशी भी  इस अवसर पर माननीय रक्षा राज्यमंत्री के साथ उपस्थित हुए, अपार जनसमूह के बीच, उनके गांव में यह कार्यक्रम हुआ।

मेरा यात्रा का मकसद शौर्य दिवस के साथ-साथ उस महावीर के जन्म स्थल को देखने की उत्कंठा भी मन में थी और फौजी पुत्र होने के नाते “हीरो ऑफ नेफा” जसवंत बाबा के बारे में जानने की भी। उसी क्षेत्र की महान वीरांगना तीलू रौतेली का जन्म स्थान देखने की भी मन में लालसा थी। इस के साथ ही क्षेत्रीय अध्ययन, पूर्वी नयार घाटी की पारिस्थितिकी, गढ़वाल में पलायन, कोरोना वायरस के बाद उत्पन्न हुई परिस्थितियां, रिवर्स पलायन और उत्तराखंड राज्य बनने के बाद विकास  की हकीकत को देखना भी था। सामाजिक प्राणी होने के नाते पर्वतों के आर- पार की परंपराएं, लोक संस्कृति, सामाजिकता, स्थानीय बोली-भाषा आदि के बारे में भी जानकारी प्राप्त करना कर्तव्य समझता हूं।

16 नवम्बर शाम को 3:00 बजे के करीब हम बाड़यों पहुंचे। “जेएसआर मेमोरियल ट्रस्ट” के ट्रस्टी श्री रघुवीर सिंह रावत जी को फोन लगाया गया। वे आयोजन स्थल पर कार्यक्रम की व्यवस्था में लगे हुए थे। अनेकों लोग दिल्ली और दूरदराज के क्षेत्रों से इस मेले को भव्य बनाने में आयोजकों की भूमिका में कार्य कर रहे थे। इसलिए उन्होंने बताया कि हम उनके घर पर चले जाएं।
श्री इंद्र सिंह नेगी उनके परिवार जनों को पहले भी मिले थे। स्वयं रघुवीर सिंह रावत जी के पिताजी एक रिटायर्ड फौजी हैं। इसलिए फौजी और महावीर चक्र जसवंत सिंह रावत के परिवार जन होने के नाते श्री इंद्र सिंह नेगी (पूर्व सैनिक) से निकटता होना भी लाजिमी था। वह भी विक्टोरिया क्रॉस गबर सिंह नेगी के परिवार से हैं। इसलिए दोनों फौजियों में काफी समानता भी है।

श्री रघुवीर सिंह रावत जी के पिता श्री भीम सिंह रावत लगभग 70 वर्ष के रिटायर्ड फौजी जवान हैं। वे और उनकी धर्मपत्नी दोनों अपने घर पर थे। हमारे जाने पर श्री इंद्र सिंह जी को उन्होंने पहचान लिया और बहुत ही आदर- सम्मान के साथ बैठाया और उसके बाद लगातार 24 घंटे तक जो आदर -सम्मान उस घर पर हमें मिला, वह आज तक दुर्लभ था। कभी भुलाया नहीं जा सकता है।

इतना आदर सत्कार का यह भाव मैंने 62 वर्ष की उम्र तक कभी नहीं देखा था। हर ओर औपचारिकता ही औपचारिकता देखने को मिली। बचपन से ही नाते- रिश्तेदारों के यहां जाना हुआ। बचपन में जब नानाकोट जाता था तो समय बहुत छोटा था। उस समय मान -सम्मान की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। हां ! प्यार ननिहाल से ज्यादा संसार में दूसरी जगह नहीं मिल सकता है। शादी हुई, मेरे बच्चों की भी शादी हुई। अनेक नाते- रिश्तेदार, बंधु बांधव, परिचितों, मित्रों के यहां जाना- आना हुआ, लेकिन इस प्रकार की आत्मीयता भरा सम्मान जीवन में कभी नहीं अहसास किया।

पहले से जान ना पहचान, न नाते-रिश्तेदारी, न गांव न क्षेत्र, न साथी, सहपाठी,सहकर्मी और न मित्रों का घर!  फिर भी इतना सम्मान ! इसे संयोग कहूं या उनके संस्कार,या अपना भाग्य। कारण जो भी रहा हो लेकिन यह उनके संस्कार हैं, मुझे लगा। अपने ब्राह्मण कुल में उत्पन्न होने और शिक्षक होने का एहसास भी उसी घर में जाकर हुआ। जब उसके उस घर के बूढ़े और बुजुर्ग भी सम्मान और आदर के साथ चरण छूने लगे। उनकी भावनाएं ही बता रही थी कि हमें मेहमान के  रुप में, अपने घर में उपस्थित होने के कारण  कितने खुश थे !
‘अच्छे आचार- विचार,अच्छी भावनाएं, अच्छा आहार विहार और अच्छे संस्कार ईश्वरीय वरदान हैं।यदि हम शराबी होते तो शराब भले ही वे पिला देते लेकिन आत्मीय स्नेह, मान-सम्मान कभी न मिलता।’

पलायन के कारण या बढे- चढ़े लोग होने के कारण, अब उस गांव में बमुश्किल 25 परिवार रहते होंगे और सब बड़े आदमी बन के महानगरों को चले गए हैं। श्री भीम सिंह रावत जी का परिवार भी कोई गरीब परिवार नहीं है।सबसे अच्छा मकान उनका बाड़ियों में।  तीनों बेटे बहुत काबिल और अच्छी जगहों पर शहरों में कार्यरत हैं। लेकिन दो दिन मे, मर्यादा का जो भाव मैंने उनकी बहू, बच्चों, बेटियों या उनके परिवारजनों मे देखा, वह सराहनीय तथा अनुकरणीय है।

सुनने और देखने में बहुत अंतर है। सुना था कि गढ़वाल के लोग टिहरी वासियों से अधिक बढ़े- चढ़े होने के कारण दिल से सम्मान नहीं करते हैं, उचित आदर नहीं देते हैं लेकिन यह बात मिथ्या साबित हुई।

आदरणीय भीम सिंह जी की पत्नी, जिनको मैं दीदी कहने में गर्व महसूस करता हूं। लगभग 65 साल की महिला होगी, एक अच्छे घर से है। उनके दो भाई मेरे पूर्व परिचित और अधिकारी रहे हैं। श्री सत्येंद्र सिंह रावत- पूर्व प्रधानाचार्य राजकीय श्री देव सुमन इंटर कॉलेज चंबा तथा श्री मोहन सिंह रावत बेसिक शिक्षा अधिकारी, टिहरी गढ़वाल रहे हैं। उनका भतीजा श्री बृजमोहन सिंह रावत, संप्रति संयुक्त निदेशक -शिक्षा विभाग ,उत्तराखंड तथा अन्य परिवार जन, भाई -भतीजे अच्छे-अच्छे पोस्टों पर भारत में सेवारत हैं। कहते हैं कि बड़े घरों के लोग छोटे लोगों का आदर नहीं करते। यह बात भी भ्रामक है।

महावीर चक्र प्राप्त जसवंत सिंह बाबा के बारे में समय-समय पर में काफी लिखता रहा हूं और अपनी यात्रा के संबंध में उन पर पोस्ट और कविता भी प्रस्तुत की हैं। आज मैं पुन: उस परिवार को नमन करता हूं जिन्होंने एक आत्मीय भाव से हमें उचित सम्मान दिया। जबकि उनके सैकड़ों नाते रिश्तेदार और परिवार जन मेले के लिए गांव में आए थे। अपने परिवार और रिश्तेदारों की सुविधा को न देखकर उन्होंने पूरा ध्यान हमारे मान और सम्मान में ही केंद्रित रखा। इसके लिए मैं मां भगवती से प्रार्थना करता हूं कि ऐसे घर को रिद्धि- सिद्धि प्रदान करे जो कि मानवता की एक जीवंत मिसाल हैं। जिनके अंदर अपने और पराए का भाव नहीं है। जो अतिथियों का आदर करना जानते हैं। मेरा मानना है कि इसीलिए  भी वे बड़े हैं। मैं निसंकोच कह सकता हूं कि वास्तव में उस परिवार से हम आज भी काफी पीछे हैं।केवल विकास में ही नहीं, बल्कि विचारों और भावनाओं में भी वे हम से काफी आगे हैं। एक बार पुन: महावीर चक्र शहीद जसवंत बाबा की पावन धरती को नमन करते हुए, आदरणीय भीम सिंह रावत जी को, उनके  परिवारजनों को मैं प्रणाम। हृदय से आभार व्यक्त करता हूं ।