शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता……!

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कटु सत्य: राजनीति और ब्यूरोक्रेसी के लिए पत्रकारिता नहीं झुन्तू की जमींदारी, क्या पत्रकार नहीं थे राज्य आंदोलनकारी?
Kedar Singh Chauhan pravar, Publisher and Editor, Sarhad Ka Sakshi
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इक्कीशवीं सदी के आरम्भिक चरण में पनपे कोरोना काल ने समाज को विभिन्न पहलुओं पर सोचने को विवश कर दिया है, इन्हीं में से एक जो महत्वपूर्ण पहलू है वह है शिक्षा। वर्तमान परिवेश में शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता जरूरी प्रतीत होती है, कोविड काल में शिक्षा का बहुत ज्यादा ह्रास हुआ है। देश के भावी कर्णधारों की शिक्षा-दीक्षा सर्वाधिक प्रभावित हुई है। हालांकि संचार क्रांति के इस दौर में ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली ने कुछ हद तक शिक्षा के क्षेत्र में उन्नयन का कार्य किया है, मगर संचार माध्यमों की अत्यधिक उपयोगिता के कारण नेटवर्क की समस्या का बहुतायत प्रभाव शिक्षा पर पड़ा है। कोरोना के चलते कई छात्र व बच्चे विद्यालय व कालेज नहीं देख पाये हैं।

सरहद का साक्षी, केदार सिंह चौहान ‘प्रवर’

सरकारी शिक्षण संस्थानों से महरूम हैं छात्र

नया शैक्षिक सत्र आरम्भ होने के बाबजूद भी कई लोगों के पाल्य विद्यालयों में प्रवेश नहीं ले सके हैं। सरकारी शिक्षण संस्थान जिनमें कार्यरत शिक्षकों को निजि शिक्षण संस्थानों की अपेक्षा दस गुना से भी अधिक पारिश्रमिक अथवा तनख्वाह सरकार द्वारा दी जाती है। आज भी छात्र उनसे महरूम हैं और निजि शिक्षण संस्थान कोविड-19 के प्रावधानों के मद्देनजर विद्यालयों में नहीं अपितु घरों पर जाकर अपने छात्रों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।

नई पीढ़ी के निर्माण में शिक्षा और स्वास्थ्य का सबसे महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। इन दोनों में से यदि किसी एक को लिया जाय तो पहला स्थान शिक्षा को मिलेगा, क्योंकि अच्छी शिक्षा के माध्यम से ही स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है। अतएव वर्तमान स्कूली शिक्षा में बदलाव की आवश्यकता है। कालेज की शिक्षा से महत्वपूर्ण स्कूली शिक्षा है। “यहाँ पर कालेजस्कूली शिक्षा का तात्पर्य उच्च एवं प्राथमिक शिक्षा से है”।

एक बार गलत बुनियाद पड़ने पर उच्च शिक्षा अर्थात् कालेज की शिक्षा पर भी उसके दुष्परिणामों को भुगतना पड़ता है। स्वयंसेवी संगठन एवं सरकारें अपने-अपने स्तर से सबको शिक्षा देने के लिए प्रयासरत् होने का दावा करती हैं, लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि स्कूली शिक्षा के अंतर्गत 6 से 14 आयु वर्ग के बच्चों के लिए इस प्रकार की शिक्षा हो, जिससे वे अपने विकास के रास्ते स्वयं बना सकें, जिसे हम दो वर्गों में बाँट सकते हैं। 6 से 11 वयवर्ग की शिक्षा और 11 से 14 वयवर्ग की शिक्षा। इसके बाद उच्च विद्यालयी शिक्षा के लिए हो सकते हैं, जो सबके लिए अनिवार्य नहीं है। 6 से 11 वयवर्ग के बच्चों को बस्ते के बोझ से मुक्त रखना जरूरी है। कुछ कापी और किताबों से उनका काम चल सकता है।

उनके लिए विद्यालय स्तर पर ही पुस्तकालय की व्यवस्था हो, जहां उन्हें अपने शैक्षिक स्तर की अच्छी पुस्तकें पढ़ने को मिल सकें और वे अपनी रुचि अनुसार छांटकर और अदल-बदलकर पुस्तकें पढ़ सकें। इस आयु वर्ग के बच्चों को पहाड़े, आरम्भिक गणित और लिखने के अलावा जिज्ञासा और तर्क-शक्ति विकसित करने पर जोर दिया जाना चाहिए। उचित आहार और स्वास्थ्य के नियमों की सरल और रोचक चर्चा इसी आयु वर्ग के प्रारम्भिक चरण से आरम्भ होनी चाहिए।

नैतिक जीवन के मूल्य, सत्य और ईमानदारी की गरिमा को अनेक सुरुचिपूर्ण और मनोरंजक कहानियों तथा प्रेरणादायक व्यक्तियों के जीवन के उदाहरणों से बताना चाहिए। 11 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए लगभग सभी जरूरी विषय रखे जायं, मगर इन्हें इस ढंग से पढ़ाया जाय कि वे जरूरी और आसानी से समझ में आने वाली बुनियादी जानकारी प्राप्त कर सकें। बेवजह भटकाव न हो और रटने की प्रवृति न पनपे। इसके लिए पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए विशेष सावधानियां बरती जांय। बच्चों को घटिया स्तर की कुंजियों का सहारा लेने की आवश्यकता न पड़े।

छात्र के कार्य का मूल्यांकन चन्द घण्टों में नहीं किया जाना चाहिए

वर्तमान शिक्षा प्रणाली से छात्रों में जो तनाव, भय, एक दूसरे की होड़ की गलत प्रवृति और भाग्यवाद पनप रहे हैं, उससे बच्चों को बचाने की आवश्यकता है। किसी भी छात्र के कार्य का मूल्यांकन चन्द घण्टों में नहीं किया जाना चाहिए। बोर्ड चाहे कोई भी हो, परीक्षा पद्धति लचीली होनी चाहिए। ताकि छात्रों का अहित न हो। चौदह वर्ष तक की आयु का पाठ्यक्रम अपने आप में इतना महत्वपूर्ण होना चाहिए कि जो बच्चे आगे नहीं पढ़ सकेंगे। वे भी सभी महत्वपूर्ण विषयों की बुनियादी, संतुलित और सारगर्भित जानकारी प्राप्त कर सकें।

इस पूरी शिक्षा पद्धति के लिए एक ऐसे अध्यापक की प्रबल आवश्यकता है, जो मेहनत और लगन से कार्य करने की प्रवृति रख सकता हो। इसके लिए देर-सबेर प्रयास करने होंगे। तभी बेहतर परिणामों की आशा की जा सकती है। विदेशों व देश के कुछ हिस्सों में इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली लागू की जा चुकी है। इसमें छात्रों को प्रकृति को समझने के लिए भ्रमण कार्यक्रम के द्वारा कृषि-बागवानी के अलावा इतिहास, भूगोल की जानकारी भी दी जाती है।