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चान्द्र श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है नागपंचमी का पर्व 

नागपंचमी: इस दिन है नागों की पूजा करने का विधान

हिंदू धर्म में नागों को भी देवता माना गया है

जिनका काल सर्प योग है वे शांति के लिए करें ये उपाय

चान्द्र श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व आज 21 अगस्त, सोमवार को है। इस दिन नागों की पूजा करने का विधान है। हिंदू धर्म में नागों को भी देवता माना गया है। महाभारत आदि ग्रंथों में नागों की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। इनमें शेषनाग, वासुकि, तक्षक आदि प्रमुख हैं।

नागपंचमी के अवसर पर आपको ग्रंथों में वर्णित प्रमुख नागों के बारे में बताने का प्रयास कर रहा हूं-

वासुकि नाग

धर्म ग्रंथों में वासुकि को नागों का राजा बताया गया है। ये भगवान शिव के गले में लिपटे रहते हैं। (कुछ ग्रंथों में महादेव के गले में निवास करने वाले नाग का नाम तक्षक भी बताया गया है)। ये महर्षि कश्यप व कद्रू की संतान हैं। इनकी पत्नी का नाम शतशीर्षा है। इनकी बुद्धि भगवान भक्ति में लगी रहती है। जब माता कद्रू ने नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब नाग जाति को बचाने के लिए वासुकि बहुत चिंतित हुए। तब एलापत्र नामक नाग ने इन्हें बताया कि आपकी बहन जरत्कारु से उत्पन्न पुत्र ही सर्प यज्ञ रोक पाएगा।

तब नागराज वासुकि ने अपनी बहन जरत्कारु का विवाह ऋषि जरत्कारु से करवा दिया। समय आने पर जरत्कारु ने आस्तीक नामक विद्वान पुत्र को जन्म दिया। आस्तीक ने ही प्रिय वचन कह कर राजा जनमेजय के सर्प यज्ञ को बंद करवाया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय नागराज वासुकि की नेती (रस्सी) बनाई गई थी। त्रिपुरदाह (इस युद्ध में भगवान शिव ने एक ही बाण से राक्षसों के तीन पुरों को नष्ट कर दिया था) के समय वासुकि शिव धनुष की डोर बने थे।

शेषनाग

शेषनाग का एक नाम अनंत भी है। शेषनाग ने जब देखा कि उनकी माता कद्रू व भाइयों ने मिलकर विनता (ऋषि कश्यप की एक और पत्नी) के साथ छल किया है तो उन्होंने अपनी मां और भाइयों का साथ छोड़कर गन्धमादन पर्वत पर तपस्या करनी आरंभ की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें वरदान दिया कि तुम्हारी बुद्धि कभी धर्म से विचलित नहीं होगी।

ब्रह्मा ने शेषनाग को यह भी कहा कि यह पृथ्वी निरंतर हिलती-डुलती रहती है, अत: तुम इसे अपने फन पर इस प्रकार धारण करो कि यह स्थिर हो जाए। इस प्रकार शेषनाग ने संपूर्ण पृथ्वी को अपने फन पर धारण कर लिया। क्षीरसागर में भगवान विष्णु शेषनाग के आसन पर ही विराजित होते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, भगवान श्रीराम के छोटे भाई लक्ष्मण व श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम शेषनाग के ही अवतार थे।

तक्षक नाग

धर्म ग्रंथों के अनुसार, तक्षक पातालवासी आठ नागों में से एक है। तक्षक के संदर्भ में महाभारत में वर्णन मिलता है। उसके अनुसार, श्रृंगी ऋषि के शाप के कारण तक्षक ने राजा परीक्षित को डंसा था, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी। तक्षक से बदला लेने के उद्देश्य से राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था। इस यज्ञ में अनेक सर्प आ-आकर गिरने लगे। यह देखकर तक्षक देवराज इंद्र की शरण में गया।

जैसे ही ऋत्विजों (यज्ञ करने वाले ब्राह्मण) ने तक्षक का नाम लेकर यज्ञ में आहुति डाली, तक्षक देवलोक से यज्ञ कुंड में गिरने लगा। तभी आस्तिक ऋषि ने अपने मंत्रों से उन्हें आकाश में ही स्थिर कर दिया। उसी समय आस्तिक मुनि के कहने पर जनमेजय ने सर्प यज्ञ रोक दिया और तक्षक के प्राण बच गए।

कर्कोटक नाग

कर्कोटक शिव के एक गण हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सर्पों की मां कद्रू ने जब नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब भयभीत होकर कंबल नाग ब्रह्माजी के लोक में, शंखचूड़ मणिपुर राज्य में, कालिया नाग यमुना में, धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में, एलापत्र ब्रह्मलोक में और अन्य कुरुक्षेत्र में तप करने चले गए। ब्रह्माजी के कहने पर कर्कोटक नाग ने महाकाल वन में महामाया के सामने स्थित शिव लिंग की स्तुति की।

शिव ने प्रसन्न होकर कहा- जो नाग धर्म का आचरण करते हैं, उनका विनाश नहीं होगा। इसके बाद कर्कोटक नाग उसी शिवलिंग में प्रवेश कर गया। तब से उस लिंग को कर्कोटेश्वर कहते हैं। मान्यता है कि जो लोग पंचमी, चतुर्दशी और रविवार के दिन कर्कोटेश्वर शिवलिंग की पूजा करते हैं उन्हें सर्प पीड़ा नहीं होती।

कालिया नाग

श्रीमद्भागवत के अनुसार, कालिया नाग यमुना नदी में अपनी पत्नियों के साथ निवास करता था। उसके जहर से यमुना नदी का पानी भी जहरीला हो गया था। श्रीकृष्ण ने जब यह देखा तो वे लीलावश यमुना नदी में कूद गए। यहां कालिया नाग व भगवान श्रीकृष्ण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अंत में श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को पराजित कर दिया।

तब कालिया नाग की पत्नियों ने श्रीकृष्ण से कालिया नाग को छोडऩे के लिए प्रार्थना की। तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि तुम सब यमुना नदी को छोड़कर कहीं और निवास करो। श्रीकृष्ण के कहने पर कालिया नाग परिवार सहित यमुना नदी छोड़कर कहीं और चला गया। इनके अलावा कंबल, शंखपाल, पद्म व महापद्म आदि नाग भी धर्म ग्रंथों में पूजनीय बताए गए हैं।

जिनका काल सर्प योग है वे शांति के लिए करें ये उपाय:

नाग पंचमी के दिन, जिनका काल सर्प योग है, वे शांति के लिए ये उपाय करें। पंचमी के दिन पीपल के नीचे, एक दोने में कच्चा दूध रख दीजिए , घी का दीप जलाएं, कच्चा आटा, घी और गुड़ मिला कर एक छोटा सा लड्डू बना के रख दें और यह मन्त्र बोल कर प्रार्थना करें:-

ॐ अनंताय नमः
ॐ वासुकाय नमः
ॐ शंख पालाय नमः
ॐ तक्षकाय नमः
ॐ कर्कोटकाय नमः
ॐ धनंजयाय नमः
ॐ ऐरावताय नमः
ॐ मणि भद्राय नमः
ॐ धृतराष्ट्राय नमः
ॐ कालियाये नमः

‘कालसर्प योग हमेशा कष्टकारक ही नहीं होता, कभी कभी इतना अधिक अनुकूल होता है कि व्यक्ति को विश्व स्तर पर प्रसिद्ध बनाता है व वैभव, सम्पत्ति, नाम, प्रसिद्धि के शिखर पर भी पहुंचा देता है। विश्व के अधिकांश महापुरुषों की कुण्डली में कालसर्प योग है उसके बाद भी वे प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचे हैं। परन्तु इतना अवश्य है कि उनके जीवन का कोई न कोई पक्ष ऐसा अवश्य रहा जिससे उन्हें अपूर्णता का आभास हुआ।

जन्म कुण्डली में अनेक शुभ योग भी होते हैं जैसे इत्थशाल योग, पंच महापुरुष योग, बुधादित्य योग आदि जिनके कारण कालसर्प योग का प्रभाव कम याअल्प कालिक हो जाता है। ज्योतिष में बारह राशियां हैं इनके आधार पर बारह लग्न और 288 प्रकार के कालसर्प योग निर्मित होते हैं। यह योग डरावना नहीं अपितु शिवार्चन, दुर्गार्चन आदि भक्ति भावना को जागृत करने का एक सरल उपाय भी है। अतः नवनाग स्त्रोत्र के नौ पाठ प्रतिदिन भी करें तो दोष शान्ति हो जाती है। ‘

यथा –
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम् ।
शङ्खपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा ।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम् ।
सायङ्काले पठेन्नित्यं प्रातः काले विशेषतः।।

शिवपञ्चाक्षर स्तोत्र भी पढ़ा जा सकता है। शिवकृपा से कुछ भी अप्राप्य नहीं है, और तो और शिवलिङ्ग पर गंगा या नर्वदा के जल से जलधारा का अभिषेक कालसर्प दोष, पितृदोष तथा शापित कुण्डली के दोष को शमन करता है।

नर्मदायै नमः प्रातर्नर्मदायैनमो निशि।
नमोऽस्तु नर्मदे तुभ्यं त्राहि मां बिषसर्पत:।।

‘सरहद का साक्षी’ परिवार की ओर से सुधी पाठकों, शुभचिंतकों, विज्ञापनदाताओं को हार्दिक शुभकामनाएं।

*आचार्य हर्षमणि बहुगुणा

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