“मेरे सपने” कविता 

58
यहाँ क्लिक कर पोस्ट सुनें

प्रस्तुत कविता “मेरे सपने” अपने साथी श्री कैलाश डंगवाल जी के आग्रह पर डाइट (टिहरी) में रची थी। जिसे उनके यशस्वी पुत्र गुंजन डंगवाल ने स्वर दिया था और डाइट में प्रधानाचार्यों की बैठक शुरू होने से पूर्व अनेकों बार इस कविता का  ऑडियो सुनाया गया।
जनपद के सम्मानित प्रधानाचार्यों ने काफी सराहना की थी। डाइट मे गतिमान अनेकों प्रशिक्षण कार्यक्रमों की शुरुआत में भी वह ऑडियो सुनाया गया।
मैं अपने को भाग्यशाली समझता हूं कि मेरी छोटी सी पहल भी कभी साथियों के सहयोग से, अपने बच्चों की सद्भावना से साकार और जीवंत हो जाती हैं।

[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]कवि: सोमवारी लाल सकलानी,निशांत[/su_highlight]

             चिड़िया की तरह चहकती रहूं,
फूलों की तरह मैं महकती रहूं।
बादल की तरह मैं घुमड़ती रहूं,
वर्षा  की तरह मैं बरसती  रहूं।
सपनों में मैं खोई रहूं ।
झरने की तरह नित झरती रहूं,
सरिता की तरह मैं बहती  रहूं।
पवन की  तरह  मैं  उड़ती  रहूं,
अग्नि की तरह मैं जलती  रहूं।
सपनों में मैं खोई रहूं।
कोयल की तरह गाती रहूं,
समय की तरह आती  रहूं।
पथिक की तरह जाती रहूं,
बेटी की तरह मैं भाती रहूं।
सपनों में मैं खोई रहूं।
संसार की मैं  रचना रहूं ,
सृष्टि  की  मैं करुणा रहूं।
बसंत की मैं तरुणा  रहूं ,
ब्रह्मांड कि मैं वरुणा रहूं।
सपनों में मैं खोई रहूं।
डाली की तरह  हिलती रहूं,
बाली की तरह झुकती रहूं।
चिड़िया की तरह चहकती रहूं,
फूलों की तरह महकती रहूं
सपनों में मैं खोई रहूं।