बिना लाग-लपेट अवश्य पढ़िए! वक्त पर नहीं संभले तो धर्म परिवर्तन करने वाले अजगर बचे हुए हिन्दू धर्म को भी निगल जाएंगे

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बिना लाग-लपेट अवश्य पढ़िए! वक्त पर नहीं संभले तो धर्म परिवर्तन करने वाले अजगर बचे हुए हिन्दू धर्म को भी निगल जाएंगे
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बिना लाग-लपेट के पढ़िए, फिर चिन्तन कीजिए? धर्म को अलग रख कर! कितना सत्य है, कितना असत्य? टिप्पणी की आवश्यकता नहीं है! सोचने के लिए है।

[su_highlight background=”#880e09″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @ आचार्य हर्षमणि बहुगुणा [/su_highlight]

क्या एक राष्ट्र , एक नियम, एक कानून की आवश्यकता नहीं है? विचारिये! झगड़िये नहीं! भारत में रहने वाले सब एक हैं, सब समान हैं! फिर पक्षपात क्यों?

अपने को जगाने का वक्त आ गया है, देश की शिक्षण संस्थानों में भारतीय पद्धति की शिक्षा की आवश्यकता है, प्राचीन आचार्यों की आवश्यकता है तभी इस देश का कल्याण हो सकता है। सकारात्मक चिन्तन से ही हम विश्व गुरु का दर्जा पा सकते हैं। आज यूक्रेन से भारतीय विद्यार्थी सकुशल लौटाए जा रहे हैं। क्या यह उदाहरण प्रर्याप्त नहीं है? हम हिन्दू हैं यह बहुत गर्व का विषय है। अवश्य विचार कीजिए।

हमारा भारतवर्ष का दुर्भाग्य है कि हिन्दू राष्ट्र होने के बाद भी हिन्दूओं के द्वारा ‘बोट बैंक’ के चलते हिन्दूओं के विरुद्ध , सरकार – समुदाय विशेष पर मेहरवान होती तो है! लेकिन अपने बेरोजगार नवयुवक व नवयुवतियों की प्रतिभा की अवहेलना करती है। विशेष धर्म के बच्चों के UPSC परीक्षा की तैयारी के लिए Scholarship Scheme शुरू करती है लेकिन हिन्दूओं की धार्मिक शिक्षा पर नकारात्मक सोच के चलते इस विषय पर नजर फिरा लेती है।

विशेष वर्ग के धार्मिक विषयों के शोध पर की गयी PHD पर सरकारी नौकरी मिल सकती हैं, लेकिन हिन्दू धर्म ग्रंथों के ऊपर शोध को सकारात्मक सहयोग नहीं मिलता। हमारे हिन्दू धर्म में धार्मिक ग्रंथों के शोध के लिए अपार संभावनाएं हैं। पर अपनों पर ही चोट! यहां की विशेषता है। मैकाले की शिक्षा पद्धति ने हिन्दूओं की शिक्षा नीति को इतनी बुरी तरह से प्रभावित किया कि नयी हिन्दू पीढ़ी के बच्चे संस्कृत भाषा विषय को लेकर भविष्य के प्रति सशंकित हैं।

हमारे पास ज्ञान का खजाना भरा हैं लेकिन कहावत है कि “कस्तूरी कुण्डली बसे मृग ढूँढे बन माहि। “हमारे पास वेद, पुराण, उपनिषद , रामायण, महाभारत, स्मृतियां हैं। वेदों पर लिखी रचनाएं है, लेकिन सरकार को हिन्दूओं की धार्मिक शिक्षा पर विशेष ध्यान देकर हमारी लाखों साल से लिखी धार्मिक पुस्तकें कुछ ही लाइब्रेरियों की शोभा बढ़ा रही हैं, लेकिन उनपर शोध व अध्ययन करने वाले मुश्किल से कुछ ही मिलेंगे। युरोप में इन धर्म ग्रन्थों पर शोध किया जा रहा है, और हम! सरकार को गुरूकुलों की स्थापना करके अपनी हिन्दू संस्कृति व शिक्षा को बचाने का प्रयास करना चाहिए था पर?

1947 बंटवारे से पहले पाकिस्तान में बहुत से शहर हिन्दू शिक्षा व संस्कृति के वाहक थे। गुजरवाला से लेकर लाहौर व सिंध प्रांत तक हिन्दू धार्मिक शिक्षा के जाने- माने केन्द्र थे। उसी प्रकार बंगलादेश में ढाका विश्व विद्यालय हिन्दू संस्कृति का बहुत बड़ा केंद्र था। बंगाल की दुर्गा पूजा में मुसलमान भी बहुत बढ़-चढ़कर भाग लेते थे। बंटवारे के बाद अब इन देशों में हमारी संस्कृति की दुर्गति हो गयी। जो हिन्दू भागकर हिन्दुस्थान आए, उनके प्रति भी पूर्ववर्ती सरकारों का उदासीन रवैया रहा। याद रखें! मैकाले की शिक्षा नीति से आपका बच्चा अच्छी अंग्रेजी तो बोल सकता है लेकिन अपनी संस्कृत भाषा नहीं। हमारी गिरती हुई धार्मिक शिक्षा के स्तर के लिए हमारी सरकारें व हम स्वयं जिम्मेदार है। नौकरी पाने व अच्छे भविष्य की तलाश में हम हिन्दू अपनी धार्मिक शिक्षा के मार्ग से भटक गये हैं। बस लिपिकीय नौकरी तक सीमित हो गये हैं।

आज हालात यह है कि पढ़ने के लिए सैन्टथोमस, सेंटमेरी,कानबेन्ट स्कूल, सेंट जोसेफ ( जहां फीस के नाम पर खुली लूट है या यह दुकानदारी खूब फल-फूल रही है) आदि इसाई मिशनरियों के स्कूलों में दाखिले के लिए मारामारी है जहाँ बच्चों को कोई हिन्दू शिक्षा या संस्कृत भाषा की पढ़ाई नहीं होती है, ये सारी गलती हमारी ही है, लेकिन क्या प्रतियोगिता परीक्षा में उन्हीं का बोलबाला नहीं है? पर ध्यान देने का विषय यह है कि हमारे सरकारी स्कूलों में पढ़े बच्चे प्रतियोगिता परीक्षाओं में आगे रहते हैं, किन्तु हमारी मानसिकता विकृत जो है!  सोचो! मदरसे भी अपने बच्चों को शिक्षा देते हैं (अपनी तरह अपनी भाषा में) जो हर गली, गाँव व शहरों में खुले मिलेंगे। क्या मदरसों में पढ़ने वाले उर्दू भाषी छात्र बेरोजगार है? बल्कि जिस काम को करने से हिन्दू शरमाते हैं आज वह काम मुस्लिम इज्जत के साथ करके रोजगार पा रहे हैं, चाहे गैराज का काम हो, नाई धोबी का काम हो, कैटरिंग का काम हो, कारपेंटर का काम हो, मिस्त्री का काम हो, मीट व्यवसाय का काम हो, रिक्शा चलाने का काम हो,साग-सब्जी बेचने का काम हो या कबाड़ी का काम हो, आदि काम करके वे बेरोजगार नहीं है। लेकिन हिन्दू PHD करने के बाद भी बेरोजगार है।

जरूरत है कि सरकार को हिन्दूओं की धार्मिक शिक्षा को बढ़ाकर गुरूकुल वाली शिक्षा पद्धति शुरू करके शिक्षा नीति में परिवर्तन कर हिन्दू धर्म के गिरते स्तर को सकारात्मक सोच के साथ वैदिक शिक्षा को भारत में दोबारा शुरू करके हमारी नालंदा व तक्षशिला वाली शिक्षा पद्धति को शुरू करके हिन्दू धर्म की महान सभ्यता को बचाए रखने पर ध्यान देना चाहिए। अन्यथा इतिहास हमें माफ नहीं करेगा, व हिन्दू सभ्यता जो पुराने समय में पूरे विश्व में फैली थी और अब सिमटते-सिमटते भारत तक ही रह गयी हैं।

जहाँ पर यह अब बिल्कुल सुरक्षित नहीं है। जबकि बाकी धर्म धीरे-धीरे इसे निगल चुके हैं, यदि वक्त पर नहीं संभले तो धर्म परिवर्तन करने वाले अजगर बचे हुए हिन्दू धर्म को भी निगल जाएंगे। चिन्तन कीजिए, बहुत अधिक विचारणीय है? कुछ करना चाहिए, तभी देश बचेगा, धर्म की रक्षा होगी।