उत्तराखंड, टिहरी की काशी सावली गांव के समीप अवस्थित सिद्ध शक्तिपीठों में है मां पुण्यासिनी मंदिर, नवरात्रि पर दर्शन करके मिलता है पुण्यफल

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उत्तराखंड, टिहरी की काशी सावली गांव के समीप अवस्थित सिद्ध शक्तिपीठों में है मां पुण्यासिनी मंदिर, नवरात्रि पर दर्शन करके मिलता है पुण्यफल
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चैत्र नवरात्र की पंचमी तिथि को आज सिद्ध शक्ति पीठ मां पुण्यासिनी के मंदिर में जाकर सपत्नीक दर्शन किए। मां के श्री चरणों में शीश नवाकर असीम आनंद की प्राप्ति हुई। संपूर्ण सृष्टि मां के अस्तित्व पर निर्भर है। हिंदू धर्म शास्त्रों में मां दुर्गा के नौ रूपों में 9 दिन तक नवरात्र में पूजा की जाती है। सिद्धि, साधना, समृद्धि, शक्ति, ज्ञान, कला, त्याग, स्वास्थ्य और शुद्धता के निमित्य पर्व मनाया जाता है।

वर्ष में चैत्र नवरात्र और शरद नवरात्र का विशेष महत्व है। भारतीय धर्म ग्रंथों और पुराणों में मां भगवती को सर्वोच्च शक्ति के रूप में उद्धृत किया गया है। यह योग माया, योग निंद्रा, महा निंद्रा, महामाया, योगेश्वरी, पराशक्ति आदि विभिन्न नामों से जानी जाती है। संपूर्ण भारत में मां शक्ति के अनेकों स्थल हैं।

उत्तराखंड के टिहरी जनपद में मां सुरकंडा, पुण्यासिनी, कुंजापुरी, राजराजेश्वरी, चंद्रबदनी आदि अनेकों ऐसे सत्य सिद्ध शक्ति पीठ हैं जिन स्थानों पर जाकर  शरद और चैत्र नवरात्र के अवसर पर समस्त स्थानीय और भक्तजन शीश नवाते हैं और मन्नत मांगते हैं। मां पुण्यासिनी या पुंडीरकाक्षिणी विद्वानों की काशी सावली गांव के ठीक सामने प्रकृति के नैसर्गिक सुंदरता से युक्त निर्जन स्थान के बीच अवस्थित है।

दक्ष प्रजापति की 16 कन्याओं में से एक मां सती जो भगवान शिव की पत्नी के रूप में मानी गई है, जब हरिद्वार के यज्ञ में हवन कुंड पर शिव के अपमान के कारण कूद पड़ी, तो भगवान शंकर  उसके अस्थि पंजर को अपने त्रिशूल में उठाकर हिमालय की ओर चल दिए। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र के द्वारा उस अस्थि पंजर को काट दिया । जहां-जहां सती के शरीर के अंग, वस्त्र, आभूषण आदि पड़े, वहां- वहां पर शक्तिपीठों का निर्माण हुआ।

मैंने अभी तक अपनी तीन काव्य कृतियों में मां भगवती के अनेकों रूपों का वर्णन किया है और अपने तुच्छ ज्ञान के द्वारा मां सती के स्वरूप, अस्तित्व, शक्ति, महिमा और चमत्कार का यथार्थ मे वर्णन करता रहा हूं। जिनमें “दिव्य- श्रीखंड” (संपूर्ण यश क्षेत्र का वर्णन है) मेरी प्रथम रचना है। “छंदवासिनी -जय श्री नंदा जी” (नंदा राजजात यात्रा पर आधारित है) और “सुरकुट निवासिनी-जय मां सुरकंडा” (मां सुरकंडा पर आधारित) काव्य कृति है।

जीवन में अभी कुछ और रचने का मन है और यह सब मां की आज्ञा के कारण ही संभव हो सकेगा। ऐसा मेरा मानना है।अनेक विद्वानों और साहित्यकारों ने मां भगवती के बारे में अपने अपने ढंग से विवरण प्रस्तुत किए हैं। भारत के शक्तिपीठों में मां सती के अस्तित्व को स्वीकारा है और 108 शक्तिपीठों का वर्णन विभिन्न ग्रंथों में उपलब्ध है। मां पुंडीरकाक्षिणी के बारे में अधिक जानकारी के लिए बहुगुण जाति के अनेक विद्वतजनों की पुस्तकों को पढ़ें। जिन में स्वर्गीय मणिराम बहुगुणा जी द्वारा रचित “सिद्ध पीठ पुण्यासिनी, आचार्य हर्षमणी बहुगुणा जी द्वारा रचित शक्तिपीठ मां पुण्यासिनी आदि अनेकों काव्य कृतियां सुलभ हैं। जिनके अध्ययन के द्वारा माता के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त हो सकती है।

आज के इस तीर्थ यात्रा में विद्वानों की काशी सावली के अनेक विद्वतजनों से संपर्क हुआ। मां के भक्त पयाल परिवार से भी संपर्क हुआ। लेकिन सबसे अधिक जिसने मुझे प्रभावित किया, वह अंतश्चेतना में नियत एक शांति और आनंद का भाव था जो मां के श्री चरणों में जाकर प्राप्त हुआ।

मां भगवती सबका मनोरथ और मनोकामना को पूर्ण करें। विश्व में सुख -शांति और समृद्धि प्रदान करें। विश्व बंधुत्व की भावना के साथ साथ समन्वय, धार्मिक भावनाओं के प्रति विश्वास और श्रद्धा तथा शिक्षा-संस्कृति, ज्ञान और प्रकृति संरक्षण को बढ़ाने में सदा अपना वरदान दे। हम तीर्थ स्थलों को पर्यटक स्थल न बनाकर एक धार्मिक भावना से ओतप्रोत होकर उनके स्वच्छता, सौंदर्यकरण पर भी विशेष ध्यान दें। अनन्य श्रद्धा के साथ समर्पण भाव से मां के चरणों में जाकर नवरात्रि की पूजा करें। चाहे वह तीर्थाटन के द्वारा हो, या यज्ञ अनुष्ठान कराकर हो। हरियाली डाल कर हो या किसी भी यज्ञ में सम्मिलित होकर हो। कैवल्य भाव से मां के श्री चरणों में अपनी भावनाओं का समर्पण करें। मां भगवती सबकी मनोकामना को पूर्ण करें। अभी नवमी तिथि तक मां की आज्ञा होगी तो अनेकों सिद्ध शक्ति पीठों में दर्शन करने जाऊंगा। जिसको  मैं अपना एक धार्मिक कर्तव्य भी मानता हूं। मां भगवती की कृपा दृष्टि बनी रहे।

कवि सोमवारी लाल सकलानी, निशांत

(स्वच्छता ब्रांड एंबेसडर) नगर पालिका परिषद चंबा, टिहरी गढ़वाल।