कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से पूर्णिमा तक आंवले के वृक्ष में भगवान लक्ष्मीनारायण का वास होता है

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कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से पूर्णिमा तक आंवले के वृक्ष में भगवान लक्ष्मीनारायण का वास होता है
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अक्षय नवमी पर जो भी पुण्य किया जाता है उसका फल कई जन्मों तक समाप्त नहीं होता

आज अक्षय नवमी कूष्माण्ड नवमी है इस दिन का अत्यधिक महत्व है। जिसका विवरण निम्नवत् है-

कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से पूर्णिमा तक आंवले के बृक्ष में भगवान लक्ष्मीनारायण का वास होता है। इस दिन आंवले और पीपल का विवाह कराने से अधिक पुण्य फल की प्राप्ति होती है तथा इसका पुण्य फल करोड़ों जन्मों तक नष्ट नहीं होता। पद्मपुराण के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। इसी दिन भगवान विष्णु ने कूष्माण्ड नाम के दैत्य का वध किया था। इसी वजह से इस दिन को कूष्माण्ड नवमी के नाम से भी जाना जाता है।

[su_highlight background=”#091688″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @आचार्य हर्षमणि बहुगुणा [/su_highlight]

कूष्माण्ड दैत्य के शरीर से ही कूष्माण्ड (कद्दू) की बेल उत्पन्न हुई थी इसलिए इस दिन कद्दू दान करने से अनंत कोटि फल की प्राप्ति होती है। कद्दू के अंदर स्वर्ण, चांदी आदि रखकर गुप्त दान करने से मनुष्यों को मन वांछित फल की प्राप्ति होती है।
अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष से अमृत की बूंदें टपकती हैं अत: कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन हर मनुष्य को आंवला वृक्ष का पूजन अवश्य करना चाहिए।

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आमला (आंवला) नवमी (आंवला वृक्ष की पूजा परिक्रमा), आरोग्य नवमी, अक्षय नवमी, कूष्मांड नवमी के नाम से जाना जाता है। यह पर्व आज 12 नवंबर शुक्रवार को है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी आंवले के पेड़ पर निवास करते हैं। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजन का भी विधान है। साथ ही इस दिन पूजन, तर्पण, स्नान और दान का बहुत अधिक महत्व है। अक्षय नवमी के विषय में कहा जाता है कि इस दिन ही द्वापर युग का आरम्भ हुआ था। इसे कहीं-कहीं कुष्मांडा नवमी के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि देवी कुष्माण्डा इसी दिन प्रकट हुई थीं।

इस दिन का पूजा विधान इस प्रकार है:- 

आंवले के वृक्ष के सामने पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठें। धातृ के वृद्ध की पंचोपचार सहित पूजा करें फिर वृक्ष की जड़ को दूध से सिंचित करें। कच्चे सूत को लेकर धात्री के तने में लपेटें अंत में घी और कर्पूर से आरती और परिक्रमा करें।

अक्षय नवमी पूजन से मिलता है संतान सुख

पद्म पुराण के अनुसार के अनुसार इस दिन द्वापर युग की शुरुआत हुई थी। आंवला नवमी पर आंवला के वृक्ष के पूजन का बहुत अधिक महत्व है। मान्यता है कि इस नवमी में दान-पुण्य करने से अन्य दूसरी नवमी से कई गुना ज्यादा फलदायी होती है। इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से संतान की भी प्राप्ति होती है।

पुराणों के अनुसार अक्षय नवमी पर जो भी पुण्य किया जाता है उसका फल कई जन्मों तक समाप्त नहीं होता। इस दिन दान, पूजा, भक्ति, सेवा जहां तक संभव हो व अपनी सामर्थ्य अनुसार अवश्य करें। उसी तरह यदि आप शास्त्रों के विरूद्घ कोई काम करते हैं तो उसका पाप भी कई जन्मों तक किसी न किसी रूप में भुगतना पड़ता है। ध्यान रखें, ऐसा कोई काम न करें जिससे आपकी वजह से किसी को दु:ख पहुंचे।
आंवला नवमी के दिन सुबह नहाने के पानी में आंवले का रस मिलाकर नहाएं। ऐसा करने से आपके ईर्द-गिर्द जितनी भी नकारात्मक ऊर्जा होगी वह समाप्त हो जाएगी। सकारात्मकता और पवित्रता में बढ़ोत्तरी होगी। फिर आंवले के पेड़ और देवी लक्ष्मी का पूजन करें। इस प्रकार से पुण्य की प्राप्ति होगी, और जाने अनजाने में किए गए पापों का नाश होगा।

इस अक्षय नवमी के दिन ब्राह्मणों को कराएं आंवले के बृक्ष के नीचे भोजन

अक्षय नवमी के अवसर पर आंवले के पेड़ की पूजा करने का विधान है। आंवले के पेड़ के नीचे झाड़ू से साफ-सफाई करें। फिर दूध, फूल एवं धूप से पूजन करें। इसकी छाया में पहले ब्राह्मणों को भोजन करवाएं फिर स्वयं करें। पुराणों के अनुसार भोजन करते वक्त थाली में आंवले का पत्ता गिर जाए तो यह आपके भविष्य के लिए मंगलसूचना का संकेत है। मान्यता के अनुसार आने वाला साल सेहत के लिए तंदरूस्ती भरा होगा। आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करने की प्रथा का आरंभ देवी लक्ष्मी ने किया था। आंवले की पूजा अथवा उसके नीचे बैठकर भोजन खाना संभव न हो तो आंवला जरूर खाएं।

महर्षि च्यवन ने भी खाया था आंवला

चरक संहिता में बताया गया है अक्षय नवमी को महर्षि च्यवन ने आंवला खाया था जिस से उन्हें पुन: जवानी अर्थात नवयौवन प्राप्त हुआ था। आप भी आज के दिन यह उपाय करके नवयौवन प्राप्त कर सकते हैं। शास्त्र कहते हैं आंवले का रस हर रोज पीने से पुण्यों में बढ़ोतरी होती है और पापों का नाश होता हैं।

इस विधि से करें आंवले के वृक्ष का पूजन

आंवला नवमी के दिन सुबह स्नान कर दाहिने हाथ में जल, चावल, फूल आदि लेकर निम्न प्रकार से व्रत का संकल्प करें।
नवमी के दिन आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर खाने का विशेष महत्व है। यदि आंवला वृक्ष के नीचे भोजन बनाने में असुविधा हो तो घर में भोजन बनाकर आंवले के वृक्ष के नीचे जाकर पूजन करने के बाद भोजन करना चाहिए। भोजन में सुविधानुसार खीर, पूड़ी या मिष्ठान हो सकता है।
आंवले के पेड़ के नीचे साफ सफाई करें, धो लें और फिर पूजा करके नीचे बैठकर खाएं। अगर पेड़ ना मिले तो उस दिन आंवला जरूर खाएं। बहुत शुभ होता है। आंवले का रस मिलाकर नहाएं। ऐसा करने से आपके ईर्द-गिर्द जितनी भी नेगेटिव ऊर्जा होगी वह समाप्त हो जाएगी।सकारात्मकता और पवित्रता में बढ़ौतरी होगी। फिर आंवले के पेड़ और देवी लक्ष्मी का पूजन करने से पुण्य की प्राप्ति होगी और जाने अनजाने में किए गए पापों का नाश होगा।