जैसलमेर में मरुस्थलीकरण रोकने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने हेतु केवीआईसी एवं बीएसएफ ने की ‘प्रोजेक्ट बोल्ड’ शुरुआत

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[su_highlight background=”#1427b0″ color=”#fdfbef”]सरहद का साक्षी, नई दिल्ली[/su_highlight] राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में हरित क्षेत्र विकसित करने के लिए अपनी तरह के प्राथमिक प्रयासों में, खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) ने मंगलवार को सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के सहयोग से जैसलमेर के तनोट गाँव में बांस के 1000 पौधे लगाए।

SSB Jaisalmer

केवीआईसी के अध्यक्ष श्री विनय कुमार सक्सेना ने बीएसएफ के विशेष महानिदेशक (पश्चिमी कमान) श्री सुरेंद्र पंवार की उपस्थिति में इस महत्वपूर्ण वृक्षारोपण कार्यक्रम का शुभारंभ किया। केवीआईसी के प्रोजेक्ट बोल्ड (सूखे क्षेत्र वाली भूमि पर बांस आधारित हरित क्षेत्र) के हिस्से के रूप में बांस रोपण का उद्देश्य मरुस्थलीकरण को कम करने और स्थानीय आबादी को आजीविका उपलब्ध कराने तथा बहु-विषयक ग्रामीण उद्योग सहायता प्रदान करने के संयुक्त राष्ट्रीय लक्ष्यों की पूर्ति करना है।

भारत-पाकिस्तान सीमा पर लोंगेवाला पोस्ट के पास स्थित प्रसिद्ध तनोट माता मंदिर के पास 2.50 लाख वर्ग फुट से अधिक ग्राम पंचायत भूमि में बांस के पौधे लगाए गए हैं। जैसलमेर शहर से लगभग 120 किलोमीटर दूर स्थित, तनोट राजस्थान में सबसे अधिक देखे जाने वाले पर्यटन स्थलों में से एक बन चुका है। केवीआईसी ने पर्यटकों के आकर्षण के रूप में तनोट में बांस आधारित हरित क्षेत्र को विकसित करने की योजना बनाई है। इन बांस के पेड़ों के रख-रखाव की जिम्मेदारी बीएसएफ की होगी।

‘प्रोजेक्ट बोल्ड’ 4 जुलाई को राजस्थान के उदयपुर जिले के एक आदिवासी गांव निचला मंडवा से शुरू किया गया था, जिसके तहत 25 बीघा शुष्क भूमि पर विशेष बांस प्रजातियों के 5000 पौधों का रोपण किया गया था। यह पहल भूमि क्षरण को कम करने और देश में मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान के अनुरूप है। देश की आज़ादी के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में “आजादी का अमृत महोत्सव” मनाने के लिए केवीआईसी के “खादी बांस महोत्सव” के हिस्से के रूप में यह पहल शुरू की गई है।

खादी और ग्रामोद्योग आयोग के अध्यक्ष ने कहा कि, जैसलमेर के रेगिस्तान में बांस पौधों का रोपण कई उद्देश्यों की पूर्ति करेगा, जिनमें मरुस्थलीकरण को रोकना, पर्यावरण संरक्षण तथा ग्रामीण और बांस आधारित उद्योगों को बढ़ावा दे करके विकास का स्थायी मॉडल स्थापित करना शामिल है। उन्होंने कहा कि, अगले तीन वर्षों में ये बांस कटाई के लिए तैयार हो जाएंगे।

श्री सक्सेना ने कहा कि, इस पहल से एक ओर जहां स्थानीय ग्रामीणों के लिए बार-बार होने वाली आय के अवसर उत्पन्न होंगे, वहीं लोंगेवाला पोस्ट और तनोट माता मंदिर जैसे एक जाने-माने पर्यटन स्थल पर आने वाले पर्यटकों की बड़ी संख्या को देखते हुए केवीआईसी इस स्थान पर बांस आधारित हरित क्षेत्र विकसित करेगा। उन्होंने बहुत कम समय में परियोजना को लागू करने में बीएसएफ के समर्थन की सराहना की।

अगले 3 वर्षों में ये 1000 बांस के पौधे कई गुना बढ़ जायेंगे और लगभग 100 मीट्रिक टन बांस के वजन वाले कम से कम 4,000 बांस के लट्ठों का उत्पादन करेंगे। मौजूदा 5000 रुपये प्रति टन की बाजार दर पर यह बांस की उपज तीन साल पश्चात और इसके बाद में हर साल लगभग 5 लाख रुपये की आजीविका  उत्पन्न करेगी, इस प्रकार से स्थानीय अर्थव्यवस्था को इससे काफी बढ़ावा मिलेगा।

बांस का उपयोग अगरबत्ती की स्टिक बनाने, फर्नीचर, हस्तशिल्प, संगीत वाद्ययंत्र और कागज की लुगदी बनाने के लिए किया जा सकता है, जबकि बांस के कचरे का व्यापक रूप से लकड़ी का कोयला और ईंधन ब्रिकेट बनाने में उपयोग किया जाता है। बांस पानी के संरक्षण के लिए भी जाने जाते हैं और इसलिए ये शुष्क और सूखे की अधिकता वाले क्षेत्रों में बहुत उपयोगी होते हैं।