मंदिर क्यों जाते हैं? जानिए! इसके वैज्ञानिक कारण

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मंदिर क्यों जाते हैं? जानिए इसके 7 वैज्ञानिक कारण
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मंदिर क्यों जाते हैं? जानिए! इसके वैज्ञानिक कारण: आजकल किसी भी चीज के वैज्ञानिक कारण ढूंढे जाते हैं। सही भी है इस वैज्ञानिक युग में आज हर कोई तर्क के आधार पर चलने का प्रयास करता है। विज्ञान जानने वाले कुछ लोगों ने अध्यात्म से किनारा कर रखा है तो कुछ वैज्ञानिक अध्यात्म के साथ भी हैं। अध्यात्म और विज्ञान मिलकर मानव जीवन को एक नयी दिशा दे सकते हैं।

सरहद का साक्षी @ आचार्य हर्षमणि बहुगुणा 

हिंदू धर्म और परम्परा में हर काम की शुरुआत ईश्वर को याद करने से होती है और मन्दिर जाना भी इसका एक अहम् हिस्सा है। लेकिन क्या आपको भी ऐसा लगता है कि मन्दिर जाने के पीछे कुछ वैज्ञानिक कारण भी हैं। दरअसल मानव शरीर में 5 इन्द्रियां सबसे अहम् मानी जाती हैं। देखना, सुनना, स्पर्श करना, सूंघना और स्वाद महसूस करना। अब सब सोच रहे होंगे कि इन इंद्रियों का मन्दिर जाने से क्या सम्बंध है। कहते हैं कि जब इंसान मन्दिर में कदम रखता है तो शरीर की ये पांचों इंद्रियां क्रियाशील हो जाती हैं।

1- श्रवण इंद्रिय- कान

मन्दिर में प्रवेश करने के साथ ही हम मन्दिर के बाहर या मूलस्थान में लगी घंटी बजाते हैं। ये घंटियां इस तरह से बनी होती हैं कि इनसे निकलने वाली ध्वनि मस्तिष्क की दाईं और बाईं तरफ एकरूपता बनाती है। घंटी की यह आवाज 7 सेकेंड तक प्रतिध्वनि के रूप में हमारे अंदर मौजूद रहती है। ये 7 सेकेंड शरीर के 7 आरोग्य केंद्रों को क्रियाशील करने के लिए काफी हैं।

2- दर्शन इंद्रिय- आंख

मन्दिर का गर्भगृह जहां भगवान की मूर्ति होती है उस जगह आमतौर पर रोशनी कम होती है और थोड़ा अंधेरा होता है। यहां पहुंचकर भक्त अपनी आंखें बंद कर भगवान को याद करते हैं। और जब वो अपनी आंखें खोलते हैं तो उनके सामने आरती के लिए कपूर जल रहा होता है। यह एकमात्र रोशनी होती है जो अंधेरे में प्रकाश देती है। ऐसे में हमारी दर्शन इन्द्रिय या देखने की क्षमता सक्रिय हो जाती है।

3- स्पर्श इंद्रिय- त्वचा

आरती के बाद जब हम ईश्वर का आशीर्वाद ले रहे होते हैं तो हम कपूर या दीये की आरती पर अपना हाथ घुमाते हैं। इसके बाद हम अपने हाथ को आंखों से लगाते हैं। जब हम अपने हाथ को आंख पर रखते हैं तो हमें गर्माहट महसूस होती है। यह गर्माहट इस बात को सुनिश्चित करती है कि हमारी स्पर्श इंद्रिय क्रियाशील है।

4- गन्ध इंद्रिय- नासिका

हम मन्दिर में भगवान को अर्पित करने के लिए फूल लेकर जाते हैं, जो पवित्र होते हैं और उनसे अच्छी खुशबू आ रही होती है। मन्दिर में फूल, कपूर और धूपबत्ती, इन सबसे निकल रही सुगंध या खुशबू हमारी गंध इंद्रिय या सूंघने की इंद्रिय को भी सक्रिय कर देती हैं।

5- आस्वाद इंद्रिय- जिह्वा

मन्दिर में भगवान के दर्शन के बाद हमें चरणामृत मिलता है। यह एक द्रव्य प्रसाद होता है जिसे कांसें के बर्तन में रखा जाता है, दूध युक्त को। जबकि जल को- आयुर्वेद के मुताबिक, तांबे के बर्तन में रखा पानी या तरल पदार्थ हमारे शरीर के 3 दोषों को संतुलित रखने में मदद करता है। ऐसे में जब हम उस चरणामृत को पीते हैं तो हमारी आस्वाद इंद्रिय या स्वाद महसूस करने वाली क्षमता भी सक्रिय हो जाती है।

6- मंदिर में खाली पैर क्यों जाते हैं?

मन्दिर की जमीन को सकारात्मक ऊर्जा या पॉजिटिव एनर्जी का वाहक माना जाता है। और यह ऊर्जा भक्तों में उनके पैर के जरिए ही प्रवेश कर सकती है। इसलिए मन्दिर के अंदर नंगे पांव जाते हैं। इसके अलावा एक व्यवहारिक कारण भी है। हम चप्पल या जूते पहनकर कई जगहों पर जाते हैं। ऐसे में मन्दिर जो कि एक पवित्र जगह है, उसके अंदर बाहर की गंदगी या नकरात्मकता ले जाना सही नहीं है।

7- मन्दिर में परिक्रमा:

मन्दिर में परिक्रमा का कारण पूजा के बाद हमारे बड़े-बुजुर्ग, जहां भगवान की मूर्ति विद्यमान है उस हिस्से की परिक्रमा करने के लिए कहते हैं। इसके पीछे वजह यह है कि जब हम परिक्रमा करते हैं तो हम मन्दिर में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा को अपने अन्दर समाहित कर लेते हैं। और पूजा का अधिक से अधिक लाभ प्राप्त कर पाते हैं।

इस प्रकार हिंदू धर्म से जुड़ी हर मान्यता के पीछे हमारे हित की कोई न कोई बात जरूर छिपी हुई है। हमें चाहिेए कि हम अपने सनातन धर्म के प्रति निष्ठावान रहें और सबको जागृत करें। मन्दिर हमारी आस्था के प्रतीक हैं वहां जाना एक नित्य कर्म है तथा नैतिक धर्म भी है। यदि इस आस्था में कोई व्यवधान उत्पन्न करता है तो उसे सुधारने की कोशिश अवश्य करनी चाहिए। सरकार से भी अनुरोध किया जा सकता है कि आस्था के प्रतीक मन्दिरों के कपाट हर मानव के लिए खुले होने चाहिए… “‘”

आज भले ही मन्दिर बनने से रोकने वाला अपने आप को सफल मान ले, पर वह सन्तुष्ट कभी नहीं रह सकता। ऐसे लोग समाज में कलंक हैं, आशा है ईश्वर ऐसे लोगों को सद्बुद्धि देंगे।