कविता: वाह रे पुतिन! कोरोना का डर भगा दिया

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वाह रे ? पुतिन !
एक ही झटके में कोरोना का डर भगा दिया।
दो साल से डर-डर,मर-मर कर जी रहा था।
भयातुर हो घर से बाहर नहीं निकल रहा था,
औंधे मुंह पड़ा-तिल-तिल कर जल रहा था।

[su_highlight background=”#880e09″ color=”#ffffff”]सरहद का साक्षी @कवि: सोमवारी लाल सकलानी, निशांत[/su_highlight]

दो साल टी वी,अखबार में लाशे गिनता रहा,
बेरोजगार मजदूर मायूस निगाहें ताकता रहा।
फलते -फूलते घरों को  उजड़ता  देखता रहा,
कोरोना के भूत भय से, कांपता छिपता रहा।

मै प्रत्यक्ष युद्ध से नहीं डरता न कभी मरता हूं,
दहशत और टीवियाआतंक से रोज मरता हूं।
तोप, टैंक, मिशाइल और बम से नहीं डरता हूं,
बबंडरियों औरआस्तीन के सांपों से डरता हूं।

वाह रे ? पुतिन !
तुमने चंद दिन मे कोरोना का दर्द मिटा दिया,
टीवी अखबार से कोविड संक्रमण हटा लिया।
युद्ध इतना बुरा नहीं  जितना था दुष्ट कोरोना,
परजीवी सा दिमाग की नशों को था चाट रहा।