[su_button background=”#881c0a” color=”#fffffe” size=”2″ radius=”5″ text_shadow=”0px 0px 0px #000000″]सरहद का साक्षी @कवि: सोमवारी लाल सकलानी निशांत[/su_button]
बरस रहें हैं मेघ झमा-झम, बाहर निकलना दूभर है,
प्रकृति का लॉकडाउन यह, यह सावन का महीना है।
काले भूरे नूतन बदरा, क्षितिज – नभ मंडल छाए थे,
धरती माता सूखे आंचल में, अमृत रस भरने वाले थे।
आस लगाए बैठा कृषक, नित निहार रहा था अंबर को,
भावलोक में खोया प्राणी, तरस तड़फ रहा था पानी को।
कृषक पुकार सुनी जलज ने, उड़ेल दिया अमृत पानी,
ज्यों कवि हृदय की शुद्ध भावना, उत्पन्न राग ने है जानी।
श्रावण मास है – सोमवार है, सोम-सोम का संगम यह है।
नहीं जलाभिषेक जरूरत, ना कांवड़ बनकर फिरने की है।
चढ़ा शीश जल स्वयं सोम के, सोम प्रसन्न कितना खुश है!
रिमझिम वर्षा, सघन कोहरा, धरा-क्षितिज व्योम बराबर हैं।
गूंज रही घन नाद आवाजें, दरवाजे पर तक प्रतिध्वनियां हैं,
मन प्रसन्न चित उल्लासित, हृदय राग ज्यों निर्मल निर्झर है।
आओ प्रिय सुनने अमृत राग यह, एक बार इस कवि घर में,
निशांत खुशी से झूम उठेगा, जब आ जाओगे तुम इस दर में।।
* कवि कुटीर, सुमन कॉलोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल