“जल जागर” पुस्तिका: जिसमें संकलित हैं श्री निशांत समेत विभिन्न कवियों की कविताएं 

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    जल संरक्षण दिवस के अवसर पर हिमालय सेवा संघ, नई दिल्ली और जन जागृति संस्थान खाड़ी टिहरी गढ़वाल के संयुक्त तत्वावधान में कुछ वर्षों पूर्व एक कविता संग्रह प्रकाशित किया गया था। जिसमें मेरी भी 12 कविताएं संकलित की गई। अनेक लब्ध प्रतिष्ठित उत्तराखंड के साहित्यकार और कवियों की रचनाएं इस पुस्तिका में संकलित हैं। जिनमें स्वर्गीय घनश्याम सैलानी, स्वर्गीय प्रताप शिखर, स्वर्गीय कुंवर प्रसून, श्री वाचस्पति रयाल, डॉक्टर डॉ. अतुल शर्मा आदि कवियों की रचनाएं संकलित हैं।

    “जल जागर” नाम की यह पुस्तिका प्रकाशकों के द्वारा जन जागरूकता के लिए निशुल्क बांटी गई हैं। मैं हिमालय सेवा संघ और जन जागृति संस्थान खाडी टिहरी गढ़वाल का आभार व्यक्त करता हूं कि जिन्होंने मेरी कविताओं को इस पुस्तिका में स्थान दिया है और एक व्यापक पैमाने पर बच्चों में एक नई जनजागृति के लिए पहल की गई है।

    जल संरक्षण दिवस: शुद्ध और स्वच्छ पानी के लिए हमेशा संवेदनशील बने रहे

    जल संरक्षण दिवस के अवसर पर मैं केवल शुभकामनाएं ही प्रस्तुत नहीं करता हूं बल्कि समाज से अपेक्षा करता हूं कि जल की एक- एक बूंद को बचाएं। जल का दुरुपयोग ना होने पाए, इसके लिए सरकार की दी गई गाइडलाइन का पालन भी करें। अनेकों पर्यावरण विदों, समाजसेवियों, रचना धर्मियों तथा जन जागरूक लोगों की बातों को सुनें। यूं तो दो तिहाई भाग पर संसार में पानी ही पानी है लेकिन पीने वाला पानी उसका मात्र के कुछ अंश है। मैं आंकड़ों के जाल में न फंसा कर इतना कहना चाहूंगा कि हमें अपने प्राकृतिक जल स्रोतों पर ध्यान देना है। उनका संरक्षण करना है।

    ग्लेशियर से निकलने वाली नदियों का संरक्षण करना है। उनकी साफ सफाई का ध्यान रखना है। इसके लिए धार्मिक लोग भी अच्छी भूमिका अदा कर सकते हैं। घरेलू पेयजल के लिए पानी की शुद्धता और स्वच्छता का ध्यान रखें। पानी का बिल्कुल भी दुरुपयोग ना होने दें। वर्षा के पानी के लिए भी टैंक आदि बनाकर व्यवस्था करें। प्रयुक्त किए गए पानी का शौचालय आदि मैं उपयोग करें। इसके साथ ही वनों को बचाने, भूमिगत जल का उपयोग करें। पानी की गुणवत्ता की जांच भी करते रहें। शुद्ध और स्वच्छ पानी के लिए हमेशा संवेदनशील बने रहे। इसी में विश्व जल संरक्षण दिवस की उपयोगिता निहित है। पानी से महासागर भरे हुए हैं लेकिन वह पीने वाला पानी नहीं है।

    आज टिहरी जिले की 42 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई टिहरी झील 65% दिल्ली के पानी की व्यवस्था कर रही है। मीठे पानी की इस प्रकार की कृत्रिम झीलें बहुत कम ही उपलब्ध हैं। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि इस प्रकार की झीलों को बनाने के लिए स्थानीय लोगों को कितनी पीड़ा झेलनी पड़ी होगी? असंख्य परिवारों का निर्वासन हुआ? एक फलती-फूलती संस्कृति का विनाश हुआ। यह सब आप लोगों को जल मुहैया कराने के लिए या प्रकाश देने के लिए किया गया। इसलिए पानी के महत्व को समझें। प्रकाश के महत्व को समझें। रोजगार के महत्व को समझें। संस्कृति के महत्व को समझें और इसी के अनुकूल अपने नियोजित जीवन का उपयोग करें। इसी में जल संरक्षण दिवस की सार्थकता निहित है। और इसी में हमारा मोक्ष छुपा है।

    [su_highlight background=”#870e23″ color=”#f6f6f5″]सरहद का साक्षी @कवि सोमवारी लाल सकलानी, निशांत[/su_highlight]
    (कवि कुटीर)
    सुमन कॉलोनी चंबा, टिहरी गढ़वाल।