@कवि ,सोमवारी लाल सकलानी, निशांत
उषा काल में जब मैं जागा ,कु कु कु आवाज सुनी !
कहीं फाख्ता कप्फू बोला, स्मरण हुए रामतीर्थ मुनि।
कप्फू चौहान के उप गढ़ में ,वीरान नजारा क्या देखा !
शस्य श्यामला इस धरती पर ,क्यों खींच दी लक्ष्मणरेखा।
विराट दृश्य देखा झील का ,नौकायन को मन भाया ।
पास डोबरा रौलियाकोट तक, आल्हादित थी यह काया।
कल रव स्वर से खगकुल के ,संगीत फव्वारा फूट पड़ा ।
कप्फू चौहान के उप गढ़ में अब, सागर का निर्माण हुआ ।
स्वर्ण रश्मियां उगते सूरज की, मुख मंडल पर आन पड़ी।
लहरों में तूफान आ गया, सृष्टि समाई ज्योति जली।
चहल पहल की इस धरती पर ,क्यों आज उदासी छाई है ?
मां की ममता की चादर वह ,क्यों हमसे है अब दूर हुई ?
समा गई संस्कृति पानी में, एक कथित इतिहास बना !
कप्फू चौहान के उप गढ़ में, सुमन सागर विस्तार हुआ।
कहीं किवदंती हम भी बने ना ,जैसे कप्फू का गढ़ है बना ।
रामतीर्थ सुमन सागर में ,सामंत शाही का पाप धूला ।
उषा काल में जब मैं जागा, कु कु कु आवाज सुनी !
कहीं फाख्ता कप्फू बोला, स्मरण हुए रामतीर्थ मुनि !