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स्वर कोकिला लता मंगेशकर की याद में: मृत्यु सदैव शोक का विषय ही नहीं होती अपितु मृत्यु जीवन की पूर्णता है

केदार सिंह चौहान 'प्रवर' by केदार सिंह चौहान 'प्रवर'
फ़रवरी 7, 2022
in Featured, खेल/फ़िल्म जगत
स्वर कोकिला लता मंगेशकर की याद में: मृत्यु सदैव शोक का विषय ही नहीं होती अपितु मृत्यु जीवन की पूर्णता है
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आज का दिन स्वर कोकिला की याद में समर्पित करते हुए, ईश्वर से प्रार्थना कि ऐसा ही जीवन प्रत्येक भारतीय को मिले इस प्रार्थना के साथ,  “लता जी का शरीर पूरा हो गया, यात्रा पूरी …… जाने के एक दिन पहले सरस्वती पूजा थी, और कल लता दीदी विदा हो गई हैं। लगता है….. जैसे माँ सरस्वती इस बार अपनी सबसे प्रिय पुत्री को ले जाने ही स्वयं धरती पर आयी थीं। मृत्यु सदैव शोक का विषय ही नहीं होती। मृत्यु जीवन की पूर्णता है……. लता जी का जीवन जितना सुन्दर रहा है, उनकी मृत्यु भी उतनी ही सुन्दर हुई है।

 सरहद का साक्षी, आचार्य हर्षमणि बहुगुणा  

92 वर्ष 04 माह, आठ दिन (6 फरवरी 2022) का इतना सुन्दर और धार्मिक जीवन विरलों को ही प्राप्त होता है। या तो आपको या फिर अटल जी को। देखिए न —- ‘atal या lata’ उल्टा सीधा। लगभग चार-पांच पीढ़ियों ने उन्हें मंत्रमुग्ध हो कर सुना है…. और हृदय से सम्मान दिया है।
उनके पिता ने जब अपने अंतिम समय में घर की बागडोर उनके हाथों में थमाई थी, तब उस तेरह वर्ष की नन्हीं जान के कंधे पर छोटे छोटे चार बहन-भाइयों के पालन की जिम्मेवारी थी। लता जी ने अपना समस्त जीवन उन चारों को ही समर्पित कर दिया। और आज जब वे गयी हैं तो उनका परिवार भारत के सबसे सम्मानित प्रतिष्ठित परिवारों में से एक है। किसी भी व्यक्ति का जीवन इससे अधिक सफल क्या होगा?

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भारत पिछले आठ दशकों से लता दीदी के गीतों के साथ जी रहा है। हर्ष में, विषाद में,ईश्वर भक्ति में, राष्ट्र भक्ति में, प्रेम में, परिहास में… हर भाव में लता जी का स्वर हमारा स्वर बना है।

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लता जी गाना गाते समय चप्पल नहीं पहनती थीं। गाना उनके लिए ईश्वर की पूजा करने जैसा ही था। कोई उनके घर जाता तो उसे अपने माता-पिता की तस्वीर और घर में बना अपने आराध्य का मन्दिर दिखातीं थीं। बस इन्हीं तीन चीजों को विश्व को दिखाने लायक समझा था उन्होंने। सोच कर देखिये, कैसा दार्शनिक भाव है यह……….. इन तीन के अतिरिक्त सचमुच और कुछ महत्वपूर्ण नहीं होता संसार में। सब आते-जाते रहने वाली चीजें हैं।

कितना अद्भुत संयोग है कि अपने लगभग सत्तर वर्ष के गायन कैरियर में लगभग 36भाषाओं में हर रस/भाव के एक हजार फिल्मों के लिए आठ हजार से भी अधिक गीत गाने वाली लता जी ने अपना पहले और अंतिम हिन्दी फिल्मी गीत के रूप में भगवान भजन ही गाया है। ‘ज्योति कलश छलके’ से ‘दाता सुन ले’ तक कि यात्रा का सौंदर्य यही है कि लता दीदी जी न कभी अपने कर्तव्य से डिगीं न अपने धर्म से! इस महान यात्रा के पूर्ण होने पर हमारा रोम रोम आपको प्रणाम करता है लता दीदी जी। श्रद्धासुमन साभार दीदी जी को समर्पित करता हूं।”

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Tags: स्वर कोकिलास्वर कोकिला लता मंगेशकर
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