गाय की महत्ता: हमारी सनातन संस्कृति का मूल आधार स्तम्भ है गौ माता

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बहुत अच्छा लगा कि गाय की महत्ता पर श्री शिवराज सिंह चौहान “मुख्यमंत्री मध्य प्रदेश” ने गाय के गोबर व मूत्र से गो पालकों की आर्थिकी के सुधार के विषयक कहा। वास्तव में धर्म प्राण इस देश में देश वासियों की आर्थिकी अवश्य बढ़ सकती है।

सरहद का साक्षी @आचार्य हर्षमणि बहुगुणा

इस पर इस देश के मनीषियों ने समय समय पर अपने विचार व्यक्त किए हैं, सभी शास्त्रों में गो महिमा के विषयक लिखा है पर चर्चा तब होती है जब कुछ नया होता है। स्वामी विवेकानन्द जी जब अमरीका में विश्व धर्म सम्मेलन में भारत की कीर्ति पताका फहरा कर भारत लौटे तो अपने देश के इस सन्त का यशो गान करते थके नहीं। गुरु रवीन्द्र नाथ टैगोर को जब नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया तब हम भारतीयों ने अपने महत्व को समझा। सेतु बन्ध की पुष्टि जब नासा ने की तो हमारा मस्तिष्क बहुत उन्नत हुआ। यह भारत की महिमा है यहां के कण कण में ईश्वर का वास है, यहां जन्म लेने के लिए देवताओं में भी प्रतिस्पर्धा रहती है। तो आज गाय की विशेषता पर कुछ चर्चा की जाय।

त्वं माता सर्वदेवानां त्वं च यज्ञस्य कारणम्
त्वं तीर्थ सर्व तीर्थानां नमस्तेस्तु सदानघे।
सर्वदेवमये देवि सर्वदेवैरलंकृते।
मातर्ममाभिलषितं सफलं कुरु नन्दिनि।।

हे पाप रहिते! गौमाता तुम समस्त देवों की जननी हो। आप ही यज्ञ की कारण रूप हो तथा आप ही समस्त तीर्थों की महातीर्थ भी हो, आपको सदैव नमस्कार है।

त्रि: सप्तभि: पिता पूत: पितृभि: सह तेनघ,
यत् साधोस्य गृहे जातो भवान्वै कुलपावन:।

जिस घर में गौ भक्त गोरक्षक भारत का गौरव बढ़ाने वाली संतान पैदा होती है, उनकी इक्कीस पीढ़ी के पितरों का स्वत; ही उद्धार हो जाता है।

माता रूद्राणां दुहिता वसूना स्वसादित्यानाममृतस्य नाभि:।
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट नमो नमः स्वहा।। (ऋक् ८/१०१/१५)”

गाय ही रूद्रों की माता, वसुओं की पुत्री, आदित्यों की बहन और घृतरूप अमृत का खजाना है, गाय परोपकारी एवं कभी भी वध न करने योग्य हैँ।
गाय माता हमारी सनातन संस्कृति का मूल आधार स्तम्भ हैं, गाय के पंचगव्य से कई रोगों का निदान होता है। गाय की पूंछ पकड़कर वैतरणी पार की जाती है। व्यक्ति को मोक्ष तथा पुण्यात्माओं को ऊर्ध्व लोकों की प्राप्ति होती है।
गुरु वशिष्ठ के अनुसार गाय माता पाँच प्रकार की नस्ल की होती हैं।

“बहुला, कपिला, देवनी, सुरभी, नन्दनी।”
महर्षि शांडिल्य ऋषि के अनुसार भगवान कृष्ण ने स्वयं ब्रज में कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन से ही गोचारण लीला प्रारम्भ की थी, इसीलिये भारतीय संस्कृति का यह दिन *गोपाष्टमी* पर्व के रूप में ब्रज के साथ साथ पूरे भारत में भी बड़े उत्सव के रुप में मनाया जाता है। गायों की रक्षा करने के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण जी का अतिप्रिय नाम ‘गोविन्द’ पड़ा।

भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए *गोवर्धन पर्वत* को धारण किया था। इसीलिये इस अष्टमी को जिसमें भगवान श्री कृष्ण की पूजाऔर गायों की सेवा की थी को गोपाष्टमी महोत्सव के रुप में मनाये जाने की परम्परा भी है।

शास्त्रों में इस दिन प्रात:काल गायों को स्नान कराकर, उन्हें सुसज्जित करके गन्ध पुष्पादि से उनका पूजन कर भोजन कराया जाता है तथा उनकी चरण रज को मस्तक पर लगाया जाता है ऐसा करने से सुख और सौभाग्य की वृद्धि होती है।
अतः आज कार्तिक के पुनीत पर्व युक्त माह में हम सबको संकल्प लेना चाहिये कि हम सभी गायों की रक्षा सुरक्षा के लिए केवल उत्सव तक सीमित न रहे अपितु गौ की सुरक्षा हेतु वर्ष पर्यन्त सम्पूर्ण भारतवर्ष में प्रति दिन गौ दिवस के रूप में मनाने हेतु अपने – अपने स्तर से पूर्ण प्रयास करेंगे।

आप सभी को गायों की रक्षा व सुरक्षा के लिए लिये गए संकल्प की बहुत बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभ व मंगलकामनाएं।*
गाय माता आप सभी को सदैव सुखी, स्वस्थ, समृद्ध एवं निरोगी रखें, आपके सभी मनोरथ पूर्ण हों, गाय माता के श्रीचरणों से नित्यप्रति यही कामना व प्रार्थना करता हूं। थोड़ा विचार कीजिए —
“जापान जैसा छोटा देश जो द्वितीय विश्व युद्ध में विध्वंसित हो गया था, आज आर्थिक क्षेत्र में अमरीका जैसे शक्तिशाली राष्ट्र के लिए चुनौती बन गया है। इजरायल जिसका अस्तित्व हाल ही में सामने आया वह आज भारत जैसे बड़े देशों से भी आगे है।

भारत ऐसा राष्ट्र है जहां हर क्षेत्र में उन्नति ही उन्नति दृष्टि गत होती है, अर्थात् प्राकृतिक सम्पदा अपार भंडारों से परिपूर्ण, एक से बढ़कर एक योग्य व्यक्ति हर क्षेत्र में हैं। पर शायद यहां की जनता जागृत नहीं है अन्यथा भ्रष्टाचारियों को सही मार्ग दिखा देती! ऐसा प्रतीत होता है कि स्वतंत्र भारत का शक्तिशाली मानव भ्रष्टाचार, अन्याय, अराजकता, अत्याचार के भंवर में फंस कर अवश्य डूब जायेगा।

अत्यधिक दुखद है कि हमारे देश की सभी राजनीतिक पार्टियां राष्ट्रीय चरित्र, स्वच्छ छवि, ईमानदारी, भ्रष्टाचार मुक्त देश आदि की बातें तो करती हैं परन्तु क्या इस पर अमल भी करती हैं? हमारे चिन्तन पर सम्भवतः प्रश्र चिन्ह लग जाता है। आज आवश्यकता है कि हमें अपने अस्तित्व को पहचानना है।

हम क्या थे और क्या हो गए। जिसे देश को विश्व गुरु की उपाधि से विभूषित किया गया था आज क्या वह विश्व गुरु का पद प्राप्त करने में समर्थ नहीं हैं? है! अवश्य है! बस आवश्यकता है! आत्म बल की, आवश्यकता है! गोवंश की रक्षा व सुरक्षा की, आवश्यकता है! अपनी परम्पराओं को बचाने की, आवश्यकता है! पश्चिमी सभ्यता को अनदेखा करने की।

तो आईए इस संकल्प के साथ आगे बढ़ें कि प्राचीन भारत को नया साकार रूप देना है। द्वापर की ओर लौटना है जहां लाखों की संख्या में गायों को दान किया जाता था। तो अवश्य हमारी आर्थिकी बढ़ेगी। इसके लिए आज उच्च स्तरीय शिक्षा की आवश्यकता है ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जिससे व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की भलाई हो सके। इस पर अमल की जरूरत भी है। आज के लिए इतनी ही प्रार्थना करता हूं।

लक्ष्मीर्या लोकपालानां धेनुरूपेण संस्थिता।
घृतं वहति यज्ञार्थे मम पापं व्यपोहतु।।